गौं गौं की लोककला

सुकई (बीरोंखाळ ) में मोहन सिंह बिष्ट की भव्य तिबारी व खोळी में काष्ठ कला, अलकंरण , लकड़ी नक्काशी

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यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 188

सुकई (बीरोंखाळ ) में मोहन सिंह बिष्ट की भव्य तिबारी व खोळी में काष्ठ कला, अलकंरण , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी - 188

संकलन - भीष्म कुकरेती

एक समय था जब बेटी के विवाह की रजामंदी में गाँव में तनी तिबारियां है ' का भी महत्व था। लोक कथ्य था -क्यादीण उख बेटी जख तिबारी इ नी छन I पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल ब्लॉक के बनगरस्यूं पट्टी में सुकई गाँव भाग्यशाली गांव है जहाँ तिबारियों की लंगत्यार लगी है। आज बसन्वाल बिष्ट द्वारा निर्मित तिबारी -खोळी में लकड़ी पर हुयी नक्काशी पर गुफ्तुगू होगी। आज बसन्वाल बंशज ठाकुर मोहन सिंह बिष्ट तिबारी संभालते हैं।

सुकई (बीरोंखाल ) में मोहन सिंह बिष्ट का मकान दुपुर है , दुखंड /दुघर है, मकान में तल मंजिल से पहली मंजिल की छत तक खोळी (मुख्य प्रवेश द्वार ) है और पहली मंजिल में आकार , आकृति में समान दो तिबारियां स्थापित हैं। तिबारी आज भी भव्य हैं और निर्माण काल के तुरंत बाद भी भव्य थी। खोली की भव्यता की प्रशंसा हो कम ही पड़ेगी। कलाकारों को नमन।

सुकई (बीरोंखाल ) में मोहन सिंह बिष्ट के मकान में काष्ठ कला समझने हेतु दोनो तिबारियों व खोळी पर टक्क लगानी आवश्यक है। तल मंजिल में दो कमरों के दरवाजों में सपाट कटान हुआ है।

---:सुकई (बीरोंखाल ) में मोहन सिंह बिष्ट के मकान की खोळी में काष्ठ कला , नक्काशी :----

खोळी बड़ी ऊँची है जो तल मंजिल से पहिली मंजिल की छत तक पंहुची है। खोळी के दोनों ओर भव्य सिंगाड़ हैं और प्रत्येक सिंगाड़ चार लघु स्तम्भों के जोड़ से निर्मित हुआ है। आंतरिक दो लघु स्तम्भों के आधार में ज्यामितीय कटान है व ऊपर की ओर दोनों लघु स्तम्भों में वानस्पतिक अलंकरण अंकन हुआ है। दोनों आंतरिक लघु स्तम्भ ऊपर जाकर निम्न तलीय मुरिन्ड की रचना करते हैं। बाह्य दो लघु स्तम्भ वास्तव में आम गढ़वाली तिबारियों के ातमभ जैसी आकृति लिए हैं। प्रत्येक बाह्य स्तम्भ के आधार में उलटे कमल की कुम्भी है फिर ड्यूल है ऊपर सीधा कमल फूल है। यहाँ पर दोनों बाह्य लघु स्तम्भों के कटान में अंतर् आ जाता है। बाह्य दो लघु स्तम्भ में जो लघु स्तम्भ अंदर की ओर है उसमे सीधा कमल के ऊपर फिर से ड्यूल है व फिर दूसरा सुल्टा कमल है। यहां से लघु स्तम्भ सीधी ऊपर जाता है और उसी तरह सबसे बाह्य लघु पहले सीधे से सीधा ऊपर। मुरिन्ड के नीचे ही दोनों लघु स्तम्भों में उलटा कमल फूल आकृति उत्कीर्णित है। अंदर के बाह्य लघु स्तम्भ में यहाँ कमल फूल के ऊपर ड्यूल है व फिर कमल दल है जो कुम्भी आकृति बनता। ऊपर फिर ड्यूल है व ऊपर चौकोर सी आकृति में बदल जाता है व फिर थांत शक्ल में बदलते हुए ऊपरी मुरिन्ड की बदल जाता है। थांत में पर्ण -तीर पैटर्न की आकृतियाँ खड़ी है। दूसरी और यहां सबसे बाहर का लघु स्तम्भ गोल सी आकृति लेकर ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है। इस दौरान स्तम्भ में fleut -flited ( उभार व गड्ढा ) आकृतियां दृष्टिगोचर होती है।

खोळी में मुरिन्ड में दो भाग हैं - निम्न तलीय मुरिन्ड व शिखर तलीय मुरिन्ड। निम्न तलीय मुरिन्ड की सभी तीनों कड़ियों में बारीक वानस्पतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। बेल बूटों की नक्कासी चित्तार्शक है। इस निम्न तलीय मुरिन्ड के ऊपर नक्काशीदार मेहराब है जिसके नीचे वाले भाग में ज्यामितीय कटान से अमूर्त आकृति अन्न हुआ है व मध्य में बहु भुजीय देव आकृति (संभवतया गणेश ) अंकित है।

