कुछ अलग उत्तराखंड

वीरान घरों को संवारकर स्वरोजगार की अलख जगाते दो युवा

उत्तराखंड के दो युवाओं ने माउंटेन विलेज स्टे नाम से एक संस्था गठित की है जिसने उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में एक पुराने घर को उसके मूल स्वरूप में संवार रहे हैं।

उत्तरकाशी, उत्तराखंड के दो युवा वीरान एवं खंडहर होते घरों को संवारकर पहाड़ से पलायन रोकने की मुहिम में जुटे हैं। इन युवाओं ने 'माउंटेन विलेज स्टे' नाम से एक संस्था गठित की है, जिसने उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में एक पुराने घर को उसके मूल स्वरूप में ही संवारकर वहां प्रीमियम विलेज स्टे शुरू किया है। जबकि, 1991 में भूकंप का दंश झेलने वाले जामक गांव में कुछ पुराने घरों को होम स्टे के लिए तैयार किया गया है। जनवरी अंतिम सप्ताह से इनका संचालन भी शुरू हो गया है।

पर्यटकों को गांव में ही मिलेंगी आधुनिक सुविधाएं

माउंटेन विलेज स्टे का उद्देश्य है बिना सरकारी सहायता के दिसंबर 2020 तक सामुदायिक पर्यटन बढ़ाने के लिए चार प्रीमियम विलेज स्टे और 15 होम स्टे शुरू करना। इनमें पर्यटकों को गांव में ही आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। माउंटेन विलेज स्टे के निदेशक एवं सतपुली (पौड़ी) निवासी सॉफ्टवेयर इंजीनियर विनय केडी कहते हैं कि सरकारें होम स्टे और सामुदायिक पर्यटन को लेकर कोई मॉडल तैयार नहीं कर पाई।

इसलिए उन्होंने सोशल सेक्टर से जुड़े चमोली जिला निवासी अपने साथी अखिलेश डिमरी के साथ वीरान घरों में समुदाय आधारित पर्यटन के मॉडल तैयार करने की ठानी। इसी के तहत पहला प्रीमियम विलेज स्टे धराली में 'धराली हाइट्स' नाम से शुरू किया है। जबकि, पहला होम स्टे जामक गांव में 'डार्क टूरिज्‍म' की थीम पर शुरू हो चुका है। यहां पर्यटक 1991 के भूकंप की त्रासदी को जान सकेंगे। इस मॉडल को बनाने के लिए उन्होंने मेघालय, बंगाल और ओडिशा जाकर होम स्टे की संपूर्ण जानकारी जुटाई। इसके साथ ही देश की बड़ी कंपनियों के सीईओ से भी राय ली।

500 घर किए चिह्नित

विनय केडी बताते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में वीरान और खंडहर हो रहे 500 पुराने घर चिह्नित किए गए हैं। इनमें भी समुदाय के सहयोग से होम स्टे और प्रीमियम विलेज स्टे शुरू करने की तैयारी है।

ग्रामीण भी हो रहे प्रेरित

अखिलेश डिमारी कहते हैं कि इस मॉडल से जहां स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं, गांव में ही स्थानीय उत्पाद भी बिक सकेंगे। धराली के प्रीमियम विलेज स्टे में स्थानीय युवाओं को निशुल्क प्रशिक्षित किया जाएगा, ताकि वे अपना रोजगार स्थापित कर सकें। धराली के मॉडल से वे ग्रामीण भी प्रेरित हो रहे हैं, जिन्होंने अपने पुश्तैनी घर वीरान छोड़ रखे हैं। लोकगायक ओम बधाणी कहते हैं कि इस पहल से न सिर्फ गांव आबाद रहेंगे, बल्कि लोक परंपराएं, भाषा, संस्कृति और लोक साहित्य भी जीवित रहेगा।