अबला नहीं वो सबला है

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी मातृशक्तियों को शुभकामनाएं और वंदन

अर्पण समर्पण सहनशील अडिग चट्टान है

करुण किसलय ममता की मूर्ति महान है


काष्ठ है वो त्याग की प्रतिमूर्ति पन्नाधाय है

निर्मल नीर से भरा प्रेम सरोवर मीराबाई है


बुलंद हौंसले धीर दृग उतुंग हिमालय रथी भी है

चतुर मेधा मति वाली जेट बिमान सारथी भी है


शक्ति वह जो जल-थल क्या नभ तक अजेय है

मातृ शक्ति का ताप घर से क्षितिज तक तेज है


पूर्ण परताप जीवन पर उसका, धरा है वो जननी है

बात्सल्य की सुनिन्द गोद है गृहस्त जोत संगिनी है


फिर भी स्वार्थी मनुष्य ने युगों से उसे जकड़ के रखा

किसी ने घूँघट में तो किसी ने बुर्के में पकड़ के रखा


पिसती है दिन रात अपनो को तपती रहती चूल्हे पर

घूमती रहती चौक चौबारे क्या ऑफिस के कूल्हे पर


मत भ्रम पालो अब अबला नहीं वो दृढ़ सबला है नारी

जीवन की हर क्रीड़ा स्थली की कुशल कला है नारी


बहुत हो गया अब न पहनाओ धर्म संस्कारों की बेड़ियाँ

अवनी चतुर्वेदी कल्पना सी उड़ना चाहती सभी बेटियां।


रचना:- बलबीर राणा "अडिग"

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