गौं गौं की लोककला

घेस (देवल ,चमोली) की एक मोरी में काष्ठकला ,अलंकरण अंकन , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : प्रसिद्ध नाट्यशिल्पी डा राकेश भट्ट

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 134

घेस (देवल ,चमोली) की एक मोरी में काष्ठकला ,अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 134

(अलंकरण व कला पर केंद्रित)

संकलन - भीष्म कुकरेती

चमोली गढ़वाल विशेस्त्र जो भाग कुमाऊं के निकट है या तिब्बत की कूड़ौ बणौट कौंळ ( मकान निर्माण शैली ) गढ़वाल के अन्य भागों से बिगळीं (अलग ) है , इस भाग के मकानों की शिल्प शैली पर कुमाऊं की बाखली /बखाई का प्रभाव साफ़ साफ नजर आता है । बेदनी बुग्याल का ट्रैकिंग आधारिक कैंप स्थल है में भी कुमाऊं पद्धति की छाप वाले।

डा राकेश भट्ट ने उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला , अलंकरण उत्कीर्णन , नक्कासी श्रृंखला हेतु एक फोटो साझा की जो घेस (देवल , चमोली ) के एक मकान की पहली या दुसरे मंजिल की मोरी का है। इस तरह की खड़की या मोरी दक्षिण गढ़वाल या टिहरी में कम ही मिलती हैं। इस काष्ठ आकृति को सलाण गढ़वाल में मोरी कहा जाता है। आज इस मोरी पर चर्चा होगी।

मोरी केवल झाँकने काम आती है। घेस के अनाम मालिक के मकान की इस मोरी में दोनों और दो दो स्तम्भों /सिंगाड़ों से बने हैं। दो जोड़कर एक .याने कुल चार स्तम्भ है। दोनों स्तम्भ मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष से पहले ही . प्रत्येक स्तम्भ का आधार चौखट डौळ हैं व उसके ऊपर ड्यूल (wood plate ring ) है फिर ऊपर दूसरा डौळ है जिसके ऊपर उलटे कमल दल (पंखुड़ियां ) आकृति है फिर तीन अलंकृत ड्यूल हैं फिर नक्कासी युक्त घुंडी या कुम्भी आकर है। इसके ऊपर नीचे के ,ड्यूल कमल दलों का दोहराव है। फिर सीधा कमल फूल है व उसके ऊपर स्तम्भ की कड़ी ऊपर जाती है। इस शफ्ट या स्तम्भ कड़ी में फर्न पत्तियों जैसी आकृति का अंकन हुआ है , इस कड़ी के ऊपर उलटा कमल दल है फिर ड्यूल हैं व स्तम्भ के सबसे ऊपर उर्घ्वगामी (ऊपर खिला ) कमल पुष्प है और इस कमल पुष्प सेक्स स्तम्भ सीधी कड़ियों में परिवर्तित हो चौखट मुरिन्ड। मथिण्ड /शीर्ष बनाते हैं। सभी स्तम्भों में यही कला अंकन या नक्कासी हुयी है।

झरोखे के नीचे याने मोरी आधार में काष्ठ पट्टिका लगी है जो हाथ आदि टिकाने के भी काम आता है। इस पट्टिका में कोई कलयुक्त अंकन नहीं हुआ है।

कला कभी भी 1 +1 =2 या 11 से नहीं टोली जाती अपितु अनंत सम्पूर्णता से टोली जाती है।

घेस की इस मोरी की खूबसूरती इसके स्तम्भ में कला है और प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण का नायब मिश्रण है।

सूचना व फोटो आभार : प्रसिद्ध नाट्यशिल्पी डा राकेश भट्ट

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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