गौं गौं की लोककला

तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला- 4

सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )

हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -8

कठूड़ में जोत सिंह /प्रताप सिंह या नत्थी सिंह नेगी की तिबारी (कोठाभितर ) में काष्ठ कला

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

बजारी कठूड़ में कई तिबारियां हैं और 'क्वाठा भितर ' की तिबारी अध्क प्रसिद्ध हुयी। 'क्वाठा भितर ' अर्थात किले के भीतर। साफ़ है कि यह तिबारी थोकदारों की या सौकारों की तिबारी थी। पारिवारिक रूप से जोत सिंह नेगी व प्रताप सिंह नेगी आखरी उत्तराधिकारी थे जिन्होंने देहरादून स्थांनतर होने के बाद यह तिबारी /क्वाठा भितर नत्थी सिंह नेगी को बेच दी थी जिसे अब नत्थी सिंह नेगी की तिबारी कहा जाता है।

क्वाठा भितर की तिबारी भव्य या उच्चकोटि श्रेणी में आती है

कोठा भितर की तिबारी भी पहली मंजिल पर ही है। तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं , दो स्तम्भ दिवार से लगे हैं व ये चार काष्ठ स्तम्भ तीन खोली , मोरी /द्वार बनाते हैं। प्रत्येक स्तम्भ पत्थर के छज्जे पर आधारित हैं व हाथीपांव जैसे आधार छवि प्रदान करते हैं।

उल्टा कमल दल व ऊर्घ्वाकर पदम् पुष्प दल व गुटके

स्तम्भ आधार के बाद उलटा पदम् पुष्प दल है जो उलटे कमल शुरू होने के बाद गुटके नुमा आकृति में बदल जाता है। फिर ऊर्घ्वाकार कमल दल आकृति है व ऊपर की ओर आगे जाकर स्तम्भ मेहराब से जुड़ जाता है। दो स्तम्भों से मेहराब का अर्ध धनुष या मंडल आपस में मिलकर मेहराब बनाते हैं।

मयूर पक्षी आकृति

जहां से मेहराब शुरू होता है स्तम्भ पर मयूर नुमा पक्षी का गला व चोंच आकृति उभरती है।

पुष्प आकृति

प्रत्येक मेहराब में किनारे पर एक एक चक्राकार नुमा पुष्प उत्कीर्णित है व बीच में गणेश प्रतीक है।

शुभांकर

मेहराब के शीर्ष के ऊपर चौड़ी प्रस्तर पट्टिका है जिस पर कई प्रकार की जाली व बेल बूटे की आकृतियां उभरे हैं , इस प्रस्तर (entablature ) के मध्य स्तम्भ के ठीक ऊपर शंकुनुमा व डमरू छवि लिए काष्ठ आकृति ऊपर से लगे हैं। कुल चार इस तरह के शुभ प्रतीक की आकृतियां हैं

अंत में प्रस्तर या मेहराब के ऊपर की पट्टी /पत्तियां छत के आधार वाले काष्ठ पट्टी से मिल जाते हैं

दीवार से स्तम्भ को जोड़ने वाली खड़ी काष्ठ पट्टी पर बेल नुमा आकृति उभरी हैं।

अपने शुरुवाती दिनों में अवश्य ही यह तिबारी भव्य रही होगी।

तिबारी का समयकाल की सूचना नहीं मिल सकीय है किन्तु 1900 के बाद ही इस तिबारी का निर्माण हुआ होगा। इसी तरह तिबारी में काष्ठ कलाकारों /उत्त्कीर्णकारों ) की कोई सूचना उपलब्ध नहीं है हाँ इतना कहा जा सकता है कि क्वाठा भितर तिबारी के काष्ठ कलाकार ढांगू के नहीं थे क्योंकि ढांगू के स्थानीय तिबारी काष्ठ कलाकारों की कोई संस्कृति नहीं थी।

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सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )

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