गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

स्यूपुरी सतेरा में थोकदार धन सिंह बर्तवाल की तिबारी में कई इतिहास छुपे हैं

सूचना व फोटो आभार : महेंद्र सिंह बर्त्वाल , सते

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 62

स्यूपुरी सतेरा में थोकदार धन सिंह बर्तवाल की तिबारी में कई इतिहास छुपे हैं

स्यूपुरी सतेरा (नागपुर ) थोकदार धन सिंह बर्तवाल की तिबारी व खोळी में काष्ठ / अलंकरण

रुद्रप्रयाग गढवाल , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -1

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 62

संकलन - भीष्म कुकरेती -

उत्तराखंड में जहाँ जहां शीत ऋतू प्रकोप व भ्यूंचळ /भूकंप प्रकोप रहा है वहां वहां काष्ठ बहन निर्माण की प्रवृति /प्रचलन सदियों से रहा है। उत्तरकाशी , चमोली व उत्तरी रुद्रप्रयाग , उत्तरी पिथौरागढ़ में काष्ठ भवन निर्माण एक सामन्य घटना ही मानी जाएगी। तिबारी कला कहाँ से पनपी व किस तरह एक क्षेत्र से दुसरे क्षेत्र पर अभी भी कला विदों व कल्ला इतिहासकारों की एक राय न बन सकी है।

नागपुर पट्टी के स्यूपुरी सतेरा के थोकदार ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल की ख्याति बड़ी थी । उनकी तिबारी की भव्यता ही नहीं इतिहास सेक्रेट भी प्रसिद्ध है।

थोकदार धन सिंह बर्त्वाल की वह तिबारी में ही बद्रीनाथ स्तुतिनामा /प्रार्थना की पाण्डुलिप मिली थी।

ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल की तिबारी में ही उत्तराखंड की प्रथम फिल्म जग्वाळ का फिल्मांकन हुआ था। इसके अतिरिक्त घुघति घुरोण लग गे मेरो मैत , व मेरु रंग बाजू रंग रंगा रंग बिचारि गीत का फिल्मांकन भी इसी तिबारी हुआ था।

थोकदार /मालगुजार धन सिंह बर्त्वाल तिबारी वास्तव में गढ़वाल की तिबारियों की प्रतिनिधि तिबारी है।

तिभित्या /दुखंड भवन के पहली मंजिल पर बाहर के दो कमरों में परिवर्तन कर बरामदे बनाकर बरामदे को तिबारी से अलंकृत किया। तल मंजिल से पहली मंजिल जाने के लिए तल मंजिल पर नक्कासीदार खोळी भी है।

थोकदार धन सिंह बर्त्वाल की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं जो तीन द्वार /मोरी /खोळी बनाते हैं। दिवार से काष्ठ कड़ी से जुड़े हैं व कड़ी में बेल बुते उत्कीर्ण हुए हैं। पाषाण छज्जे के ऊपर पत्थर की देहरी /देळी है जिस पर स्तम्भ चौकोर पत्थर डौळ के ऊपर टिके हैं। स्तम्भ का आधार कुम्भी है जो छवि /धारणा perception से अधोगामी कमल दल लगता है किन्तु कमल दल में प्राकृतिक या पत्तियां उत्कीर्ण जो कमल शोभा वृद्धिकारक। हैं

स्तम्भ के कुम्भी नुमा अधोगामी कमल के ऊपर डीला /round wood plate है जहां से उर्घ्वगामी पदम् दल फूटते दीखते हैं व पत्येक कमल दल petal पर पत्तियां उत्कीर्ण हुयी हैं। उर्घ्वगामी कमल दल से स्तम्भ का शाफ़्ट की मोटाई कम होती जाती से यहीं से फिर से अधोगामी पत्तीदार नकासी युक्त कमल दल उत्कीर्ण है। अधोगामी कमल दल के ऊपर डीला /धगुल है जहां से उर्घ्वगामी फूटता है व कमल पत्तिया उत्कीर्ण हुयी हैं।

इसी कमल दल से स्तम्भ का ऊपरी भाग नक्कासी युक्त थांत पट्टिका शीर्ष /मुरिन्ड पट्टिका से मिलती है व यहीं से अर्ध चाप तोरण का एक भाग है जो दूसरे अर्ध चाप से मिल पूरा तोरण /आर्च , मेहराब बनता है। तोरण arch तिपत्ति व मध्य का तोरण arch तीखा शार्प है। तोरण बाहर पट्टिका जो स्तम्भ थांत पट्टिका के बगल में है में प्राकृतिक याने बेल बूटों की नक्कासी लिए हुए है व तोरण के बाह्य पट्टिका के किनारे पर दो सोलह दलीय फूल हैं और इस तरह कुल 6 फूल हैं। मुरिन्ड /शीर्ष पट्टिकाओं (जो छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं)हैं ) में भी बेल बूटे उत्कीर्णहुआ है।

थोकदार धन सिंह की तिबारी शानदार है जानदार है व आज भी भव्य है। तिबारी में वानस्पतिक (natural ) व ज्यामितीय अलंकरण (ornamentation ) हुआ है व मानवीय या प्रतीकत्मक अलंकरण देखने को नहीं मिला।

ठाकुर धन सिंह के पड़ पोते महेंद्र सिंह बर्तवाल ने सूचना दी कि काष्ठ तिबारी निकट के गाँव जवाड़ में निर्मित हुयी थी व वहीँ से लाकर स्यूपुरी में बिठाई गयी थी। कलाकार जवाड़ के ही थे। तिबारी का निर्माण काल 1910 के पश्चात ही होना चाहिए जब थोकदारी पूरी तरह से ब्रिटिश शाशन में सेटल हुयी व थोकदार समृद्ध होने लगे.

थोकदार धन सिंह बर्तवाल की खोली में काष्ठ कला उत्कीर्णन

खोली के सिंगाड़ों मुरिन्ड पट्टिकाओं में वानस्पतिक कलंकरण हुआ है व मुरिन्ड /शीर्ष में गणेश मूर्ति बिठाई गयी प्रतीकत्मक कला /अलंकरण खोळी में मिलता है। अर्थात खोळी में ज्यामितीय , प्राकृतिक (बेल बूटे ) व पर्तीकात्मक (गणेश जी ) अलंकरण हुआ है।

सूचना व फोटो आभार : महेंद्र सिंह बर्त्वाल , सते

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