उदयपुर गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला श्रृंखला -15
गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखई ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 96
संकलन - भीष्म कुकरेती
डांडामंडल उदयपुर पट्टी क्षेत्र की गिनती संदरतम स्थलों (मिनी कश्मीर ) में गिनती की जाती है। इसी क्षेत्र में धारकोट गांव में मारवाड़ी बंधुओं की तिबारी की सूचना व फोटो जग प्रसिद्ध हिमालयी संस्कृति फोटोग्राफर पत्रकार बिक्रम तिवारी ने भेजी है। मारवाड़ी बंधुओं की तिबारी दुखंड /तिभित्या मकान की पहली मंजिल पर स्थापित है। तिबारी में चाट स्तम्भ व तीन मोरी /द्वार/खोली हैं। किनारे के स्तम्भों को दीवार से जोड़ने वाली कड़ियों में वा ज्यामितीय अलंकरण हुआहै। स्तम्भ पाषाण देहरी /देळी के ऊपर चौकोर पाषाण डौळ के ऊपर स्थित हैं। चारों स्तम्भों में एक जैसी समान कला उत्कीर्ण हुयी है। स्तम्भ का कुम्भी आधार अधोगामी पद्म दल निर्मित करता है। फिर डीला (ring type wooden plate on column ) उत्कीर्ण हुआ है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी पद्म दल उभर कर आया है व कमल दलों के ऊपर कोई वानस्पतिक खुदाई नहीं हुयी है। उर्घ्वगामी कमल दल जब अंत होता है तो स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है। इस दौरान स्तम्भ में रेखा बनाती कटान की कला है। स्तम्भ में जहां सबसे कम मोटाई है वहां एक प्राकृतिक /ज्यामिति अलंकृत डीला उभरा है व उसके ऊपर सादा डीला है। सादे डीले के ऊपर उर्घ्वगामी मकलदलआभाष देने वाली आकृति है जो वास्तव में आयताकार है। जब यह आयातकार आकृति समाप्त होती है तो स्तम्भ में ऊपर की ओर सीधा स्तम्भ थांत (bat blade type ) शुरू होता है व दूसरी और मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर पूरा मेहराब या तोरण आकृति बनती है। बहु तह वाली मरहराब /तोरण /arch तिपत्ति (trefoil ) मुरिन्ड कड़ी के नीचे तोरण के दोनों और पट्टिकाएं हैं व प्रत्येक पट्टिका में दो दो बहुदलीय पुष्प (संभवतया अष्टदल ) अंकित ा। मरिंड एक समांतर कड़ी है जिस पर र नक्कासी हुयी है। मुरिन्ड की कड़ी छत आधार पट्टिका से मिल जाती है।
अंदर कमरों के व खड़िकियों दरवाजों में ज्यामितीय कला अंकित हुयी है।
अपने जमाने की मारवाड़ी बंधुओं की भव्य तिबारी में जायमितीय , प्राकृतिक कला अलंकरण भव्य हुआ है और तिबारी में कोई मानवीय अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
निष्कर्ष निकलता है कि तिबारी भव्य है। चूंकि ढांगू उदयपुर , डबरालस्यूं में स्थानीय कलाकारों द्वारा तिबारी निर्माण नहीं होता था तो कहा जा सकता है कि धारकोट में इस तिबारी को निर्माण हेतु टिहरी म उत्तरकाशी , चमोली या पौड़ी में चौंदकोट से मिश्री बुलाये गए होंगे। संभवतया तिबारी का निर्माण काल 1930 के पश्चात का ही होगा।
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध हिमालयी संस्कृति फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी
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