अनहद


दुरुह रातों का ये सफर अब सुहाना लगता है

न जाने क्यों ये मुहब्बत अब फसाना लगता है

दुश्वारियां तो बहुत तेरे इन कांटों के बाटों में

क्यों इन बाटों का कंकर मेरा दीवाना लगता है


अनुभव कहता है कि तुझसे अब तौबा कर लूं

दिल कहता कि एक और अनुभव ले लूं

नहीं चाह यहां हमदर्दी की दर्द अच्छा लगता है

कौन हैं उस पार वो मर्द जरा उससे भी मिल लूं।

क्रमश:

@ बलबीर राणा 'अड़िग'