गौं गौं की लोककला

पुजालटी गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( कोटि बनल , तिबारी , बाखली , खोली ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 128

सूचना व फोटो आभार : हिमालयी संस्कृति वेत्ता राजेंद्र बडवाल

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 128

कोटि बनल ( बड़कोट उत्तरकाशी ) में कोटि बनल शैली में निर्मित 300 साल पुराने मकान में काष्ठ कला , अलंकरण ( नक्कासी )

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( कोटि बनल , तिबारी , बाखली , खोली ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 128

(लेख अन्य पुरुष में हैं जी श्री है प्रयोग हुए हैं )

संकलन - भीष्म कुकरेती -

इस मकान की कला देख कर कहा जा सकता है कि कला की परिभाषा 1 +1 = 2 या 1 +1 =11 वाले सिध्दांत से नहीं अपितु कला की परिभाषा 1 +1 = अनंत से परिभाषित होनी चाहिए

इस मकान का चित्र की सूचना भेजते समय हिमालयी संस्कृति वेत्ता राजेंद्र बडवाल ने लिखा कि उत्तरकाशी जिले के राजगढ़ी तहसील में बड़कोट में मकान की कोटि बनल शैली के कारण ही गांव का नाम कोटि बनल पड़ गया है। कोटि बनल के निकटवर्ती गांव हैं गैड , बखरेती , घंडाला आदि। मकान 300 साल पुराना है व कभी यहां सात आठ परिवार रहते थे अब पूरा गाँव बस गया है। मकान को देखने देश विदेशों से सैलानी आते रहते हैं। कोटि बनल शब्द वास्तव में संस्कृत जोड़ शब्द काष्ठ कोण से निकला है जिसका अर्थ होता है लकड़ी का कोना। कोटि बनल का सीधा अर्थ है दीवार के कोने में लकड़ी का ही प्रयोग। यह मकान सात मंजिला है (1 +6 ) .

ऐसे भवन 900 साल तक भी खड़े रह सकते हैं व जलवायु रोधी तो हैं ही भूकंप रोधी भी हैं। यही कारण कि कुछ सालों पहले तक उत्तरकाशी व जौनसार बाबर में कोटि बनल शैली के मकान ही निर्मित होते थे। देवदारु की लकड़ी १००० साल तक जलवायु को झेलने में सक्षम होती है व मकान की दीवारें देवदारु लकड़ी की बलि या कड़ी व रेड़ी हैं तो जलवायु व भूकंप दोनों के रोधी बन जाते हैं। मकान आयताकार प्लेटफार्म पर बनाये जाते हैं व एक तह देवदारु की लकड़ी की व दूसरी तह रेडी (पत्थर ) की होती है। ऐसे बहु मंजिले मकान में गीली मिट्टी का मस्यट प्रयोग नहीं होता है तो जलवायु के प्रभाव से अछूते रह जाते हैं ऐसे मकान। मकान जैसे जैसे ऊँचा होता जाता है पत्थर की मात्रा कम होती जाती है व लकड़ी बढ़ता जाता है। या पत्थर का भार अधिक हो तो लकड़ी का भार कम हो जाता है। अंदर की दीवारों व नीचे फर्श में मिट्टी से /लिपाई प्लास्टरिंग होती है ।

अधिकतर मकान दुखंड या दो इकाईयाँ वाले होते हैं। कोटि बनल बनाते समय अधिकतर तल मंजिल में खड़कियाँ नहीं होती और एक प्रवेश द्वार होता है , कोटि बनल शैली के मकान गढ़वाल के चार -छह खम्बों के ऊपर आधार में चौकोर बुसुड़ /मचान नुमा आकृति के होते हैं।

इस प्रस्तुत मकान में चार मंजिल तक सपाट ज्यामितीय कला अंकन है व विशेष नक्कासी के दर्शन ही होते हैं। तल मंजिल में दो द्वार हैं व सिंगाड़ व मुरिन्ड में ज्यामितीय कला छोड़कर कोई अन्य प्रकार का अलंकरण नहीं है। यही हाल चौथी मंजिल तक है। बीच में दूसरे व तीसरे मंजिल में झरोखे हैं। छटी सातवीं मंजिल में वास्तविक कला दर्शन होते हैं। छटा व सातवें मंजिल नीचे वाले भाग से चौकोर में बड़े हैं व ूपी मंजिलों में कई प्रकार की कला दृष्टिगोचर होते हैं। मकान के ऊपरी भाग कला दृष्टि से अपने उच्चतर स्तर पर पंहुचता है। मंजिलों में ज्यामितीय कला व अनंत निराकारी (abstract ) धरातल पर पंहुच जाता है कला है किन्तु दर्शक इसका वर्णन करने में अपने को असक्षम पाता है। छटे मंजिल में दरवाजों के बाहर दीवालगीर /ब्रैकेट हैं जो कलायुक्त हैं। ऊपरी मंजिलों के मध्य बिभाजिय लकड़ी की कड़ियों व झालरों व जंगले नुमा आकृतियां है जो नक्कासी की लाजबाब मिसाल हैं। कोई जटिलता नहीं है तब भी काष्ठ कला दर्शक को आश्चर्य में डालने में सक्षम है।

एक मत है कि उत्तरकाशी का यह इलाका प्राचीन समय में गढ़वाल को काष्ठ कला निर्यात (concept and Material ) करने हेतु प्रसिद्ध था। एक अनुमान अनुसार उत्तरकाशी का प्रभाव जौनपुर काष्ठ कला पर पड़ा व जौनपुर का प्रभाव टिहरी पर व टिहरी का प्रभाव इतर क्षेत्रों में पड़ा। हाँ इसमें बिबाद हो सकता है कि यदि उत्तरकाशी की मकान कला का प्रभाव गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में पड़ा होता तो प्राचीन काल में क्यों नहीं गढ़वाल के अन्य भागों में लकड़ी के मकानों का प्रचलन हुआ।

निष्कर्ष निकलता है कि राजगढ़ी के कोटि बनल गाँव के इस बहु मंजिला मकान की कला अविस्मरणीय है व शब्दों की जगह देखने में ही लाभ है या शायद अभी तक विशेष शब्दावली प्रकाश में नहीं आयी जो आम पाठकों के से रूबरू करा सके। आशा है कि यह लेखक धीरे धीरे इन स्थानीय शब्दावली बटोरेगा व स शब्दावली को पर्थकों के सामने लाएगा।

सूचना व फोटो आभार : हिमालयी संस्कृति वेत्ता राजेंद्र बडवाल

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020