डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलेदार मकानों में काष्ठ अंकन कला /लोक कला -8
गढ़वाल, कुमाऊं उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 85
डबरालस्यूं (पौड़ी गढ़वाल ) में बमोली एक समृद्ध ही नहीं अपितु राजनैतिक दृष्टि से भी सजग गाँव रहा है। आज रावत बंधुओं के जंगलेदार मकान पर काष्ठ कार्य पर चर्चा होगी। जंगलेदार मकानों का प्रचलन वास्तव में 1940 के बाद बढ़ा व अधिकतर उस समय के जंगलों में फारेस्ट चौकी शिल्प का भी प्रभाव दीखता है याने आइरिश शैली का गढ़वाल भवन निर्माण शैली में कुछ कुछ प्रवेश। प्रस्तुत बमोली के ढैपुर (2 . 5 मंजिल ) जंगलेदार मकान में ब्रिटिश या आइरिश प्रभाव तो साफ झलकता है ,पहली मंजिल में छप्पर पठळ (सिलेटी पत्थर ) के स्थान पर चद्दर का छप्पर है व मकान में धूम्र चिमनियां भी हैं । ढैपुर जंगल दार मकान आकर्षक है व बरबस ही ध्यान खींचता है। काष्ठ कार्य दृष्टि से तीन जगह महत्वपूर्ण है। तल मंजिल में मकान के साइड में भरपूर जंगला व पहली मंजिल पर बिठाया गया जंगला व दरवाजों पर , खड़कियों में कायस्थ कला। मकान दुखंड /तिभित्या है।
तल मंजिल का जंगला शायद रक्षा हेतु बांधा गया है अन्यथा दक्षिण गढ़वाल में तल मंजिल में बगल में जंगला बिठाने का प्रचलन नहीं मिलता है। तल मंजिल के जंगल स्तम्भों व रेलिंग में ज्यामितीय कला के अतिरिक्त कोई अन्य अलंकरण के दर्शन नहीं होते हैं।
पहली मंजिल पर लकड़ी का छजजा है व छज्जे पर दो ओर (सामने व बगल में ) लगभग 16 काष्ठ स्तम्भ है जो ऊपर छपरिका के आधार पट्टिका से मिलते हैं। तल मंजिल व पहली मंजिल के स्तम्भ आधार में दो फिट तक दोनों और छोटे स्तम्भ चिपकाए गए जो स्तम्भ को एक नई छवि देने में सफल हैं। दरवाजों , खिड़कियों व द्वार के सिंगाड़ों , मुरिन्डों में केवल ज्यामितीय कला मिलती है इस मकान में।
भवन में गोलाईपन कम हावी है अपितु चौकोर पन अधिक हावी है जो आइरिश प्रभाव का द्योत्तक है। मकान संभवतया सन 1960 के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा।
निर्ष्कर्ष निकलता है कि बमोली के रावत बंधुओं के जंगलेदार ढैपुर सहित मकान में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय अलंकरण हुआ है।
सूचना - फोटो आभार - बिक्रम तिवारी , 'Vicky '
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