गौं गौं की लोककला

सौड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर काष्ठ अंकन कला -1

सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी व कीर्ति सिंह नेगी सौड़

हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -5

हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -

सौड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर काष्ठ अंकन कला -1

The House wood carving Art of Saur , Malla Dhangu , Garhwal, Himalaya -4

हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 4

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

सौड़ मूलतः सैकड़ों साल से जसपुर ग्राम का अहम एक हिस्सा रहा है और अब भिन्न ग्रामसभा हो गयी है। सौड़ का अर्थ होता है चौड़ा /चौरस तो यह छोटा गाँव भी घाटी की चौरस भूमि पर है। गाँव में केवल नेगी परिवार ही हैं। सौड़ दसियों साल से शिल्प हेतु मल्ला ढांगू व बिछला ढंग ही नहीं तल्ला ढांगू व् हिंवल तटीय उदयपुर पट्टी में भवन निर्माण व बढ़ई गिरी हेतु प्रसिद्ध गाँव रहा है। आज भी सौड़ के कई परिवार भवन निर्माण का ठेका लेते हैं। हाँ अब सौड़ में भवन निर्माण शिल्पी नहीं मिलते हैं और बढ़ई शिल्प कला तो सौड़ से समाप्त ही हो गया है।

तिबारियों (पहली मंजिल में काष्ठ उत्कीर्ण युक्त बैठक ) के संदर्भ में सौड़ में कुछ वर्ष पहले दो कलायुक्त काष्ठ तिबारियां विद्यमान थीं। एक थी बणवा सिंह नेगी पिता की व दूसरी शेर सिंह नेगी की तिबारी। बणवा सिंह नेगी की तिबारी नष्ट सी हो गयी है । शेर सिंह नेगी की तिबारी अभी भी गर्व से खड़ी है। शेर सिंह नेगी इलाके के कलायुक्त व शगुन युक्त भवन निर्माण शिल्पी (ओड ) थे। ढांगू के लोग गर्व से कहते थे कि उनका भवन शेर सिंह नेगी ने चिणा है। शेर सिंह नेगी के साथ गल्ला नेगी प्रसिद्ध बढ़ई थे। शेर सिंह नेगी की तिबारी निर्माण शेर सिंह नेगी के पिता ने की थी अतः इस तिबारी का निर्माण काल भी 1900 के पश्चात ही होगा। शेर सिंह नेगी के पिता भी कुशल भवन निर्माता थे। और यह भी माना जाता था कि इनके द्वारा निर्मित भवन में भाग्य वृद्धि भी होता है कौशल व शगुन का मिश्रण। शेर सिंह नेगी की तिबारी में नयनाभिराम युक्त कलाकृति के दर्शन होते हैं। कुछ वर्ष पहले यह लेखक इन तिबारियों को देखने /खोज ही कहा जाय हेतु सौड़ गया था तो लुंगड़ी नेगी की बड़ी पत्नी से सूचना मिली कि भवन तो सौड़ के शिल्पियों (ओड ) ने निर्मित की थी किन्तु तिबारी की काष्ठ कला उत्कीरण श्रीनगर के शिल्पियों द्वारा हुआ था। ये शिल्पी एक या दो साल तक ं निकट के गाँव छतिंड में रहे थे व वहीं काष्ठ उत्कीरण कर कलायुक्त लकड़ी को सौड़ लाते थे और यहीं सौड़ में कलायुक्त काष्ठ जोड़े जाते थे। अब तो तिबारी की लकड़ियों को रंग दिया गया है किन्तु निर्माण समय ही नहीं 2003 के लगभग यह तिबारी भूरे रंग की बिन रंग के थी। शेर सिंह नेगी की तिबारी की गिनती भव्य तिबारियों में होती रही है। श्रीनगर के काष्ठ कारीगर वास्तव में जनरिक ब्रैंड जैसा ही है।

जैसा कि सलाण (दक्षिण पौड़ी गढ़वाल ) की अन्त्य तिबारियों में होता था। तिबारी छज्जा के ऊपर पत्थर की देहरी पर टिकी थी और अंदर बैठक थी व अंदर दो कमरे हैं। तिबारी के नीचे तल मंजिल में दुभित्या कमरे हैं। पहली मंजिल में पत्थर का छज्जा पत्थर के दास (टोड़ी ) पर टिके हैं। बैठक के अंदर भी काष्ठ उत्कीर्ण के विद्यमान है।

तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं . चारों के मध्य तीन खोलियां /द्वार है जो भीतर का नजारा भी पेश करते हैं। प्रत्येक स्तम्भ हाथी पाँव जैसे आकृति के आधार पर टिके हैं। किनारे के दोनो स्तम्भ मिट्टी -पत्थर की दीवार से लगी हैं व दीवार व प्रत्येक स्तम्भ के मध्य कलायुक्त काष्ठ साफ़ झलकता है। स्तम्भ आधार के ठीक ऊपर उल्टे कमल की पंखुड़ियां (अवरोही कमल ) है ओर अवरोही पद्म पुष्पदलम का साफ़ आभाष होता है। जब अवरोही पद्म समाप्त होता है तो एक मध्य गोलाई आती है जिसमे स्तम्भ के चारों तरफ गुटके दिखाई पड़ते हैं। वास्तव में यह गुटका नुमा आकृति विजुवल रिलीफ (दृश्य राहत ) हेतु लगाए गए हैं और ढांगू की लगभग सभी तिबारियों का एक विशेषता है। और फिर उस गुटका नुमा आकृति के झट ऊपर ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्पदल (कमल की पंखुड़ियां ) शुरू होती है जो जब समाप्त होती हैं तो एक कलायुक्त लम्बा शाफ़्ट शुरू होता है जो मेहराब शुरू होने के कुछ पहले अन्य कलायुक्त आकार में बदल जाता है। शाफ्ट सिर /हेड व मेहराब शुरू होने के मध्य तीन अलग अलग आकार की आकृतियां मिलती है और तीनों आकृतियाों के दर्शन होते हैं। इसमें दो राय नहीं बल ये सभी आकृतियां विजुवल रलीफ़ हेतु व आनंद देने हेतु रोग में आयी है। शाफ्ट से मेहराब बनने के आधार कुछ कुछ बुर्ज जैसा दीखता है फिर वहीं से आर्क /मेहराब की अर्ध धनुषाकार पट्टियां शुरू होती है। प्रत्येक सम्भ की मेहराब की अर्ध धनुषाकार पट्टी दुसरे स्तम्भ के मेहराब की अर्ध धनुषाकार पट्टी से मिलकर पूर्ण मेहराब /आर्क बनाते हैं। मेहराब की तीन पट्टियां भी अर्ध गोलाकार आकृति में कटी हैं और फिर सर की पट्टी चौड़ी है जिसमे बेल बूटे की आकृतियां दिखाई देती हैं। पूर्ण आकृति चक्षु को आनंद देती है। स्तम्भ शीसरष से एक ओर मेहराब की अर्ध वृताकार पट्टी शुरू होती है तो स्तम्भ सिर के सीधे ऊपर थांत (चौड़ी पत्ती ) शुरू होता है। संतभ सिर के ऊपर से शुरू होते प्रत्येक थांत के ऊपर पक्षी चोंच नुमा आकृति उतक्रीत/अंकित हुयी हैं ऐसी ही तीन आकृति है व अंतिम आकृति छत की एक चौकी नुमा आकृति से मिल जाती है। इस चौकी के ऊपर स्पिंडल शंकु नुमा काष्ठ आकृति लगी हैं यह शंकु छत के एक एक दास (टोड़ी ) से जुड़े हैं और नकासी युक्त है। छत से कई शंकु नुमा आकृतियां लटकती है।

मेहराब के ऊपर तीन चित्रकारी सहित पट्टियां /काष्ठपाद या प्रस्तर पाद हैं जिनमे अलग अलग प्रकार की कलाकृतियां अंकित है और ये ही कलाकृतियां तीन विभिन्न पट्टियां दर्शाती हैं। आखरी पट्टी के ऊपर तीन प्रकार की कलयुक्त कलाकृतियां है जो दिखती हैं की निम्न की पट्टियां भिन्न है और ते तीन पट्टियां भिन्न हैं। इन सभी पट्टियों पर पत्तियों व फूल नुमा आकृतियां अंकित हैं। इन ऊपरी पट्टियों कहीं भी पशु या चिड़िया अंकन नहीं है। सौड़ के तिबारी ढांगू की अन्य तिबारियों से भिन्न इसलिए भी हैं कि मेहराब के किनारे कोई चक्रनुमा पुष्प दल व बीच में गणेश नुमा प्रतीक नहीं है। ढांगू के कुछ तिबारियों में स्तम्भ के बाद ऊपर थांत में चिडियानुमा आकृति नहीं पायी गयी जबकि सौड़ की तिबारी के थांत के ऊपर चिड़िया का गला व चोंच नुमा आकृति है।

सौड़ की तिबारी के काष्ठ में कहीं भी मानव आकृति नहीं दिखाई दी हैं।

तिबारी के अंदर बैठक में भी काष्ठ कला के कई अद्भुत नमूने प्राप्त हुए हैं जिसका भविष्य में विवरण दिया जायेगा।

सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी व कीर्ति सिंह नेगी सौड़

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