गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

मित्रग्राम ढांगू की लोक कलाएं - 4

ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों /निमदारियों पर अंकन कला -12

सूचना व छायाचित्र आभार : आशीष जखमोला मित्रग्राम

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी /निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 17

मित्रग्राम के कृपा राम जखमोला की निमदारी में काष्ठ कला

Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari) of Uttarakhand , Himalaya -17

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है ) -

संकलन - भीष्म कुकरेती

पिछले अध्यायों में मल्ला ढांगू के मित्रग्राम गाँव की लोक कलाएं , नारायण दत्त जखमोला की तिबारी , शेखरा नंद जखमोला की निमदारी का वर्णन हो चुका है। निमदारी का प्रचलन 1950 के पश्चात् ही आया है। निमदारी में व तिबारी में मुख्य अंतर् है कि तिबारी में पहली मंजिल के बरामदे के द्वार में काष्ठ कला मुखर कर आती है किन्तु निमदारी में पहली मंजिल के सभी कमरों के आगे भाग में लकड़ी के स्तंभ व जंगल होते हैं (अधिक्तर सामने ) .

कृपा राम जखमोला (मथि ख्वाळ ) की निमदारी भी आम मकान जैसे ही है याने एक मंजिला मकान की छत पर उंधार की ओर सिलेटी पत्थर लगे होते हैं। पत्थरीली छत का अगला भाग लकड़ी की प्लेटों /पटलाओं पर टिके होते हैं व यह पटले लकड़ी के दास पर टिके होते हैं । पहली मंजिल पर सामने छज्जा पत्थर का या लकड़ी का होता है व लकड़ी या पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर टिके होते हैं। आज स्व कृपाराम जखमोला की निमदारी को स्व रूप चंद्र जखमोला (पुत्र कृपाराम ) की निमदारी कहा जाता है।

कृपाराम के मकान पर तल मंजिल में तीन कमरे व ऊपर पहली मंजिल पर दो बरामदे लग रहे हैं। पहली मंजिल पर सामने की ओर काष्ट छज्जा हैं। छज्जा मिटटी पत्थर के दो स्तम्भों व दासों पर टिके है। दोनों मिट्टी पत्थर के स्तम्भ मकान के दोनों किनारों पर हैं। इन स्तम्भों के ऊपर आयताकार लम्बी कड़ी है और इस कड़ी के नीचे काष्ठ दास दिख रहे हैं। इस कड़ी से आठ स्तम्भ वर्टिकली ऊपर जाते हैं जो ऊपर छत के पटलाओं के आधार कड़ी से मिलते हैं। छत के पटलों के नीचे भी भूमि के समानांतर कड़ी है व इस कड़ी से ही लकड़ी के संतभ मिलते है।

ये काष्ठ स्तम्भ सीधे सपाट है व केवल ज्यामितीय कला दर्शन होते हैं कहीं भी परालरीतिक , मानवीय कला के दर्शन इन स्तम्भों या कड़ियों में मिलते हैं

तल मंजिल में तीन कमरों में से दो कमरों के द्वार सपाट कला युक्त हैं। तीसरे कमरे के द्वार में ज्यामितीय कला मुखर कर आया है। पहली मंजिल पर भी कमरों के द्वारों व खड़कियों में केवल ज्यामितीय कला मिलती है।

कृपाराम जखमोला की निमदारी में पहली मंजिल पर धातु की प्राकृतिक कला लिये हुआ जंगले हैं।

कहा जा सकता है कि कृपाराम जखमोला की निमदारी भी आम सामन्य निमदारी जैसे ही है जिसमे काष्ठ कला केवल ज्यामितीय कला दर्शित होती है और किसी भी प्रकार की प्राकृतिक अथवा मानवीय कला के दर्शन नहीं होते हैं जैसे मित्रग्राम में ही स्व शेखरानन्द की निमदारी है।

सूचना व छायाचित्र आभार : आशीष जखमोला मित्रग्राम