आलेख :विवेकानंद जखमोला शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

फोटो एवं सूचना साभार -

श्री राजेन्द्र बड़वाल जी ।

ढुंगा सकरा(पौड़ी गढ़वाल) में स्थित जल स्रोत (धारे , मंगारे , नौले ) की पाषाण शैली व कला

उत्तराखंड के स्रोत धारे,पंदेरे, मंगारे और नौलौं की निर्माण शैली विवेचना की इस कड़ी के अंतर्गत आज प्रस्तुत है पौड़ी जनपद, यमकेश्वर विकास खंड के गांव ढुंगा सकरा में स्थित इस धारे की निर्माण शैली और पाषाण कला के बारे में।

जल संसाधनो से समृद्ध यमकेश्वर महादेव की इस पूण्य धरा पर स्थित ढुंगा सकरा की जलधारा(मंगारे) के विषय में प्राप्त जानकारी के अनुसार यह गाँव में स्थित बहुत पुरातन जलधारा है ।सूचना स्रोत स्थानीय ग्रामीण श्री शिव प्रसाद बडोला जी के अनुसार, इसका निर्माण स्थानीय शिल्पकारों द्वारा ही किया गया था। भूमिगत जल के इस सदानीरा सोते को इस स्थल पर एकत्रित करने के लिए स्थानीय तौर पर उपलब्ध पत्थर की सिल्लियों से चिनाई करके आधार दीवार बनाई गई है तथा पानी को जलधारा का स्वरूप देने के लिए खदान से प्राप्त 4फीट लम्बे, एक बालिश्त चौड़े तथा दो बालिश्त ऊंची कटवे पत्थर की सिल्ली को हथोडी छेनी से तराशकर सुंदर गौमुखी मंगारा लगाया गया है।मंगारे के पत्थर के ऊपरी भाग को डिल्ले जैसा आकार दिया गया है और नीचे से खिलते सरसों पुष्प जैसी नक्काशी की गई है। जलधार निकलने के लिए छेनी हथोड़े से छीलकर मंगारे के मुख पर आधे इंच का वृत्ताकार छेद किया गया है। इसमें भी भूतल से पहले ढाई तीन फीट के लगभग ऊंची एक सीधी आधार दीवार चिनी गई है और तब जल स्रोत को इस प्रकार संग्रहण किया गया है कि वह यहां पर धारा का रूप ले सके। मंगारे से छलछलाकर गिरती जल धारा नीचे रखी पठाल के ऊपर गिरते हुए बरबस ही एक फव्वारे जैसा अहसास कराती है। धारे के बगल से पत्थरों व सीमेंट की एक सुरक्षा दीवार बनाई गई है। अत्यंत मनमोहक यह यह बारामासी जलधारा गांव के चार बड़े भागों के लोगों और आने जाने वाले यात्रियों के लिए जीवन संजीवनी के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस जलधारा का निर्माण समयानुसार उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग कर सुनियोजित ढंग से किया गया है। पूर्वजों द्वारा संजोई गई इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण का जिम्मा अब हमारी नई पीढ़ी पर है जिससे प्रकृति का यह अनमोल जलभंडार हमारी जीवन धारा को निरंतर यूं ही प्राणोद्क की आपूर्ति करता रहे ।

प्रेरणा स्रोत - वरिष्ठ भाषाविद साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती जी

सूचना एवं फोटो साभार - श्री शिव प्रसाद बडोला जी ।

आलेख :विवेकानंद जखमोला

🌾 शैलेश 🌾

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड 🙏