गौं गौं की लोककला

खारसी जौनसार में सुरेश चौहान के तीन भवनों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी ) में काष्ठ अंकन लोक कला अलंकरण,

सूचना व फोटो : स्व दिनेश कंडवाल

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 157

खारसी जौनसार में सुरेश चौहान के तीन भवनों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी ) में काष्ठ अंकन लोक कला अलंकरण, नक्कासी - 157

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Dehradun, Garhwal, Uttarakhand, Himalaya - 157

-(प्रिय मित्र कैलासवासी दिनेश कंडवाल जी को समर्पित )

संकलन - भीष्म कुकरेती

जग प्रसिद्ध पक्षी निहारक व पक्षी फोटोग्राफर दिनेश कंडवाल ने खारसी से कुछ भवनों की सूचना भेजी है जो काष्ठ कला व काष्ठ अलंकरण दृष्टि से विशेष श्रेणी में आते हैं I प्रस्तुत विवेचना में आज खारसी (जौनसार , देहरादून) में सुरेश चौहान के दो मुख्य भवनों व एक विशेष मचान जैसे भवन की काष्ठ कला , काष्ठ अल्नक्र्ण अंकन या नक्कासी की विवेचना की जायेगी I

-खारसी ( जौनसार ) में सुरेश चौहान के मकान संख्या 1 अथवा घोड़े वाला मकान में काष्ठ कला

इस मकान कण का नाम घोड़ेवाला मकान इसलिए रखा कि फोटो में मकान के तल मंजिल में घोडा बंधा है या तल मंजिल में अस्तबल है I रिवाजानुसार मकान की छत सिलेटी पत्थरों से ही मनी है I

घोड़ेवाला मकान दुखंड /दुघर से अधिक खंड का लगता है व ढाईपुर मकान हैं I तल मंजिल की सामने की दीवार मिटटी पत्थर की है बाकी मंजिलों की दीवारें लकड़ीसे निर्मित हैं I लगता है तल मंजिल भंडार व गौशाला हेतु उपयोग होता रहा है जैसा कि जौनसार में रिवाज भी है I

तल मंजिल में बरामदा है जिसके उपर लकड़ी की छत है व पहली मंजिल का बरामदा भी है I तल मंजिल के बरामदे के बाह्य तरफ में छह स्तम्भों से 5 मेहराब स्थापित हैं I काष्ठ स्तम्भ /सिंगाड़ के आधार में उलटे कमल फूल से कुम्भी या पथ्वड आकार निर्मित हुआ है जिसके उपर ड्यूल है , ड्यूल के उपर सीधा (उर्घ्वाकर ) कमल पुष्प सजा है जिसके उपर सिंगाड़ की मोटाई कम होती जाती है I जहां सिंगाड़ /स्तम्भ सबसे कम मोटाई है वहां उलटे कलम फूल से घट नुमा आकृति बने है फिर उपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल दल है जिसके उपर चौकी आधार (impost) है जिससे से एक ओर उपर स्तम्भ थांत (cricket Bat Blade type ) रूप लेकर मुरिंड (कड़ी ) से मिल जाता है I चौकी आधार /impost से दूसरी ओर मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिल पूर्ण मेहराब निर्माण करते हैं I मेहराब का कटान तिपत्ति रूप में है I ढाई पुर के उपर की छत से गोल आकृति जैसे लट्ठ आकर मेहराब से मिलते हैI ऐसी 9 लट्ठ आकृतियाँ ढाई पुर की छत से मेहराबों से आकर मिलती हैं I

मुरिंड की कड़ी मजबूत बौळई है जिसके उपर पहली मंजिल की फर्श के आधारिक कड़ियाँ विश्रम्म करती हैं I

