म्यारा डांडा-कांठा की कविता

कै बुद कैकी

कै बुद कैकी बामण , करदा बिदा बरात

दगडया ऐ गेन तब गौरी की ब्व्दीन जोडिहात

जीजा क दगड त्वडे नि देई

जाओ नेग हमारू यू चुकाई

निम्णि मुखडी देखी स्याळीयूँ की

कुम्पळी स्वाणि जनी फ्यूंळी की

ब्वल्दी शिव तुम दगडू नि त्वाडा

नातो भलो प्रेम को ज्वाडा

चलो दगड कैलास हमारा

दास छंवां बिन मोल तुम्हारा

विजया बोद जंगी छें छिन क्या

गाणी करदौ गिच्ची टपटये या

ल्हाओ नेग की झगुली बिकाओ

जोगी कर्ज हमरु ल्ही जाओ

नन्दीश्वर ल़ा बोली तब , झगुली मोल नी ह्वेली

तवे तैं छोडि नी जौंलू हम छे तू प्यारी स्याळी

(महाकवि कन्हया लाल डंडरियाल : नागर्जा , भाग -१ शीर्षक - बिदै , पृष्ठ २३० )

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