गढ़वाली कविता
बालकृष्ण डी. ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुर
कोरी पाटि
कोरी पाटि
कळम उठै कि ल्याखि मिन
कळम उठै कि ल्याखि मिन
जन मिन समझी ल्याखि ऊन हि
जन मिन समझी ल्याखि ऊन हि
भाव म्यारा जागी जाणि ते बेर
भाव म्यारा जागी जाणि ते बेर
आखर म्यारा उमाटया ऊन हि
आखर म्यारा उमाटया ऊन हि
जन-कन मिन वैथै निपत्यालि
जन-कन मिन वैथै निपत्यालि
कबिता दगडि मिन दिस कत्यालि
कबिता दगडि मिन दिस कत्यालि
पर्स्यु छ भैर भित्र ऊ मैमा
पर्स्यु छ भैर भित्र ऊ मैमा
ल्याखि कि वैथै जन-कन पुर्यालि
ल्याखि कि वैथै जन-कन पुर्यालि
खटकु कु मिथे अंदेसा व्हाई
खटकु कु मिथे अंदेसा व्हाई
झसाक लागि मिन सब्यु चैत्यालि
झसाक लागि मिन सब्यु चैत्यालि
मुनासिब छ सब डंडा कंडा बान
मुनासिब छ सब डंडा कंडा बान
लमडैर ज्यू रालो तु बता दे कैमा
लमडैर ज्यू रालो तु बता दे कैमा
इत्मा ल्याखि कि बि पाटि कोरी राई
इत्मा ल्याखि कि बि पाटि कोरी राई
आलो क्वी औरृ लेखि जालु वैमा
आलो क्वी औरृ लेखि जालु वैमा