गौं गौं की लोककला

कांडई (द्वारहाट ) में स्व. हरी दत्त कांडपाल की शनदार बाखली

सूचना व फोटो आभार : दिनेश कांडपाल , कांडई

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 116

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 116

संकलन - भीष्म कुकरेती -

कुमाऊं व गढ़वाल में मकान निर्माण शैली में सबसे बड़ा अंतर है कि कुमाऊं में मकान चिपके होते हैं जो कभी गढ़वाल में एक मंजिला मकान ( उबर ) युग में भी था। कुमाऊं के बाखलियों में छज्जों को महत्व नहीं दिया जाता व छज्जे छोटे होते हैं। गढ़वाल में मकान में पहली मंजिल पर छज्जा होना एक आवश्यक शर्त है। अधिकतर गढ़वाल के पहली मंजिल का मकानों (दुपुर ) में सीढ़ी बाहर से होती हैं व तिबारियों में सीढ़ियां अंदर से खोली के रास्ते होते हैं। कुमाऊं में भी पहली या दुसरे मंजिल में जाने हेतु खोली होती हैं। दोनों प्रकार के भवनों में खोली का बड़ा महत्व होता है व सजावट होती है। गढ़वाल में दो कमरों या तीन कमरोंको बरामदे में तब्दील कर बाहर स्तम्भों से तिबारी प्रयुक्त होते हैं। गढ़वाल में छज्जा आने जाने का काम आता है जबकि बाखलियों में बाहर झाँकने हेतु झरोखेनुमा मोरी /खोल होती है। अधिकतर खोल या झाँकने का रिक्त स्थान अंडाकार होता है

प्रस्तुर बाखली कांडई गांव (द्व्राह्ट अल्मोड़ा, कुमाऊं ) में भूतपूर्व विधायक स्व हरी दत्त कांडपाल की है। कुमाऊं के बाखलियों से हटकर मकान में बाह्य सीढ़ियों से पहली मंजिल जाया जाता है। मुख्य द्वार में स्तम्भ /सिंगाड़ हैं। कुमाऊं शैली की विशेषता है कि दो दो तीन तीन स्तम्भ चिपकाकर एक स्तम्भ बनाया जाता है। कांडई में स्व हरी दत्त कांडपाल के मि पहली मंजिल में मुख्य द्वार में व मोरियों में भी कुमाऊं शैली अनुसार दो दो या अधिक स्तम्भों को चिपकाकर स्तम्भ निर्मित किये गए हैं। पहली मंजिल के मुख्य द्वार के दोनों ओर स्तम्भ चार गौण स्तम्भों को चिपकाकर निर्मित हैं व गौण स्तम्भ के आधार में कुम्भी , ड्यूल , फिर कमल दल (लगभग गढ़वाल की तिबारियों के स्तम्भ जैसा साँचा /स्वरूप (पैटर्न ) है.) . सभी गौण स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड / मथिण्ड शीर्ष से मिलते है व शीर्ष /मुरिन्ड /मोर /मथिण्ड चौखट है। मुख्य द्वार के शीर्ष याने मुरिन्ड पट्टीकाओं में ज्यामितीय अलंकरण के अतिरिक्त कोई विशेष अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं होता है। स्तम्भ को दीवारों से जोड़ने वाली कड़ियों में बेल बूटे /पर्ण लता अलंकरण हैं।

मोरी के खोल (जहां से बाहर झाँका जाता है ) , कुमाऊं में अधिकतर अंडकार होते हैं किन्तु कांडई (द्वारहाट ) में पूर्व विधायक स्व . हरी दत्त कांडपाल की बाखली में अंडाकार खोल नहीं दीखता है। तीन मोरियाँ हैं व प्रत्येक मोरी के स्तम्भ भी चार चार गौण स्तम्भों को चिपकाकर निर्मित हुए हैं। मोरी के खोल ऊपर शीर्ष मुरिन्ड पट्टिका ओं में कोई मानवीय /देव प्रतीक अलंकरण दृष्टि में नहीं हो रहे हैं किन्तु बेल बूटे साफ साफ़ दृष्टिगोचर होते हैं। पहली मंजिल में बांये किनारे की खड़िकी के दरवाजों व एक सिंगाड़ में पर्ण लता /बेल बूटे नक्कासी दिखती है। .

कांडई (द्वारहाट ) में भूतपूतव विधायक ह्री दत्त कांडपाल की बाखली शानदार है और उनके उत्तराधिकारियों ने उचित देखरेख का परिचय दिया है कि अभी भी बाखली में रौनक व् ठसक है।

दिनेश कांडपाल अनुसार प्रस्तुत बाखली 1910 के लगभग निर्मित हुयी थी व स्थानीय शिल्पकारों ने उपलब्ध स्थानीय माल से बाखली निर्मित की थी।

सूचना व फोटो आभार : दिनेश कांडपाल , कांडई

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं

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