गढ़वाल में पंवार वंश

पंवार वंश का राज शासन कब शुरू हुआ, इस पर भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। अधिकांश इतिहासकार पंवार वंश की नींव को चाँदपुर गढ़ से मानते हैं। पं० हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार चाँदपुर नरेश कनकपाल ही पंवार वंश की गढ़वाल नींव डालने वाला था। वह राजा भानुप्रताप का दामाद था। क्षेमराज नामक राजा जो परीक्षित के पुत्र जन्मेजय की चौदहवीं पीढ़ी में हुआ, हस्तिनापुर (दिल्ली) के सिंहासन पर विराजमान था। उसके विसर्प नामक मंत्री ने राजा को मारकर स्वयं सिंहासन हथिया लिया। राजा की गर्भवती विधवा रानी शत्रु से भयभीत होकर अपने सतीत्व और गर्भ की रक्षा के लिए एक चतुर और विश्वासपात्र दासी के साथ रात्रि को महल से भाग चली। मार्ग में अनेक कष्ट सहती हुई वह बदरिकाश्रम में ऋषियों की शरणागत हुई। रानी का राजपाल नामक पुत्र हुआ। ऋषियों ने उसे शिक्षा दी और शास्त्र विद्या में निपुण कर उसका राज्याभिषेक कर दिया। राजपाल का पुत्र अनंगपाल हुआ। अनंगपाल की एक पुत्री थी। उसकी कोख से पृथ्वीराज नामक पुत्र रत्न हुआ। पृथ्वीराज की आगे की पीढ़ी में भानु प्रताप हुआ। भानुप्रताप का भी कोई पुत्र नहीं था। केवल दो कन्याएँ थीं। ज्येष्ठ कन्या का विवाह उसने कुमाऊँ के एक राजकुमार के साथ कर दिया तथा कनिष्ठ कन्या का विवाह कनकपाल से किया और उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

कनकपाल के संबध में माना जाता है कि कनकपाल 'धार नगरी' का परमार (पंवार) जाति का राजकुमार था। स्वभावत: वह आध्यात्मिक प्रवृत्ति का शासनपटु व्यक्ति था। तीर्थाटन का उसे बहुत शौक था। तीर्थयात्रा पर वह बदरिकाश्रम पहुँचा। चाँदपुर गढ़ी के राजा भानुप्रताप ने अपनी कनिष्ठ कन्या का विवाह कनकपाल से कर दिया तथा अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर राज्याभिषेक किया। रतूड़ी जी एक शिलालेख का हवाला देते हुए कनकपाल के राज्याभिषेक को संवत 945 (888 ई०) मानते हैं। (गढ़वाल का इतिहास-रतूड़ी, पृ०170-71)

राहुल सांकृत्यायन इस शिलालेख को अमौलिक मानते हुए पंवार वंश की शुरुआत कत्यूरी वंश की समाप्ति के बाद अर्थात 1200 से 1400 ई० के बीच मानते हैं। (हिमालय परिचय-1 राहुल, पृ०116)

पंवार राजाओं की प्राप्त वंशावलियाँ अलग-अलग हैं। हार्डविक (1796 ई०), ब्रेकेट (1849 ई०), विलियम्स तथा एक वंशावली अल्मोड़ा से प्राप्त हुई थी। इसके अलावा राज दरबारी मौलाराम द्वारा लिखित 'गढ़ राजवंश' मानशाह पर लिखा 'मानोदय' काव्य तथा प्रदीप शाह के दरबारी कवि द्वारा रचित 'रामायण प्रदीप' से भी पंवार वंश पर प्रकाश पड़ता है। (वंशावली सूची नहीं दी जा रही है। )

पंवार शासकों का स्पष्ट इतिहास सन् 1500 ई० से ही मिलता है। राजा अजयपाल को 1500 ई० के आसपास छोटे-छोटे गढ़ों को एक करने में सफल हुआ तथा लगभग पूरे गढ़वाल पर शासन करने लगा था, के बाद सभी वंशावलियाँ मिलती-जुलती हैं।

इन वंशावलियों में 1500 ई० से 1950 ई० तक 24 राजा 450 वर्ष तक शासन करते हैं। यदि इसी आधार पर एक राजा का औसत कार्यकाल लगाया जाए तो 19 वर्ष के लगभग होता है।

कनकपाल से अजयपाल तक चाँदपुर गढ़ी के राजाओं का इतिहास नहीं मिलता है। वंशावली सूचियाँ तो हैं पर काल निर्धारण नहीं हैं। अजयपाल से पहले यहां कई ठकुरी व खस गढ़ाधिपति थे। माना जाता है कि अजयपाल ने ही इन छोटे-छोटे गढ़ों का एकीकरण किया था।


(साभार- गढ़वाल हिमालय- रमाकान्त बेंजवाल)