गौं गौं की लोककला

कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला

मुख्य सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती

अतिरिक्त सूचना , भास्कर कुकरेती व शालनी कुकरेती बहुगुणा

हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -4

कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

जैसा कि कठूड़ संदर्भ में हिमालय कलायें व कलाकार शीर्षक में उल्लेख किया गया है कि कठूड़ जनसंख्या दृष्टि से ढांगू का एक बड़ा गाँव था जहां 12 जातियां वास करती थीं व सम्भवतया क्षेत्रफल हिसाब से भी कठूड़ बड़ा गाँव है। (यद्यपि कड़ती वाले भी दावा करते हैं कि कड़ती क्षेत्रफल में बड़ा गाँव है ) .

तिबारियों की दृष्टि में कठूड़ में दो तिबारी पधान (राघवानंद कुकरेती परिवार ) परिवार व दो राजपूत परिवार में थीं। पधान राघवा नंद कुकरेती के अतिरिक्त इसी परिवार के देवी प्रसाद कुकरेती की भी तिबारी थी। अब राघवानंद कुकरेती की ही तिबारी बची है जबकि देवी प्रसाद कुकरेती की तिबारी उजाड़ दी गयी है और नया भवन निर्मित हो गया है। तीसरी और भव्य तिबारी (लगभग क्वाठा भितर जैसे ) तिबारी जोध सिंह -प्रताप सिंह नेगी भाईयों की थी। ये दोनों भाई देहरादून जा बसे और तिबारी नत्थी सिंह नेगी को बेच दी गयी थी।

इस लेखक के पास राघवा नंद कुकरेती 'पधान' की तिबारी की सूचना व फोटो मिली है (आभार सतीश कुकरेती ) .

चार स्तम्भ वाली राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' की कठूड़ की तिबारी

राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' की तिबारी भी प्रथम मंजिल पर है। चारों स्तम्भ /खम्बे /सिंगाड़ छज्जे के पत्थर से बने देहरी (देळी ) पर ठीके है। किनारे के दोनों स्तम्भ मिटटी पत्थर की बनी दिवार से लगी हैं। चित्रकारी से समाहित लम्बी ऊपर जाती लकड़ी स्तम्भ व दीवार को जोड़ती है। यह चित्रकारी से भरपूर दोनों लम्बी लकड़ी अंत में छत कीकाष्ठ छज्जे से जा मिलते हैं। चारों स्तम्भ तीन मोरी /खोळी /द्वार बनाते है और चारों मोरी लगभग 6 फ़ीट से ऊँची होंगी ही। चारों मोरी आयत व लम्बाई चौड़ाई में समान हैं।

प्रत्येक स्तम्भ का आधार उलटा कमल जैसे है और कमल खिलने के स्थान पर जोड़ है जिसके चारों ओर गोलाई लिए काष्ठ गुटके हैं। फिर इन जोड़ों से प्रत्येक स्तम्भ में ऊपर की और उठते कमल पंखुड़ियां हैं जो कुछ ऊपर खिलते जैसे लगती हैं और वहां से फिर नई मोटाी अंडाकार आकृति जो धीरे धीरे कम होती है ऊपर की ओर जाती है और कुछ ऊपर एक जोड़ है जो गोलाई में गुटकों से बना है। यहां से ही स्तम्भ से मेहराब /arch निकलते है। मुकुट आकार के तीन मेहराब /arch पर भी चित्रकारी है। जिस जोड़ से मेहराब /arch शुरू होता है वहीं से एक काष्ठ आकृति जैसे थांत ऊपर की ओर जाती है जो मकान की छत के छज्जे से मिलते हैं।

तिबारी के प्रत्येक मेहराब में दो चक्राकार फूल व चित्रकारी

तिबारी के प्रत्येक मेहराब /arch के किनारे दो दो चौड़े पंखुड़ियां काले चक्राकार फूल है जिसके केंद्र में गणेश ( जैसे पूजा वक्त गोबर का गणेश अंडाकार बनाया जाता है ) है। तीनों मेहराबों में कुल 6 फूल हैं। प्रत्येक थांत पर भी नयनाभिराम करते चित्रकारी है। मेहराब से और पत्थर की छत के छज्जे में मध्य कई मोटे पटले / पट्टियां हैं जिन पर कई प्रकार की आनंददायक चित्रकारी है।

छत के काष्ठ छज्जे से भी शंकु नुमा कलाकृति लटक रही हैं।

फोटो में कोई मानवाकृति अथवा पशु नहीं दीखते हैं।

राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' की तिबारी के स्तम्भों पर कमल पंखुड़ी आकृति , झैड़ के चित्रमणि मैठाणी की तिबारी स्तम्भ व मित्र ग्राम के नारायण दत्त जखमोला की तिबारी स्तम्भ के सामान ही है। मित्रग्राम व कठूड़ की तिबारियों में व झैड़ के तिबारी स्तम्भों में समानता है।

आकलन से लगता है कठूड के राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' की तिबारी निर्माण समय 1900 इ के पश्चात ही होगा

मुख्य सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती

अतिरिक्त सूचना , भास्कर कुकरेती व शालनी कुकरेती बहुगुणा

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