उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -27

उत्तराखंड परिपेक्ष में प्याज का इतिहास

उत्तराखंड परिपेक्ष में सब्जियों का इतिहास - 3 उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --27

उत्तराखंड परिपेक्ष में पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी का इतिहास

उत्तराखंड परिपेक्ष में सब्जियों का इतिहास - 3

उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --27

आलेख : भीष्म कुकरेती

Botanical Name- Colocasia esculenta

Common Name- Elephant Ear Yam

पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण भोजन रहा है। पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी के उत्तराखंड में कई उपयोग हैं। पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी के ट्यूबर से विभिन्न सब्जियां व पत्तों से भी विभिन्न तरकारियाँ उत्तराखंड में बनती हैं।

पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी का मूल स्थान जम्बूद्वीप के मलय (बंगलादेश -मायनार -मलेसिया के बीच का स्थान ) स्थान को माना जाता है। शायद भारत के दक्षिण पूर्व में 10000 वर्ष पहले पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी का उपयोग शुरू हो चुका था. यद्यपि इस सिद्धांत के वरोध में एकाद सवाल उठते हैं किन्तु अभी तक ठोस आधार नही मिले हैं। पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी में जलन पैदा करने वाले रसायन (किंक्वाळी ) इसका का उपयोग केवल आगके बाद ही शुरू हुआ होगा।

ऐसा लगता है कि उत्तर प्रस्तर उपकरण युग में कहीं 6000 BC में पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी उत्तराखंड में आ चुका था और यह कंद मूल वर्ग में एक महत्व पूर्ण खाद्य पदार्थ हो चुका होगा।

डा डबराल डा मजूमदार व पुसलकर का सन्दर्भ देकर लिखते हैं कि कंद -मूल फलों में और साग सब्जियों में से प्याज , बथुआ , हल्दी , कचालू (पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी) , नासपती , अंगूर , अंजीर आदि बनैले रूप में हिमालय की ढालों पर इनमे से कुछ को उगाने का श्रेय भी उसी मानव को मिलना चाहिए।

संस्कृत में पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी को आलू (कंद -मूल ) के श्रेणी में रखा गया है और कच्च भी कहा गया है। याने कि पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी का उपयोग वैदिक काल से पहले हो चुका था।

आइन -ए -अकबरी में भी कचालू का उल्लेख मिलता है।

गढ़वाल में पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी संबंधी एक लोक गाथा है जिसमे भगवान निरंकार पिंडाळु /घुइंया / अरवी /अरबी को श्राप देते हैं कि अरबी पर किंक्वाळी (कच्ची सब्जी या गरम गर्म सब्जी में गले में जलन ) हो जायं।

Copyright @ Bhishma Kukreti 1/10/2013