ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में रामचंद्र कंडवाल के जंगले दार मकान में काष्ठ अलंकरण
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला आदि ) कला -3
ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -24
गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 40
संकलन - भीष्म कुकरेती
वैदकी व कर्मकांडी पंडिताई दृष्टि से ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में एक महत्वपूर्ण गांव है व ठंठोली से छज्जे के पत्थर , ओखली , दास आदि हेतु पत्थर निर्यात होते थे अब यह व्यापार बंद हो गया है व अब मांग भी नहीं रही।
ठंठोली में मलुकराम बडोला की तिबारी के बारे पहले ही विवरण दिया चुका है। कुछ समय पहले ठंठोली में तीन जंगलेदार मकानों को सूचना मिली थी किन्तु अभी तक एक ही जंगलेदार मकान की फोटो मिल पायी है।
अभी विवरण हेतु रामचंद्र कंडवाल निर्मित जंगलेदार मकान की फोटो व सूचना मंगतराम कंडवाल से मिली है। रामचंद्र कंडवाल प्रसिद्ध वैद्य, पंडित व व्यापारी भवानी दत्त कंडवाल के पुत्र थे।
रामचन्द्त कंडवाल का जंगला सामन्य आम जंगला कहलाया जायेगा क्योंकि इस जंगले में स्तम्भों (सिंगाड़ ) , मुरिन्ड (स्तम्भ शीर्ष ) या दरवाजों पर कोई काष्ठ अलंकरण उत्कीर्ण नहीं हुआ है।
पहली मंजिल पर छज्जा काष्ठ का है व उस सछजजे पर दस स्तम्भ खड़े हैं जो ऊपर छत के आधार से मिलते हैं। दरवजाजों पर केवल ज्यामितीय अलंकरण मिलता है कोई मानवीय या प्राकृतिक अलंकरण नहीं मिलता है।
इस तरह के जंगलेदार मकान निर्माण का समय 1980 तक ढांगू , उयदपुर , डबराल स्यूं में प्रचलन रहा है। कला या लंकरण दृष्टि से जंगले को आम या सामन्य श्रेणी में ही रखा जा सकता है। ओड , बढ़ई -मिस्त्री भी अवश्य ही ढांगू के ही रहे होंगे। स्व राम चंद्र कंडवाल के इस जंगलेदार मकान का निर्माण काल भी लगभग 1970 -1980 का है
एक समय ऐसे जंगले बनाने में गर्व महसूस किया जाता था व छज्जे का उपयोग होने का फायदा मिलता था।
सूचना व फोटो आभार : मंगतराम कंडवाल , ठंठोली
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