उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -51
उत्तराखंड परिपेक्ष में गांजिआडी /खेलटी की सब्जी , विविध उपयोग एवं इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -9
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --51
आलेख : भीष्म कुकरेती
Botanical name - Chaerophyllum villosum
Common name - Hairy Chervil
हिंदी नाम - खेलटी
नेपाली नाम -च्याउम
उत्तराखंडी स्थानीय नाम -गांजिआडी /गंजरी / जिंजार/जंगली गाजर
गांजिआडी/गंजरी हिमालय में अफ़गगानिस्तान से पूर्वी चीन तक 2100 -2500 मीटर की ऊंचाई में पाया जाता है। गांजिआडी /गंजरी / जिंजार के जन्मस्थान पर कोई शमिति नहीं है ।
गांजिआडी/गंजरी 60 inch ऊंचा तक का पौधा है। इसके बीज जीरा जैसे होते हैं।
इसकी पत्तियां व तने की सब्जियां खायी जाती हैं।
उत्तराखंड में गांजिआडी/गंजरी लोक मसाले के रूप में भी उपयोग होता है।
नेपाल व उत्तराखंड में गांजिआडी/गंजरी का लोक औषधीय उपयोग होता आ रहा है।
पाकिस्तान में जंगली गाजर की जड़ों का जंगली गाजर के रूप में उपयोग होता है।
डा संजीव शर्मा सम्पादित पुस्तक , 1997 , 'Studies on Kumaon Himalayas' page 74 में लिखा गया है कि जिंजार की जड़ों को कच्चा या उबाल कर खाया जाता है। पी . एस . मेहता आदि ने एक वैज्ञानिक लेख में गांजिआडी /गंजरी / जिंजार/जंगली गाजर का उपयोग सब्जी के लिए उल्लेख किया है।
कुमाऊं विश्व विद्यालय के डा राकेश कुमार जोशी ने गांजिआडी/गंजरीके जड़ों व पत्तियों से ऐंटिडॉक्सीडेंट तेल निकालने की पैरवी की है।
डा कौशल्या नंदन सिंह ने लिखा है कि लाहुल स्पीति क्षेत्र में जुकाम व ठण्ड उपचार के लिए शिगु जीरा (Chaerophyllum villosum) की पत्तियों व बीजों की सब्जी बनाकर खाया जाता है। ठंड से पेट कि बीमारियों में भी औषधीय उपयोग लाहुल -स्पीति क्षेत्र में होता है।
लाहुल स्पीति में गांजिआडी /गंजरी / जिंजार/जंगली गाजर कि जड़ों को सुखाकर जाता है और इसके आटे को अन्य आटे में मिलाकर रोटी बनाई जाती हैं
पी . एस . मेहता एवं के . सी.भट्ट "traditional Soap and Detergent Yielding Plants of Uttarakhand ' लेख में लिखते हैं कि जंगली गाजर की जड़ों (ट्यूबर ) पत्थर से कूटकर , लुगदी से कपड़े धोये जाते हैं.
नागालैंड में इस पौधे की जड़ों का लोक औषधि रूप में प्रयोग होता है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 3/11/2013