© नरेश उनियाल,

ग्राम -जल्ठा, (डबरालस्यूं ), पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड !!

सादर शुभ संध्या प्रिय मित्रों...🙏🌹

पिछले दिनों केरल में हथिनी के साथ हुई बर्बरता ने सबको झकझोर दिया !!

मेरी लेखनी भी कैसे चुप रहती...

मेरे मनभाव... मेरे शब्दों में प्रस्तुत हैं...

लीजिये... समाद फरमाएं.. 🙏🌹🌺


"मानवता है फिर शरमाई "


केरल में जो, हुआ है घटित,

हुआ है मानव, बहुत कलंकित,

देख आंख मेरी भर आई

मानवता है फिर शरमाई !!


क्या कसूर था उस हथिनी का,

अपने पथ,उस पथगामिनि का,

दृष्ट मनुज ने देखा मौका,

फल के नाम से किया है धोखा,

उस बेरहम को दया न आई ,

मानवता है फिर शरमाई !!


सुना था सबसे सभ्य है मानव,

पर लगता तो है तू , दानव,

मूक जानवर तुझसे बेहतर,

कभी भेद करता,नहीं अंतर

सीख,जो उसने सीख सिखाई,

मानवता है फिर शरमाई !!


हर एक दौर में,नाक कटाता,

दुष्कर्मों से बाज न आता,

मानव तुझको क्या हो गया?

जमीर तेरा कहाँ खो गया?

कृत्यों से तेरे, माँ है लजाई,

मानवता है फिर शरमाई !!


पशु हत्या का पाप न कर तू,

प्रभु की लाठी से कुछ डर तू,

जिस दिन उसकी चल जायेगी,

रोके भी न रुक पायेगी,

फिर मत कहना शामत आई,

मानवता है फिर शरमाई !!