गौं गौं की लोककला

मझेड़ा (ककलासी) में राय बहादुर ठा .सुरेन्द्र सिंह डंगवाल की भव्य बखाईयों में काष्ठ कला , अलंकरण

सूचना व फोटो आभार : ठाकुर बलवंत सिंह डंगवाल , मझेड़ा

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 91

मझेड़ा (ककलासी) में राय बहादुर ठा .सुरेन्द्र सिंह डंगवाल की भव्य बखाईयों में काष्ठ कला , अलंकरण

कुमाऊं संदर्भ में उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बखाई , मोरी , छाज ) काष्ठ अंकन लोक कला श्रृंखला - 3

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई , मोरी , छाज ) अंकन लोक कला श्रृंखला - 91

संकलन - भीष्म कुकरेती

अल्मोड़ा जनपद के रानीखेत , भिकियासैण मंडल में गाँव मझेड़ी तब के राय बहादुर साब ठाकुर सुरेंद्र सिंह डंगवाल के कारण प्रसिद्ध था तो आज भी मझेड़ी गाँव राय बहादुर सुरेंद्र सिंह डंगवाल की निर्मित बखाई की भव्यता के कारण प्रसिद्ध है

मझेड़ी गाँव में राय बहादुर ठाकुर सुरेंद्र सिंह डंगवाल की भव्य बखाई में काष्ठा कला आकलन के लिए तल मंजिल के दरवाजों , व मकान के खिड़कियों , ढाईपुर की खिड़कियों , पहली मंजिल में खोलियों व तल मंजिल में प्रवेश द्वार पर काष्ठ कला को समझना आवश्यक है। आयें प्रत्येक भाग को खंगालना आवश्यक है .

ज्यामितीय अलंकरण

तल मंजिल , पहली मंजिल पर सामने व किनारे की खिड़कियों , सामन्य दरवाजों , ढैपुर की खिड़कियों में ज्यामितीय अलंकरण अंकित हुआ है जैसे तल मंजिल के सामने के किनारे के दरवाजों पर त्रिभुजाकार आकृतियां उत्कीर्ण की गयी है अन्य जगहों में सपाट अलंकरण हुआ है।

ढैपुर वाले भवन की खोलियों में नक्कासी

ढैपुर वाले भाग के पहली मंजिल की खोलियों में दरवाजों के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भों में नक्कासी हुयी है। आधार पर कमल फूल है फिर स्तम्भ स्पॉट होते है लेकिन शीर्ष में मुरिन्ड पट्टिका से मिलने से पहले स्तम्भों में कमल जैसे ही कुछ नक्कासी हुयी है। दरवाजे के शीर्ष पट्टिका (भू समांतर ) में प्राकृतिक अलंकरण दृष्टिगोचर होता है। जालीनुमा अंकन व आध्यात्मिक प्रतीकात्मक अंकन भी शीर्ष पट्टिका में दिख रहा है।

बिन ढैपुर की बखाई की पहली मंजिल में मोटरियों की निर्माण शैली ढैपुर तले की बखाई की खोली से अलग है व कला पक्ष भी विशेष अलग है। बिन ढैपुर की बखाई भाग की खोली लगभग बिंतोली (बागेश्वर ) के कौस्तुभ चंदोला (भाग 79 ) की बखाई की खली जैसे ही है याने कि किनारे दो दो स्तम्भ का मिलकर एक एक स्तम्भ बनाना व स्तम्भ आधार में अधोगामी कमल दल की कुम्भी (घट आकर ) , फिर डीला (ring type wooden plate ) , फिर उर्घ्वगामी कमल दल , फिर स्तम्भ का मोटा कम होना व फिर शीर्ष में पंहुचने से पहले डीला , कमल दल व तब स्तम्भ शीर्ष पट्टिका से मिलते हैं। शीर्ष पट्टिका से मिलने से पहले स्तम्भ कुछ अर्ध चाप तोरण arch बनाते हैं। शीर्ष पट्टिका के ऊपर ायतकार पट्टी है जहां सूर्य , अधाय्त्मिक प्रतीकात्मक अलंकरण उत्कीर्ण व प्राकृतिक कला अंकन हुआ है। शीर्ष पट्टिका या मोरी के ऊपरी भाग के बगल में दोनों ओर छपरिका से नीचे की और नक्काशीयुक्त दीवारगीर हैं व छप्परिका आधार से कायस्थ शंकु भी लटक्क रहे हैं।

निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राय बहादुर ठाकुर सुरेंद्र सिंह डंगवाल की बखाईयों में प्रत्येक भाग में अलग अलग रंग की काष्ठ कला के दर्शन होते हैं व मोरियों /छाज में तो ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय ( अधयत्मिक प्रतीक ) तीनों प्रकार के अलंकरण मिलते हैं। बखाई देख क्र बरबस जबान से शब्द निकल ही जाएगा " ब्वा वाह ! राय साब ने क्या रंगतदार बखाई बनाई है !"

सूचना व फोटो आभार : ठाकुर बलवंत सिंह डंगवाल , मझेड़ा

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