निम्न तलीय मुरिन्ड के ऊपर मेहराब के बाहर के दोनों त्रिभुजों के किनारे एक एक बहुदलीय पुष्प अंकित है व बाकी त्रिभुज के भाग में प्राकृतिक फर्न जैसे आकृति अंकन हुआ है।

ऊपरी मुरिन्ड के दोनों कड़ियों में ज्यामितीय कटान से सुंदर अंकन हुआ है।

ऊपरी मुरिन्ड के सबसे ऊपरी कड़ी के बाहर दोनों किनारों में मेहराब के बाहर त्रिभुज आकृतियां उत्कीर्ण हुयी है जिनमे एक एक बहुदलीय फूल उत्कीर्णित है। इन त्रिभुजों के बाहर के कड़ियों में प्राकृतिक व जायमितीय अंकन हुआ है.

---: खोळी के दीवालगीरों में नक्काशी :--

खोळी के मुरिन्ड से कुछ नीचे स्तम्भों के बाहर दो दो दीवालगीर स्थापित है याने कुल चार दीवालगीर हैं। प्रत्येक दीवालगीर में वर्टिकली सात हैं व प्रत्येक स्टेप में छयूंती दल या अन्य अमूर्त आकृति खुदी हैं। ऊपर से निम्न की ओर तीसरे स्टेप में हाथी उत्कीर्ण हुआ है। नक्काशी में बारीकी है।

--:छप्परिका आधार में काष्ठ कला :--

वर्षा बचाव हेतु खोळी के ऊपर कलयुक्त छप्परिका है जिसका आंतरिक आधार लकड़ी का है। आंतरिक काष्ठ आधार से दसियों शंकु लटक रहे है जो चित्तार्शक हैं। छ्प्परिका के आधार में सूर्य आकृति खुदी हैं जहां से कलश नुमा आकृतियां लटकी हैं व देव या प्रतीकात्मक आकृति भी लटकी है।

---------: सुकई में मोहन सिंह बिष्ट की तिबारी में काष्ठ कला , नक्काशी :---

सुकई में मोहन सिंह बिष्ट के मकान के पहली मंजिल में दो भव्य तिबारियां स्थापित हैं। दोनों तिबारियां आकार , कला व आकृतियों के हिसाब से बिलकुल समान हैं। प्रत्येक तिबारी चौखम्या व तिख्वळ्या (चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ /द्वार वाली ) हैं। दीवार स्तम्भ को जोड़ने वाली सभी कड़ियों में ज्यामितीय कटान से वानस्पतिक आकृति उभरी हैं।

प्रत्येक स्तम्भ देहरी के ऊपर पत्थर के चौकोर डौळ के ऊपर टिके हैं। प्रत्येक स्तम्भ में आधार पर उल्टा कमल फूल, फिर ड्यूल , सीधा खिलता कमल फूल अंकित है व यहीं से स्तम्भ लौकी आकर धारण कर लेता है जब स्तम्भ की मोटाई सबसे कम हो जाती हैं वहां उल्टा कमल फूल अंकन है फिर ड्यूल है व उसके ऊपर चौकोर सीधा खिलता कमल फूल की आकृति में बदल जाता यहीं से स्तम्भ दो भागों में विभक्त हो जाता है। स्तम्भ के कमल रूपी आधार से एक भाग थांत रूप धारण कर ऊपर मुरिन्ड पट्टिका से मिल जाता है। थांत के ऊपर दीवालगीर (bracket ) स्थापित हैं। दीवालगीर में हाथी छोड़ वही आकृतियां खुदी है जो खोळी की दीवालगीरों में खुदी हैं

स्तम्भ के इसी भाग से मेहराब का एक मंडल शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के मंडल से मिलकर पूरा मेहराब बनता है। महराब तिपत्ति (trefoil ) अनुरूप है। मेहराब के बाहर दो त्रिभुज है व प्रत्येक

त्रिभुज में किनारे पर एक एक बहुदलीय फूल हैं व त्रिभुज प्राकृतिक कटान हुआ है। मेहराब ऊपर मुरिन्ड में पांच छह पट्टिकाएं हैं। छत के आधार से दसियों शंकु लटक रहे है जो तिबारी की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे हैं।

तिबारी के व खोळी दरवाजों में ज्यामितीय कटान हुआ है।

निष्कर्ष निकलता है कि सुकई (बीरोंखाल ) में बसन्वाल बिष्ट द्वारा निर्मित मोहन सिंह बिष्ट के भव्य मकान में भव्य खोळी है व भव्य दो तिबारियां स्थापित हुए हैं ज्यामितीय , प्राकृतिक, मानवीय (पशु व देव प्रतीक ) कलाएं प्रदर्शित हुयी हैं। सुकई में मकान की भव्यता व बारीक नक्काशी के लिए ओड व काष्ठ शल्पकार सदा याद रहेंगे व बसन्वाल बिष्ट का कला प्रेम को भी याद किया जायेगा। सूचना व फोटो आभार : संतन सिंह रावत, सुकई

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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