उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -52
उत्तराखंड परिपेक्ष में बथुआ /बेथू की सब्जी , औषधीय उपयोग व अन्य उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -10
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --52
बथुआ /बेथू उपयोग और इतिहास
आलेख : भीष्म कुकरेती (सांस्कृतिक इतिहासकार )
Botanical Name -Chenopodium album
हिंदी नाम बथुआ
स्थानीय नाम - बेथू, बथुआ
संस्कृत नाम -वस्तुका:
चीनी नाम -ताक
बथुआ एक गेहूं में पाये जाने वाला खर पतवार है। बथुआ की दूसरी प्रजाति का वर्णन हिमालयी चीन में 2500 -1900 BC में मिलता है. अत: कह सकते हैं कि बथुआ उत्तराखंड में प्रागैतिहासिक काल से पैदा होता रहा है। यूरोप में इसका अस्तित्व 800 BC में था। वैज्ञानिक बथुआ का जन्मस्थान यूरोप मानते हैं। हिमालय की कई देसों में बथुवा की खेती भी होती है। डा के.पी. सिंह ने लिखा है कि बथुवे का जन्मस्थल पश्चिम एसिया है। शायद बथुआ का कृषिकरण चीन व भारत -नेपाल याने मध्य हिमालय में शुरू हुआ। अनुमान है कि बथुवा के बीज चालीस साल तक ज़िंदा रह सकते हैं।
आयुर्वैदिक साहित्य जैसे भेल संहिता (1650 AD ) में बथुवे का आयुवैदिक उपयोग का उल्लेख है (K.T Acharya , 1994, Indian Food)।
साधारणतया बथुआ का पौधा तीन फीट तक ऊंचा होता है किन्तु 6 फीट ऊंचा बथुआ भी पाया जाता है।
प्राचीन काल में बथुआ के बीजों को अन्य अनाजों के साथ मिलाकर आटा बनाया जाता था।
फसलों के साथ बथुवा के पौधे कीटनाशक का कार्य भी करते हैं। कई कीड़े गेहूं को छोड़ बथुवा पर लग जाते हैं और गेंहूं कीड़ों की मार से बच जाते हैं।
मुर्गियों का चारा
बथुवा बीज मुर्गियों चारे के रूप में उपयोग होता हैं।
वैकल्पिक अनाज
बथुवा के बीजों से आटा से बनाया जाता है जो वैकल्पिक अनाज के रूप में उपयोगी है। हिमाचल व उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में बथुवा के आटे से लाबसी भी बनाई जाती है।
कहीं कहीं बथुवा के बीजों का उपयोग शराब बनाने में भी होता है।
बथुवा की सब्जी
बथुवा का उपयोग पालक जैसे ही हरी सब्जी के रूप में उपयोग होता है। आलू , प्याज या अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर मिश्रित सब्जी बनाने का भी रिवाज सामान्य है।
पहाड़ों में बथुवा के पत्तों से धपड़ी भी बनाई जाती है।
बथुवा के पराठे भी बनाये जाते हैं.
बथुवे से उपचार
बथुवे की हरी पत्तियां कच्चा चबाने से मुंह के छाले , दुर्गन्ध कम करने हेतु उपयोग होता है। ( सही जानकारी डाक्टर से ही लें )
बथुवे का आयुर्वैदिक उपयोग कब्ज , बबासीर , जुकाम, कृमि रोग आदि बीमारियों में भी किया जाता है
सावधानी - बथुवा में ऑक्सेलिक अधिक ऐसिड होता है अत: बथुवा का उपयोग अधिक मात्रा में नही किया जाता है। यही कारण है कि बथुवा पालक का स्थान नही ले सका है। गर्भवती स्त्रियों को बथुवा नही खाना चाहिए।
बथुवा की धपड़ी /कपिलु /काफुली /फाणु
सामग्री
करी बनाने के लिए - आधा छोटी कटोरी चावल /झंगोरा या गहथ /गहथ के पेस्ट की करी को फाणु कहते हैं
बथुवा - दो गड्डी कटा बथुवा
सिलवट में पिसे या सूखे पिसे मसाले -धनिया , मिर्च , हल्दी , हींग जीरा , , नमक। कटे टमाटर , अदरक , लहसुन
छौंका/तलने की सामग्री - सरसों का तेल ,जीरा या जख्या , भांग के बीज हों तो लाजबाब , दो लाल मिर्च
कटा हरा धनिया
गरम मसाले - पाव चमच से कम
विधि
करी बनाने के लिए यदि गहथ इस्तेमाल करें तो कम से कम छह घंटे भिगायें। यदि चावल या झंगोरा का इस्तेमाल हो तो दो घंटे तक भिगायें। गहथ , चावल या झंगोरे को पीसकर पेस्ट (मस्यट ) बना लें।
पहले कढ़ाई में तेल गरम करें। जीरा , धनिया , जख्या , भांग जिसका भी छौंका देना हो उसे तेल में डालें और लाल रंग होने तक तलें । मिर्च तल कर अलग रख दें।
गहथ या चावल /झंगोरा के पेस्ट को तेल में डालें और थोड़ा तलें और फिर मसाले के पेस्ट , कटे टमाटर या अपने स्वाद के हिसाब से पिसे मसाले नमक डालें। थोड़ा थोड़ा हिलाते रहें और फिर पानी डाल दें। पानी उतना ही डालें जितना आपको गाढ़ा बनाना है। एक बार थड़कने दें। अब कटा बथुवा डालें। ढक दें और 8 -10 मिनट तक उबालते रहिये।
उतारने से पहले हरा धनिया व मिश्रित गरम मसाला डालें। फिर उतार दें। ढक दें
बथुवा की धपड़ी /कपिलु /काफुली आप चावल , झंगोरा या रोटी के साथ खा सकते हैं।
दूसरी विधि में बथुवा व पेस्ट (मस्यट ) को साथ साथ भूनते हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti 4/11/2013