गढ़वाली कविता

बालकृष्ण डी. ध्यानी

बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुर

म्यारू ढुंगा

म्यारू ढुंगा


धुरपळिम खिरबोज

ग्वरबाटा का ढुंगा

इन असगुन किलै मिते ऊ आज

कब उथ्ळो मि वैते

कब वैते द्यूँलू चुला


पुंगड़ी पटळि ली

द्वाखरी बंजी कुडी

मिते बुलाणु भुला

ज्वानि मां छोड़ि गियूं

किले लागणू अप्डी ब्यथा


पितरकूड़ी ह्वैगे अजाण

रुंदी हँसदी रै मेर पछाण

अहा कैर कि अप्डी कुदशा

हम तै अब बि नि पता

विकास कै घार छ बता


मोर बिंयारा संगाड रूणा

बैठि कुकुर आज कै कुणा

सर्या दिन राति काटी मिन

ना मिल मिते अप्डी सुधा

कै बाटो होलो म्यारा चुलू ढुंगा


बालकृष्ण डी ध्यानी