गौं गौं की लोककला

किमोठा(चमोली गढ़वाल ) में स्व . च्छाराम किमोठी के क्वाठा भितर /किले में काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : S . Kimothi ,किमोठा

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 145

किमोठा(चमोली गढ़वाल ) में स्व . च्छाराम किमोठी के क्वाठा भितर /किले में काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 145

(अलंकरण व कला पर केंद्रित)

संकलन - भीष्म कुकरेती

चमोली गढ़वाल भवन शैली में केदारखंड (गढ़वाल ) में सबसे उन्नत क्षेत्र है। भवन शैली व काष्ठ कला शैली में चमोली गढ़वाल में कई भिन्नताएं व विशिष्टतायें मिलती है। आज किमोठा , नागनाथ के जिस क्वाठा भितर या लघु किले की चर्चा की जाएगी व भी विशेष व विशिष्ठ है। यह क्वाठा / किला स्व इच्छाराम किमोठी ने किमोठा में दक्छिनेश्वर काली स्थापित करने के बाद टिहरी महाराज , स्थानीय लोगों के सहयोग से निर्मित किया गया था। स्व इच्छाराम के पड़ नाती (पांचवीं पीढ़ी ) ऐस किमोठी की बातों व सूचना से साफ़ लगता है कि स्व इच्छाराम किमोठी वैष्णवी पंडिताई , ज्योतिष में ही पारंगत न थे पितु मांत्रिक व तांत्रिक भी थे व राजा, प्रभावशाली लोग व सामंतो पर उनका बड़ा प्रभाव था।

किमोठा में स्व इच्छाराम किमोठी के तिपुर क्वाठा की फोटो से जो सूचना मिली है उससे इस भवन में काष्ठ कला समझने के लिए मंजिल दर मंजिल अध्ययन करना होगा।

किमोठ में इच्छाराम किमोठी के तिपुर क्वाठा के तल मंजिल /उबर में ऊपर मंजिल में जाने वाले प्रवेश द्वारों में एक प्रवेश द्वार में दरवाजा है एक में दरवाजा नहीं है , ऐस किमोठी अनुसार अंदर चोर रस्ते भी थे। कमरों के व मुख्य प्रवेश द्वार (खोली ) के दरवाजों पर केवल ज्यामितीय कलाकृति है। खोली के ऊपर मुरिन्ड पट्टिका (शीर्ष ) मोठे लकड़ी की बौ ळी है। और बौळी से नीचे दोनो ओर लकड़ी के दीवालगीर हैं जो पत्थर की दीवाल पर स्थापित हैं। दीवालगीर (bracket ) में या चौकी (lower Impost ) में चिड़िया गला व फूल आभासी अथवा कोई काल्पनिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। दीवालगीर के ऊपरी चौकी (upper impost ) में हाथी की आकृति खुदी है। ऊपरी चौकी के बगल में एक चौकोर आकृति में भी नक्कासी हुयी है। मुरिन्ड बौळी से हाथी के ऊपर शंकु लटक रहे हैं।

तल मंजिल के छज्जों के दास (टोड़ी ) भी लकड़ी के हैं व ज्यामितीय कला से सजे हैं। दासों के कटान भी आकर्षक हैं।

पहली मंजिल पर तिबारी है जो वैसे गढ़वाल की आम तिबारियों जैसी ही है किंतु चमोली व कुमाऊं की विशेष शैली भी इस तिबारी में दिखती है। तिबारी चार सिंगाड़ों /स्तम्भों से बनी है जिस पर तीन ख्वाळ /खोली /मोरी /द्वार हैं। दो स्तम्भ चार चार उप स्तम्भों से मिलाकर निर्मित हुए हैं तो दो स्तम्भ दो उप स्तम्भों को मिलाकर निर्मित हैं। प्रत्येक उप स्तम्भ पत्थर के चौकोर डौळ के ऊपर स्थापित हैं। डौळ के बिलकुल ऊपर स्तम्भ की कुम्भी है जो उल्टे कमल (अधोगामी पद्म दल ) फूल से बनी है। कुम्भी के ऊपर ड्यूल ( wood ring plate ) है व उसके ऊपर सीधा कमल ( उर्घ्वगामी पद्म दल ) है व तब स्तम्भ की गोलाई कम होती जाती है। सभी उप स्तम्भ एक जैसे हैं। कमल पंखुड़ियों के ऊपर भी प्राकृतिक अंकन हुआ है। जहां पर स्तम्भ की मोटाई /गोलाई सबसे कम रह जाती है वहां पर अधोगामी पद्म पुष्प अवतरित होता है जिसके ऊपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल (उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल ) है व कमल फूल के ऊपर चौखट (impost ) है जहां से मेहराब की चाप शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ की चाप से मिलकर मेहराब बनाते हैं।

