गौं गौं की लोककला

कठूड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -5

सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 9

बजारी कठूड़ में बासवा नंद कुकरेती ' पटवारी जी ' की जगलादार तिबारी में में काष्ठ कला

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

बजारी कठूड़ के बासवा नंद कुकरेती पटवारी पद पर थे व प्रसिद्ध व्यक्ति थे। बासवा नंद कुकरेती 'पटवारी जी ' ने एक मकान बनवाया जिसमे बैठक भी थी व काष्ठ कलाकृति उत्कृणित हिन् व यह मकान जंगलेदार माकन की श्रेणी में आता है और जब कि इस मकान में मेहराब भी हैं।

पहली मंजिल पर बैठक भी है व सीढ़ियां अंदर से ही पहली मंजिल में पंहुची हैं। तल मंजिल में कमरों के दरवाजों पर बेल बूटों का अंकन आज भी साफ़ साफ़ दिकता है।

पहली मंजिल का छज्जा पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर ठीके हैं। पहली मंजिल के छज्जे पर जंगल है। छज्जों के दासों से शुतु होते इस जंगल में 11 काष्ठ स्तम्भ हैं। और ये 11 स्तम्भ 10 खोली /मोरी /द्द्वार बनाते हैं।

जंगला स्तम्भ का आधार जो तल मंजिल के दास (टोड़ी जो काष्ठ के हैं ) से शुरू होता है व चौकोर , आयताकार मोटा आधार है। फिर जब यह आधार समाप्त होता है तो उसी में जंगलों के बेलन हैं। जब आधार समाप्त होता है तो स्तम्भ का उल्टा कमल पुष्प दल मिलता है व फिर इस उल्टे पुष्प व ऊपर ऊर्घ्वाकार कमल दाल के मध्य गुटके वाला गोला आकर स्थापित है। इस गुटका नुमा आकृति से ऊर्घ्वाकर कमल पुष्प दल शुरू होता और पुष्प दलान्त से स्तम्भ गोलाई में ऊपर बढ़ता है व फिर ऊर्घ्वाकर कमल पुष्प दल शुरू होता है और पुष्प दलान्त से एक तरफ स्तम्भ का सबसे ऊपरी भाग छत की निचले तल के छज्जे से मिलता है तो वहीँ कमल पुष्प दलान्त से अर्ध मंडलाकार आकृति शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडलकार आकृति से मिल मेहराब का निर्माण करते हैं इस तरह इस मकान के ऊपरी मंजिल में कुल दस मेहराब है याने प्रत्येक खोली में एक मेहराब।

मेहराब की कटाई में आनंद दायक आकृतियां हैं . प्रत्येक मेहराब के पत्ते /पट्टी के किनारे पर एक चक्राकार पुष्प है व बीच में अण्डाणुमा गणेश प्रतीक आकृति अंकित है। जहँ पर दो मंडलाकार मिलते हैं वहां पर शुभ प्रतीक भी है।

खोली के आधार पर जंगल हैं और कुल दस जंगल हैं

पहली मंजिल के कमरों के दरवाजों व खिड़कियों पर कोई विशिष्ठ कला आकृति नहीं मिलती है बस चौकोर स्ट्रिप गढ़े मिलते हैं।

इस तरह की शैली के मकान निर्माण सन 1947 /1950 के बाद ही शुरू हुआ था व इसी तरह का जंगलेदार मकान मित्रग्राम मल्ला ढांगू के शेखरा नंद जखमोला की भी था।

सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )

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