वो अब भी क्यों मुझे बुलाता रहा
बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बचपन में पर्वतों पर छुपा रखा था कुछ मैने
बचपन में पर्वतों पर छुपा रखा था कुछ मैने
उसे ढूंढने में मैं अब भी अपनी उम्र गुजारता रहा
उसे ढूंढने में मैं अब भी अपनी उम्र गुजारता रहा
मचलता रहा वो फितूर बन वो कंही मेरे ही भीतर
मचलता रहा वो फितूर बन वो कंही मेरे ही भीतर
उसे पाने की होड़ मुझे कंहा कंहा भटकाती रही
उसे पाने की होड़ मुझे कंहा कंहा भटकाती रही
उसके प्रति अधिक चाह ने दूर किया मुझको
उसके प्रति अधिक चाह ने दूर किया मुझको
अब अकेले बैठ यादों में उन्हें अकेले गुनगुनाने लगा
अब अकेले बैठ यादों में उन्हें अकेले गुनगुनाने लगा
पहले जूनून था मेरा वो या अब मेरा वो प्रयाश्चित
पहले जूनून था मेरा वो या अब मेरा वो प्रयाश्चित
ना जाने अब भी किसे मै बहलाने फुसलाने में लगा
ना जाने अब भी किसे मै बहलाने फुसलाने में लगा
थक क्यों नहीं जाता हूँ मै अब इस उम्र में ध्यानी
थक क्यों नहीं जाता हूँ मै अब इस उम्र में ध्यानी
वो छुपा रह रहकर अब भी क्यों मुझे बुलाता रहा
वो छुपा रह रहकर अब भी क्यों मुझे बुलाता रहा
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