" हम इतने निष्ठुर तो न थे"

सोसियल साइट पर कई जगह इस खबर पर चर्चा चल रही है कि गुड़गांव से उत्तरखण्ड गये एक फैक्ट्री में काम करने वाले जसपाल के बच्चों के साथ अपने गाँव के दुकानदारों एंव टैक्सी चालकों द्वारा इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार किया गया तो यह हम उत्तरखण्डियों द्वारा किया गया कृत्य अमानवीय व निंदनीय है।

अगर इस खबर में थोड़ी भी सत्यता है तो सोचनीय स्थिति है कि उत्तराखण्ड की संस्कृति व इंसानियात का भविष्य किस कदर अंधकारमय हो जायेगा ।

अगर इस घटना में कुछ प्रतिशत भी सत्यता है तो।

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हमारे नैनीडाडा ब्लोक से एक निंदनीय घटना समाने आयी है, दुख सिर्फ अपना होता है, दुसरे का दुःख हमे दिखता है इसका प्रमाण हमारे क्षेत्र हल्दुखाल से मिला है,

घटना कल की है -------

कमेडा तल्ला (हल्दुखाल) के जसपाल रावत के परिवार के साथ हुयी, जसपाल रावत और उनका परिवार गुडगांव मे रहता है जसपाल रावत किसी कम्पनी मे जाँब करते हैं,

जसपाल रावत ने अपने परिवार को 9 तरीक को उत्तराखंड रोडवेज मे गुडगांव से गाँव के लिए बैठा दिया, वे खुद गांव नही आये क्योकि उनकी कम्पनी खुल चुकी थी, इसलिए उन्होने अपने परिवार को गांव भेज दिया,

जब उनका परिवार कोटद्बार से पुरी मेडिकल जांच करने के बाद अपने गांव के निकलने रोड वैज मे 10 को यानि कल तो हल्दुखाल जाते समय बीच मे स्टेशन #रत्तुढाबा पर बस रुकी, रोडवेज के चलाक और परिचालक ने वह पे नाश्ता किया लेकिन बाकि जो लोग बस मे थे उन्हे तो ना किसी ने खाना दिया ना ही पानी पैसे देने के बाद भी लोगो को कुछ नही दिया, उनको हैडपप्प से पानी तक नही भरने दिया 😡😡😡, बच्चो तक कुछ खाने को नही दिया दुकानदारो से ये कैसे लोग है यार, ये तो लोगो Toilet (पेशाव) तक नही करने दिया।। आखिर ऐसे कैसे हो सकता है,,, इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं।।।

चलो यहा तक तो ठीक था प्ररन्तु जब जसपाल रावत जी का परिवार हल्दुखाल स्टेशन पर उतरा तो वह के दुकानदारो ने भी उन्हे समान नही दिया, जब उनकी पत्नी समान लेनी गयी तो दुकानदार ऐसे घुर रहे थे बल, शर्म के मारे वहा वापिस आ गयी और अपने बच्चे को भेजा रूपया देकर (सुबह से बच्चे भुखे पेट थे खाना ना पानी तक नही पिया था) समान लेने तो दुकानदार ने भी उसे समान नही दिया किसी भी दुकानदार ने उन्हे समान नही दिया, क्या इन दुकानदारो के बच्चे नही है क्या जो कम से कम इसानियत के नाते पहले तो फ्री मे देते नही तो पैसे मे दे देते,,

बात यही खत्म नही हुयी हल्दुखाल मे उन्हें पानी के नल से पानी तक नही भरने दिया,,, हद कर दी साहब लोगो ने हमारे क्षेत्र के।।

भुखे और प्यासे वो अपने गांव कमेडा तल्ला के लिए निकल गये हल्दुखाल से कमेडा की दूरी कम से कम पैदल 15 किलोमीटर है, और साथ मे छोटे बच्चे और अगर कोई थैला भी रहा हो तो सोचो कैसे गये वो आप ही, वह पर टैक्सी वाले भी थे वो उन्हे किराये दे रही थी परन्तु किसी ने भी उनको ना छोडा,,, हद कर दी हमारे क्षेत्र के लोगो ने।।।

बहुत दुखद 😥😰😰🙏🙏


विश्वेश्वर प्रसाद