कुछ अलग उत्तराखंड

जौनसार के युवक ने किया 'ग्रांउड एप्पल' की खेती का सफल प्रयोग,

सुदूरवर्ती गांव कुनवा के एक युवक ने शकरकंद की तरह दिखने वाले और स्वाद में सेब की तरह मीठे ग्राउंड एप्पल की खेती का सफल प्रयोग किया है

जौनसार के सुदूरवर्ती गांव कुनवा के एक युवक ने शकरकंद की तरह दिखने वाले और स्वाद में सेब की तरह मीठे ग्राउंड एप्पल (भूमिगत सेब) की खेती का सफल प्रयोग किया है। जौनसार में ग्राउंड एप्पल की खेती करने वाला वह पहला किसान है। हालांकि, इसकी मार्केटिंग की व्यवस्था न होने से उसे खासी दिक्कतें पेश आ रही हैं।

देहरादून जिले के चकराता ब्लॉक की सुदूरवर्ती भरम खत के ग्राम कुनवा निवासी शूरवीर सिंह ने स्नातक तक की पढ़ाई की है। इसके बाद उसने गांव में ही रहकर कृषि-बागवानी में हाथ आजमाने का निर्णय लिया। शूरवीर ने देखा कि पहाड़ में मौसम की मार से सेब की फसल को भारी नुकसान पहुंचता है, सो तकनीकी खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञों से रायशुमारी कर प्रयोग के तौर पर ग्राउंड एप्पल की खेती शुरू की। इसके लिए उसने बीते वर्ष हिमाचल के रामपुर से बीज मंगाकर उसे अपनी करीब दो नाली जमीन में बोया। मार्च में बीज डालने के बाद दिसंबर में भूमिगत सेब की फसल तैयार भी हो गई।

एक पौधे से मिलते हैं चार से सात किलो फल

शूरवीर ने बताया कि ग्राउंड एप्पल के एक किलो बीज से एक क्विंटल उत्पादन आसानी से मिल जाता है। इसके पौधे की ऊंचाई तीन से पांच फीट और फल का वजन 200 ग्राम से लेकर एक किलो तक होता है। एक पौधे से चार से सात किलो फल मिल जाते हैं। बताया कि उसे पहले प्रयास में ही दो नाली जमीन से लगभग 80 किलो ग्राउंड एप्पल मिला। अब इस तकनीक को जानने के लिए अन्य किसानों में भी खासी उत्सुकता है।


उत्तराखंड में नहीं ग्राउंड एप्पल के विपणन की व्यवस्था

प्रगति किसान शूरवीर ने बताया कि ग्राउंड एप्पल को छिलका उतारकर खाया जाता है। पौष्टिकता से भरपूर इस फल से जैम, जूस और चटनी भी बनाई जाती है। मार्च में इसका बीज बोने के बाद गोबर की खाद डालकर खेत को छोड़ दिया जाता है। कुछ समय बाद पौधा अंकुरित होकर दिसबंर में फसल तैयार हो जाती है, लेकिन उत्तराखंड में ग्राउंड एप्पल के विपणन की व्यवस्था न होने के कारण इसे बेचने के लिए अन्य जगह जाना पड़ता है।