गौं गौं की लोककला

मित्रग्राम ढांगू , हिमालय की तिबारी काष्ठ कला

आभार छाया चित्र व सूचना सौजन्य - हरी प्रसाद नारायण दत्त जखमोला (मित्रग्राम )

हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -3

ढांगू , गढ़वाल , हिमालय की तिबारी (भवन काष्ठ कला ) -3

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

जैसा कि पिछले एक अध्याय में मित्रग्राम की लोक कलाओं का विवरण देते लिखा गया था कि मित्रग्राम , मल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल का एक महत्वपूर्ण गाँव है जिसमे लगभग सभी परिवार (एक परिवार शिल्पकार ) जखमोला है। ह्री प्रसाद जखमोला ने सूचना दी थी कि कुछ समय पहले मित्रग्राम में चार या पांच तिबारियां (पहले मंजिल पर बरामदा काष्ठ नक्काशीयुक्त ) सही सलामत थीं जबकि अब केवल नारायण दत्त जखमोला की तिबारी ही सही सलामत है। यह तिबारी नारायण दत्त जखमोला ने लगभग सन 1950 के आस पास किन्ही गाँव वालों से क्रय किया था.

तिबारी याने दो तल बाह्य कमरों के ऊपर काष्ठ नक्कासीदार युक्त बरामदा।

नारायण दत्त जखमोला की तिबारी पर चार स्तम्भ है दो स्तम्भ अलग अलग दीवार पर सटे हैं। दो स्तम्भ मध्य में है और इस तरह तीन मोरी /द्वार /खोली बनती है। प्रत्येक स्तम्भ जब शीर्ष की ओर पंहुचना चाहते है तो दो स्तम्भों के शीर्ष से कलायुक्त , धनुषाकार आर्क /मेहराब बनती है।

प्रत्येक स्तम्भ देहरी (छज्जे का पत्थर ) पर आधारित हैं। आधार पर उल्टे कमल पंखुड़ियां साफ़ साफ़ झलती है और दर्शक को मुग्ध करने में आज भी सक्षम हैं। फिर जिस जोड़ से कमल की पंखुड़ियां नीचे को ओर निकलती है उस जोड़ में नकासी युक्त गुटके है जो गोलाई में सारे स्तम्भ को घेरे होते हैं। जोड़ में भी मुग्ध करने वाली गवाक्षजलम है। फिर जोड़ से सीधे कमल की पंखुड़ियां ऊपर की ओर खिलती सी हैं। जब कमल फूल बनता है तो नक्कासी युक्त खभा ऊपर चलता जाता है जो एक जोड़ में समाप्त होता है और उस जोड़ के कुछ ऊपर अर्ध वृताकार आर्क /मेहराब शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के आर्क /मेहराब से मिलता है और चक्षु आनंद दायक धनुष सा बनाते है। बीच के स्तम्भों /खम्बाों / सिंगाड़ों से दोनों ओर आर्क/मेहराब/अर्धमंडलाकार आकृति बनते हैं और स्तम्भ /सिंगाड़ के बीच से कलाकृति शुरू होती है जो छत की पटिया /लकड़ी का स्लैब से मिलता है इस बीच स्तम्भ में उभरी हुयी नक्कासी मिलती है। मेहराब में प्रकार की बेल बूटेदार है। प्रत्येक अर्धमंडलाकार आकृति /आर्क के चक्राकार फूल दिखाई। की अपने बड़ा फूल सा आनंद देता है। फूल के केंद्र में गणेश (अंडकार गोल आकृति जैसे पूजा में गोबर का गणेश बनाते ) होती है।

मेहराब या अर्धमंडलाकार आकृति के ऊपर मोटी लकड़ी की पटिया है जो छत के दास (टोड़ी ) से नीचे है और सिलेटी पत्थर वाली छत पट्टी व दास पर तकि है। छत के पत्थर इस तरह लगे हैं कि तिबारी लकड़ी पर वारिस का पानी पानी सीधे नहीं। पट्टी पर कलाकृति रही भी होगी तो आज नहीं दिखती।

ऊपर जाते /नीचे आते कमल पंकी खुड़ियों आकृति व जड़ों के बीच खम्बों पर उत्कीर्ण हिसाब से मित्रग्राम के नारायण दत्त जखमोला की तिबारी के स्तम्भों की उत्कीर्णन / कलाकृति लगभग झैड़ के चित्रमणि मैठाणी की तिबारी के स्तम्भ से मिलती जुलती ही है। मेहराब या अर्धमंडलाकार आकृति आये उत्कीर्ण कलाकृति प्रशंसनीय है। कोई पशु या पक्षी की आकृति नहीं दिखी ना ही फोटो में कोई नजर न लगे वाला कोई भयानक आकृति दिखाई देती है। दीवार से लगे किनारे के दोनों स्तम्भ भाग में भी चक्षु आनंद दायक कलाकृति उभर कर आयी हैं.

हरी प्रसाद जखमोला (नारायण दत्त जखमोला के द्वितीय पुत्र ) के अनुसार तिबारी डेढ़ सौ साल पुरानी होगी किन्तु ढांगू में तिबारियों का प्रचलन सम्भवतया 1900 के आस पास ही शुरू हुआ।

सूचना वा फोटो सौजन्य - हरी प्रसाद नारायण दत्त जखमोला (मित्रग्राम )

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