सादर शुभ संध्या प्रिय मित्रों..
एक नूतन कृति.. प्रस्तुत है.. समाद फरमाइए...
"मजदूर"
"मजदूर"
"क्लांत दिनभर के श्रम से,
आयी जो प्यारी नींद है,
सच कहूं तो स्वर्ण विस्तर
पर, भी ना वो नसीब है !!
है परिश्रम कर्म उसका,
सत्य ही ईमान है,
दिल अमीरी से भरा है,
जेब से वो गरीब है !!
मुस्कराहट बांटता है,
मुफ्त सबको प्यार से,
दोस्त कोई है नहीं,
न किसी का वो रक़ीब है !!
खाट टूटी है तो क्या,
बिस्तर नहीं है नरम तो क्या,
स्वप्न उसके हैं सजीले,