मेहराब तिपत्ति (trefoil ) नुमा है। दो मेहराबों के मध्य त्रिभुजों में आयताकार आकृति खुदी है व दो दो तीर नोक या आले जैसे गड्ढे भी हैं . मेहराब कई परतों का है व बेल बूटे की नक्कासी युक्त हैं। मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड /abacus दूसरी मंजिल के छज्जे का आधार बन जाता है। शीर्ष पर कोई कला उत्कीर्ण नहीं हुयी दिखती है।

पहली मंजिल में तिबारी के बगल में मुख्य परवश द्वार (खोली ) के ऊपर एक बुर्ज है जैसे मुगल कालीन किलों में पाया जाता है व इड़ा (एकेश्वर ) में नेगियों के क्वाठा प्रवेश द्वार में भी पाया गया है। बुर्ज या बालकोनी चौड़े पत्थर के छज्जे ऊपर है व जिसके चरों कोनों में एक एक स्तम्भ (जो तिबारी के स्तम्भों की नकल हैं ) . चरों स्तम्भ से मेहराब भी वैसे ही बनते हैं जैसे तिबारी के मेहराब। मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड में कई पट्टिकाये (पटिले ) हैं जिन पर पर्ण -लता (बेल बूटे ) की सुंदर बारीक नक्कासी हुयी है। अंदर से बुर्ज में आने के लिए द्वार है व दरवाजे पर कोई विशेष नक्कासी नहीं है। बुर्ज के ऊपर शीर्ष में सिलेटी पत्थरों की चिनाई से छत बनाई गयी है।

दूसरी मंजिल अथवा तिपुर में तिबारी के ऊपर का हिस्सा गिर गया है और अनुमान लगाया जा सकता है कि इस भाग में जंगला रहा होगा या तिबारी भी। सूचना आना बाकी है. पहली मंजिल के बुर्ज के ऊपर एक और बुर्ज हैजिस के स्तम्भ ऐसे ही जैसे गढ़वाल में आम निमदारी के जंगलों के स्तम्भ होते हैं। आधार पर स्तम्भ के दोनों ओर पट्टिकायें हैं जो स्तम्भ को मोटाई देते हैं व ऊपर स्तम्भ /खम्बे गोल न हो चौकोर से हैं। आधार के ढाई फिट ऊंचाई पर रेलिंग /जंगल है व नीचे भी लकड़ी के त्रिभुजकर रेलिंग हैं।

ऐस किमोठी जो स्व इच्छाराम किमोठी के उत्तराधिकारियों में से एक उत्तराधिकारी हैं ने सूचना दी है कि अंदर कई गुप्त रास्ते थे व स्वतन्त्रता सेनानी नरेंद्र किमोठी ( ऐस किमोठी के पिताजी ) को जब सरकारी अधिकारी नरेंद्र किमोठी पकड़ने आयी तो वे इसी किले में कईं छुप कर बाहर आ गए थे (हालाँकि बाद में उन्हें पकड़ लिया गया व जेल भी हुयी ) .

इस किले के शिपलाकरों के गांव की जानकारी आज के पीढ़ी के पास नहीं है। क्वाठा निर्माण काल 1900 ई के आस पास होना चाहिए।

किमोठा(नागनाथ चमोली गढ़वाल ) में स्व इच्छाराम किमोठी का क्वाठा भितर वास्तव में एक धरोहर है व स्थाप्य कला का उम्दा उदाहरण है व यह बताने में भी सक्षम है कि मकान /क्वाठा निर्माण शैली कैसे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में सर्कि व क्वाठा कला मार्ग कौन सा था (शैली के फैलने का मार्ग ) .

किमोठा(नागनाथ चमोली गढ़वाल ) में स्व इच्छाराम किमोठी का क्वाठा भितर में काष्ठ अलंकरण विवेचना से साबित होता है कि स्व इच्छाराम निर्मित किमोठी भवन में ज्यामितीय , प्राकृतिक , व मानवीय (पशु पक्षी व रूहानी या काल्पनिक ) अलकंरण उत्कीर्ण हुआ है। जब तकनीक , औजार , शिल्पकार उपलब्ध न थे तब यह लघु किला निर्मित हुआ तो स्व इच्छाराम व शीलकारों की जितनी प्रशंसा हो काम ही पड़ेगी।

सूचना व फोटो आभार : S . Kimothi ,किमोठा

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: वस्तुस्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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