गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

पुरुषोत्तम दत्त व भैरव दत्त कंडवाल की तिबारी व जंगलेदार मकान में काष्ठ कला

सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़ (बड़ा )

Copyright

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 71

पुरुषोत्तम दत्त व भैरव दत्त कंडवाल की तिबारी व जंगलेदार मकान में काष्ठ कला

ठंठोली (ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला भाग -8

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 71

संकलन - भीष्म कुकरेती

जैसा कि पहले ही सूचना दी चुकी है कि ठंठोली के कंडवाल वैद्यकी व कर्मकांड व ज्योतिष हेतु प्रसीध थे। पुरुषोत्तम कंडवाल आयुर्वेद वैद्य थे, भेषज (धातु में औषधि मिश्रण के विशेषज्ञ ) व भैरव दत्त कंडवाल व्यासगिरि के लिए प्रसिद्ध थे।

आज दोनों भ्राताओं की तिबारी व तिबारी पर बने जंगलेदार मकान की चर्चा की जायेगी।

तिबारी दुखंड (एक कमरा बाहर व एक कमरा अंदर की ओर ) मकान के मध्य में है और इसी मकान पर बाहर से जंगला भी बंधा गया है। शायद जंगल बाद में बाँधा गया होगा।

तिबारी पत्थर की देहरी के ऊपर टिकी है व देहरी /देळी लकड़ी के छज्जे पर टिकी है। लकड़ी का छज्जा लकड़ी के ही दासों/टोड़ी पर टिके हैं। कुछ दास (टोड़ी ) पत्थर के भी हैं जो ठंठोली में ही उपलब्ध था।

तिबारी में चार स्तम्भ थे (अब दो ही बचे हैं ) . चारों स्तम्भ तीन मोरी /द्वार /खोळी निर्मित करते थे। प्रत्येक स्तम्भ चौकोर डौळ के ऊपर टिके थे /हैं व डौळ के ऊपर अधोगामी पदम् पुष्प दल से स्तम्भ का कुम्भी बनती है। फिर डीला (round wooden plate as big ring ) है। डीले में भी उत्कीर्णन हुआ है। डीले के ऊपर उर्घ्वगामी पदम् पुष्प दल से स्तम्भ सुशोभित होता है। जब उर्घ्वगामी पदम् पुष्प खत्म होता है तो गोल स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है। स्तम्भ सी शीर्ष मुरिन्ड की कायस्थ पट्टिका से मिलते हैं और शीर्ष पट्टिका छत आधार पट्टिका के नीचे हैं। स्तम्भ या अन्य जगह कहीं पर भी मान्वित अलंकरण या दार्शनिक प्रतीक अलंकरण ( नजर न लगे हेतु) कुछ भी आकृति नहीं है। यह एक आश्चर्य है की पुरुषोत्तम दत्त कंडवाल दोनों भाई टूण -टुण मुण (तंत्र विद्या ) में पूरा विश्वास करते थे व मकान में कहीं भी ' नजर न लगे' की कोई प्रतीकात्मक आकृति नहीं है। पुरुषोत्तम कंडवाल तो चोर पकड़ने हेतु तुमड़ी नचाने में माहिर भी थे।

मकान काफी बड़ा है व पहली मंजिल पर 15 से अधिक स्तम्भों वाला जंगल बंधा है। काष्ठ स्तम्भ सपाट हैं और सीधे ऊपर छत आधार पट्टिका से मिल जाते हैं। स्तम्भ आधार को आकर देने के लिए ज्यामितीय ढंग से उत्कीर्णित छिलपट्टिकाएँ लगी हैं जो स्तम्भ आधार की सुंदरता वृद्धिकारक हैं। रेलिंग स्तम्भ के ढाई फिर ऊपर से शुरू होती हैं।

जब यह मकान निर्मित हुआ था तो क्षेत्र में बड़ी हाम /प्रसिद्धि फैली थी तो तब लगता था कि ये दोनों भाई वैदकी व व्यासगिरि विद्व्ता के कारण प्रसिद्ध है या जंगलेदार तिबारी के कारण प्रसिद्ध हैं !

अपने यौवन काल में तिबारी व जंगले की शान देखते ही बनती थी। अब सम्भवतया साझीदारी के कारण मकान जीर्ण शीर्ण हो रहा है और कुछ सालों (?) के बाद तिबारी भी ध्वस्त हो जाएगी तो सिर्फ मेरी पीढ़ी वाले ही याद करेंगे की प्रसिद्ध भेषज व व्व्यास - विद्वान् भ्राता द्वय पुरुषोत्तम दत्त कंडवाल व भैरव दत्त कंडवाल की भव्य व क्षेत्र में प्रसिद्ध जंगलेदार तिबारी थी। यह कटु सत्य है कि पहाड़ी अपने इन अमूल्य धरोहरों को न बचा पाएंगे (मकान बनाने हेतु जगह की कमी व बंटवारे से उपजी समस्या ) किन्तु इन कला युक्त भवनों का दस्तावेजीकरण उतना ही आवश्यक है जितना प्रत्येक गाँव का इतिहास संजोये रखना।

भवन लगभग 1945 के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा। कलाकारों की सूचना आणि बाकि है।

सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़ (बड़ा )

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020