गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

ग्वील में वाचस्पति कुकरेती की भव्य तिबारी

सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 47

ग्वील में वाचस्पति कुकरेती की भव्य तिबारी

(जो अब ध्वस्त हो चुकी है)

ग्वील (ढांगू ) में तिबारी , निमदारी , जंगला काष्ठ कला /अलंकरण व लोक कलाएं -2

ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला - 26

दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 47

संकलन - भीष्म कुकरेती

ग्वील आर्थिक दृष्टि से तब भी समृद्ध स्थल /उर्बरक भूमि वाला स्थल था जब यहां गाँव नहीं बसा था। ब्रिटिश शासन स्थापित होने के बाद सम्भवतया चार भाई जसपुर से ग्वील बसे (चक्रधर कुकरेती की कुकरेती वंशावली से अनुमान ) . जसपुर ग्वील में भूमि बंटवारे से भी लगता है कि कम से कम चार भाई जसपुर छोड़ ग्वील बसे होंगे, एक ही भाई जसपुर रहा व कुछ ग्वील वालों की जमीन जसपुर में फिर भी जमीन बची रही होगी जो उन्होंने बहुगुणाओं को दान में दी , मित्र्ग्राम के प्रवासी जखमोलाओं व खमण से आये कुकरेतीयों को बेचीं या दी।

ग्वील पानी के हिसाब से भाग्यशाली गाँव है छहों दिशाओं में जल ही जल है तो समृद्धि होनी ही है। टंकाण स्कूल 1870 या आसपास खुलने से ग्वील , जसपुर व बड़ेथ व मल्ला ढांगू में शिक्षा प्रसार अन्य क्षेत्रों से पहले शुरू हुयी . ग्वील बड़ेथ के शिक्षित व्यक्ति सरकारी विभागों व सेना में प्रवेश लिया याने ग्वील में \भूमिगत समृद्धि के अतिरिक्त सरकारी नौकरी से भी समृद्धि आयी व समृद्धि प्रतीक में ग्वील में कई भवन , तिबारी , निमदारी निर्मित हुए , ग्वील का क्वाठा भितर तो पूरे इलाके में प्रसिद्ध रहा है , आज भी। चित्रमणि कुकरेती का तिपुर /तीन मंजिल , सफेद कूड़ तो भवनों में प्रसिद्ध रहे है हैं। कुछ तिबारियों की सूचना व फोटो भी मिली है। कुछ तिबारी /जंगल कालग्रसित हो गए हैं उनकी जानकारी अब लोक कथाओं में ही रह गयी हैं। राकेश कुमार या भूतपूर्व प्रधानध्यापक बिनोद कुकरेती जैसे सुधि जनों के कारण कुछ फोटो व सूचनाएं मिली हैं जो ग्वील के भवनों की कला का डॉक्युमेंटेशन में कारगर सिद्ध होंगे।

इस लेख में यह लेख उस तिबारी की विवेचना करेगा जो खत्म ही हो चुकी है। राकेश कुकरेती (पौत्र सदा नंद कुकरेती , मुख्त्यार जी ') का कार्य - फोटो व सूचना जुटाना वास्तव में स्तुतीय है कि तिबारी तो न बच सकेगी पर डॉक्युमेंटेसन तो हो ही जाएगा। तिबारी वाचस्पति कुकरेती की है। संभवतया तिबारी 1925 के बाद निर्मित हुयी होगी। मकान तो सौड़ के शेर सिंह , बणवा सिंह परिवार ने ही निर्मित किया होगा किन्तु तिबारी उत्कीर्ण कलाकार बाहर के ही रहे होंगे।

मकान तिभित्या /तीन भीत /दीवाल याने एक कमरा अंदर व एक बाहर शैली में है। पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवार नहीं है अपितु बरामदा बनता है और इसी बरमदा के बाहर तीन खोळी /द्वार /मोरी वाली तिबारी है। चार स्तम्भों की तिबारी के स्तम्भ पाषाण छज्जे के ऊपर टिके हैं। प्रत्येक स्तम्भ/ सिंगाड़ / column पाषाण देहरी के ऊपर पत्थर चौकोर डौळ के ऊपर टिके हैं। स्तम्भ /सिंगाड़ का आधार याने कुम्भी या पथ्वड़ आकृति उलटे कमल दल पंखुड़ियों से बना है। उल्टे कमल दल के आधार पर डीला /धगुल याने round wood plate है जहां से उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होता है। कमल दल के बाद स्तम्भ /सिंगाड़ का शाफ़्ट /कम मोटा स्तम्भ कड़ी है जिसकी मोटाई ऊपर की ओर कम होती जाती जय और जब सबसे कम मोटाई आती है तो वहां पर दो डीले /धगुले round wood plate उत्कीर्णित है और उन wood plates के मध्य कमल पंखुड़ी आकृति उत्कीर्ण हुयी है। ऊपरी डीले /धगुले से उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होता है व बगल में मेहराब /तोरण /चाप arch का अर्ध मंडल शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर चाप बनाता है। चाप पट्टिका तिपत्ति (trefoil) नुमा है मध्य में ही तीखी है। तोरण बाह्य पट्टिका के किनारों पर फूल गुदे हैं फूलका केंद्र गणेश का प्रतीक है , जैसे पूजा में गोबर का गणेश बनाया जाता है। टॉर्न बाह्य पट्टिका पर वानस्पतिक कलाकृति गोदी गयी है। तोरण शुरू होती है तो स्तम्भ फैलता है ( थांत पट्टिका /Blade जैसे ) . वास्तव में इस भाग पर ब्रैकेट /दीवारगीर लगे थे। ग्वील , सौड़ में ऐसे दीवार गीरों / ब्रकेट्स में प्राकृतिक कला उत्कीर्ण के अतिरिक्त मानवीय (पशु व पक्षी चित्रण ) हुआ है तो वाचस्पति कुकरेती की तिबारी में भी सौड़ के शेर सिंह नेगी जिअसे ही कुछ पक्षी या पशु चित्रित हुए रहे होंगे (अनुमान )

स्तम्भ ऊपर चौखट शीर्ष /मुण्डीर की दो भू समांतर पट्टिकाओं से मिलते है , जो छत की पट्टिका से जुड़ते हैं। शीर्ष या मुंडीर पट्टिका पर पत्तियां या प्राकृतिक कला चित्रित /उत्कीर्ण हुयी है।

वाचस्पति कुकरेती की तिबारी आखरी साँसले रही है व मुझे आश्चर्य हो रहा है कि अभी तक लोग लकड़ी चोरी कर नहीं ले गए हैं अन्यथा जब इस प्रकार के मकान बिन देख रेख ध्वस्त होते है तो पत्थर , लकड़ी आदि लोग ऐसे ही उठा लेते हैं।

वाचस्पति कुकरेती की तिबारी भी भव्य तिबारी रही होगी व प्राकृतिक , मानवीय व ज्यामितीय कला अलंकरण हुआ है। आवश्यकता है ऐसी तिबारियों का संरक्ष्ण हो व सर्वेक्षण तो हो ही।

सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020