पहली मंजिल के बरामदे या कमरों को लकड़ी के पटिलों /तख्तों से बनी दीवाल से ढकी है . इस दीवाल के उपर दो समानांतर कड़ियाँ एक आयत की खुली आकृति बनाते हैं (बड़ा आयताकार ढउड्यार) के मध्य बीस पचीस बेलनाकार आकृतियाँ लगी हैं I ढाईपुर आंतरिक बरामदे को पहली मंजिल की तरह ही पटिलों या तख्तों से धक दिया गया I इन दीवाल में दो तख्तों में अंडाकार छेद ( ढउड्यार ) हैं I

तल मंजिल में बरामदे के अंदर खोली है जिसके बाहर सिंगाडों/स्तम्भों व मुरिंड में काष्ठ कला उत्कीर्णित हुयी है I सम्भवतया यहाँ प्राकृतिक ,, प्रतीकात्मक (दिव्य आकृति ) व ज्यामितीय कला का मिश्रण ही होगा I

खरासी में सुरेश चौहान का मचान रूपी भवन (भवन संख्या 2 ) में काष्ठ कला:-

खारसी सुरेश चौहान के दो भवनों के बीच पुल/ या मचान जैसा एक छोटा मकान भी है I मचान रूपी भवन दुपुर है व तल मंजिल पर मेहराब वाला नुमा बरामदे के उपर पहली मंजिल टिकी है I तल मंजिल में खुबसूरत मेहराब है I पहली मंजिल में लकड़ी के पटिलों /तख्तों से दीवार बनी हैं व मध्य सीमा के ऊपर झाँकने हेतु अंडाकार दो छेद हैं जैसे कुमाऊं की बाख्लियों में खिड़की /मोरी में होता है I बाकी सभी जगह ज्यामितीय कटान हुआ है I

सुरेश चौहान के म सबसे ऊंचा मकान तिपुर मकान है (तल मंजिल +2) व देखा जाय तो पहले मकान का hi स्वरूप है केवल ऊँचाई बढी है I तल मंजिल के बरामदे से बाहर 6 काष्ठ सिंगाड़/स्तम्भ है जिनमे कला वैसेही है जैसे सुरेश चौहान के पहले मकान या आम गढवाली तिबरियों में सिंगाड़ों /स्तम्भों में होता है (उलटे कमल , द्युल , सीधा कमल फिर कुछ ऊँचाई बाद उल्टा कमल , द्युल सीधा कमल फूल व मेहराब व मुरिंड किन्तु इस मकान में मेहराब नही है I स्तम्भ थांत बनकर सीधे मुरिंड की कड़ी से मिल जाते हैं . बरामदे की छत याने पहली मंजिल का फर्श भी लकड़ी कड़ीयों व तख्तों से निर्मित हुआ है याने ज्यामिती कलाकारी हुयी है Iपहली मंजिल में एक भाग में दीवार में स्तम्भ हैं व एक तरफ के भाग में लकड़ी के खम्बे हैं I स्तम्भ मे वही कलाकारी है जो तल मंजिल में है I पहली मंजिल में स्तम्भों के दो फिट ऊँचाई में हैण्ड रेलिंग (जंगला ) जंगला है जो तख्तों की लघु स्तम्भ से बना है I रेलिंग में बड़े स्तम्भ ही पोस्ट का काम करते हैं I

दूसरेमंजिल में दीवार लकड़ी के तख्तों से बनी है व ज्यामितीय कलाकारी के अतिरिक्त कोई विशेष कला दृष्टिगोचर नही होती है I

निष्कर्ष निकल सकता है कि जौनसार (चकराता , देहरादून ) में सुरेश चौहान के मकान की शैली जौनसारी शैली व आम परम्परागत जौनसारी की शैली के मकान हैं I सभी म्कान्न में ज्यामितीय कला हावी है व स्तम्भों में प्राकृतिक (कमल दल अदि ) कला भी उभर कर आई है I

सूचना व फोटो : स्व दिनेश कंडवाल

यह लेख कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी ,. सूचनाये श्रुति माध्यम से मिलती हैं अत: मिल्कियत सूचना में व असलियत में अंतर हो सकता है जिसके लिए संकलन कर्ता व सूचनादाता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020