गौं गौं की लोककला

ईड़ा गाँव (एकेश्वर ) में सिपाई नेगियों के गौरवपूर्ण क्वाठा में काष्ट कला विवेचना

सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल व मनोज इष्टवाल

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 97

ईड़ा गाँव (एकेश्वर ) में सिपाई नेगियों के गौरवपूर्ण क्वाठा में काष्ट कला विवेचना

( वीरांगना तीलू रौतेली का सगाई भवन )

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखई, खोली , छाज ) काष्ठ अंकन लोक कला 97

(लेख अन्य पुरुष में है जी श्री का प्रयोग नहीं है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

(उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला अंकन श्रृंखला का यह 100 वीं किस्त है। तो कुछ त्यौहार मनाना चाह रहा था। दो तीन दिन पहले ही फेसबुक मित्र उमेश असवाल के चार पांच फोटो व सूचना भेजी थीं जिसमे एक फोटो में प्रसिद्ध गाँव इड़ा गाँव के सिपाई नेगियों के क्वाठा का बिलकुल भग्न प्रवेश द्वार व इसी क्वाठा का अंदरूनी भाग की फोटो भी भेजी थी। भग्न प्रवेश द्वार के बारे में उमेश ने सूचना दी कि लकड़ी के द्वारों को दीमक खा गयी है तो ... । साथ में उमेश असवाल सूचना दी थी कि इसी घर में तीलू रौतेली की मंगनी हुयी थी।

मुझे लगा कि भवन काष्ठ कला 100 वीं क़िस्त में इसी तिबारी भवन विवेचना से बड़ी बात क्या हो सकती थी। किन्तु दो समस्याएं थीं एक तो सिंह द्वार फोटो पर कोई ऐसी निशानी न थी कि क्वाठा भितर लगे व मुझे तीलू रौतेली का ससुराली गाँव की कोई जानकारी न थी। इस पर मनोज इष्टवाल याद आये कि कभी तीलू रौतेली संबंधित ट्रैवलॉग सर्कुलेट किया था। मैं गूगल बाबा की शरण में गया व ईड़ा , तीलू रौतेली व इष्टवाल की शब्दों से खोज आरम्भ की और और बांछित फल भी मिल गया कि जिस क्वाठा के द्वार का अब पता नहीं केवल खंडहर है उसकी तस्वीर इष्टवाल के इंटरनेट लेख में मिल गयी। इष्टवाल का लेख तो बड़ा खजना है पौड़ी गढ़वाल के वास्तु इतिहासकारों के लिए। यदि मनोज इष्टवाल समय रहते इस क्वाठा प्रवेशद्वार का दस्तावेजीकरण नहीं करते तो पता ही न चलता कि इड़ा में इतना बड़ा किला था। यही मैं सबसे प्रार्थना कर रहा हूँ कि पहाड़ों की तिबारियां , बखाई , खोली , छाज सभी एक दिन समय की मांग के कारण या साझी मिल्कियत के कारण ध्वस्त हो जाएँगी यदि फोटो व विवरण से इंटरनेट में दस्तावेजीकरण हो जाय तो आगे किपीढ़ियों के लिए पहाड़ी भवन संस्कृति समझने में सरलता होगी। इष्टवाल के लेख में फोटो ने यह सिद्ध कर दिया कि मैं सही पथ पर हूँ।

चूँकि मैं ना तो कला जानकार हूँ न ही वास्तु इतिहासकार कि महलों /किलों आदि की वास्तु कला पर हाथ आजमाऊँ ना ही मेरी उम्र इतनी है कि मैं अपने लिए दस बीस साल के लिए काम सजा के रखूं . इसलिए मैं इड़ा के इस ऐतिहासिक क्वाठा के महल नुमा आकृति पर आज नहीं लिखूंगा अपितु केवल अंदर मकान के अंदर तिबारी या निमदारी नुमा आकृति पर ही 'की बोर्ड पुश' करूंगा (कलम चलाऊंगा ) . इड़ा सिपाई नेगियों के क्वाठा प्रवेश द्वार पर फिर कभी प्रकाश डालूंगा जब मैं कुछ महलों की कला भाषा /परिभाषिक शब्दों को समझ लूंगा . )

सिपाई नेगियोंके क्वाठा भितर के अंदरूनी निमदारी /तिबारी में काष्ठ कला :-

मकान अंदर से हवेली नुमा है याने तीनों और कमरे व बीच में आँगन व सामने द्वार। अंदर सामने के भाग में पहली मंजिल में बड़ी निमदारी या तिबारी है , जो तीनो ओर है।

सामने तेरह या चौदह स्तम्भ हैं व पड़े (90 अंश ) में दोनों ओर चार चार स्तम्भ हैं। स्तम्भों में प्राकृतिक कला अलंकरण के छाप दीखते तो है किंतु क्या थे उनका फोटो में अभी पता चलना कठिन है। उबर के कमरों के दरवाजों पर भी कला अंकित है और फोटो में साफ़ दिखाई नहीं देती हैं।

वास्तव में सिपाई नेगियों के क्वाठा में काष्ठ कला बाह्य प्रवेश द्वार पर अधिक उभर कर आयी है बनिस्पत अंदरूनी भाग के।

मकान चूँकि किला है तो भवन का बड़ा होना लाजमी है। किला कब निर्मित हुआ की कोई सूचना नहीं है। बड़े भवन होने से ही भव्यता आयी है।

चूँकि भवन का नाम सिपाई नेगी के नाम से है तो निश्चित है कि भवन 1886 से पहले तो नहीं निर्मित हुआ है क्योंकि गढ़वाल में वास्तव में सिपाई नाम लैंसडाउन छावनी स्थापना 1886 के बाद ही अधिक प्रचलित हुआ। 1857 के बाद में सिपाई शब्द भारत में प्रचलित हुआ।

भविष्य अगली किसी कड़ी में क्वाठा के प्रवेश द्वार पर पकाश डाला जायेगा।

सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल व मनोज इष्टवाल

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