आज हम आटा पिसाई हेतु विद्युतचालित अथवा डीजलचालित चक्कियों पर निर्भर हैं या पिसा पिसाया आटा बाजार से खरीद लाते हैं..

पूर्व में ऐसा नहीं था..आइये जानते हैं अपने पारम्परिक प्राचीन पिसाई साधनों के बारे में..

१--हथचक्की (जँदुरा)--यह चक्की हाथ से घुमायी जाती थी..प्रातः उठकर माँ बहिने चायपान के पश्चात् हथचक्की पर बैठ जाया करती थीं,और ताजा पिसे आटे की बनी रोटियाँ परिवार को परोसती थीं..माँ बहिनों योगा का योगा हो जाता था..शरीर एकदम स्वस्थ..साथ ही परिवार भी हृष्ट पुष्ट.

२--पनचक्की (घराट या घट्ट)--कालान्तर में पानी से चलने वाली चक्कियाँ चलन में आईं..नदियों या बरसाती गधेरों के किनारों पर अवस्थित इन चक्कियों पर लोग गेहूँ,मंडवा,जौ,मक्की आदि अनाजों के थैले लेकर पिसवाने पहुँचते थे.

चक्की के ऊपर बने शंकुनुमा रिंगाल अथवा बांस के बने पात्र में सारा अनाज उडेल दिया जाता था..चक्की के चलायमान होते ही स्वचालित तरीके से (पात्र और चक्की के पाट को लकड़ी के बने पच्चर से जोड़कर) अनाज चक्की में गिरता और पिसता रहता.घन्टेभर में लगभग मनभर अनाज पिस जाता था..और जानते हैं पिसाई की कीमत क्या देनी होती थी ??

पिसाई की कीमत होती थी पिसा हुआ आटा..

जिसे "भगुला" कहते थे.

नई पीढी को पारम्परिक संसाधनों के साथ अद्यतन करने का मेरा यह प्रयास कहाँ तक सफल रहा...कृपया टिप्पणी करें.

|| प्रणाम ||