उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -48

उत्तराखंड में किनग्वड़/किलमोड़ का उपयोग और इतिहास

उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास - 6

उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --48

उत्तराखंड में किनग्वड़/किलमोड़ का उपयोग और इतिहास

उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -6

उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --48

आलेख : भीष्म कुकरेती

Botanical Name - Berberies asiatica and B. aristata

किनगोड़ा /किलमोड़ व सहोदर

नेपाली नाम - छुत्रो

संस्कृत नाम - कतमकेतरी, दिर्वि आदि

हिंदी नाम - दारुहल्दी /दारुहल्द /चित्रा /छित्रा

किनगोड़ा /किलमोड़ व सहोदर का उपयोग वैदिक युग से भी पहले से होता आ रहा है और किनगोड़ा /किलमोड़ व सहोदर का जन्मस्थल भारत के हिमालय को माना जाता है। मेरा मानना है कि किनगोड़ा /किलमोड़ का जन्मस्थल मध्य हिमालय ही होना चाहिए।

किनगोड़ा /किलमोड़ व सहोदर का वर्णन महाभारत व चरक , सुश्रुवा संहिता में हुआ है।

कंजक्टेवाइटिस में रस अत्यंत लाभदायक माना जाता है। अल्सर , पीलिया , पेट की बीमारियों , बुखार, कैंसर , त्वचा दोष , आंख , यकृत की बीमारियों आदि में किनगोड़ा /किलमोड़ व सहोदर के कई अंग उपयोगी होते हैं।

कहीं कहीं किनगोड़ा /किलमोड़ की पत्तियों व फल से चटनी बनाई जाती है (P S . Mehta et all )

किनगोड़ा /किलमोड़ की पत्तियां भेड़ों , बकरियों के चारे के रूप में भी उपयोग आती हैं।

किनगोड़ा /किलमोड़ लकड़ी जलाने के भी काम आता है। किन्तु कम

किनगोड़ा /किलमोड़ प्राकृतिक बाड़ के काम भी आता है

अनावश्यक अत्त्याधिक दोहन के कारण किनगोड़ा /किलमोड़ व सहोदर प्रजाति ही आज खतरे में आ गया है।


Copyright @ Bhishma Kukreti 31/10/2013