गौं गौं की लोककला

सौड़ (ढुङ्गाळी , टिहरी ) में भव्य तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

सूचना व फोटो आभार : डुएनॉर्थ सौड़ कॉटेजेज का कैटलॉग

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 89

सौड़ (ढुङ्गाळी , टिहरी ) में भव्य तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ कला अंकन - 5

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 89

संकलन - भीष्म कुकरेती

तिबारियों के सर्वेक्षण स ेथोडा बहुत लगता है कि तिबारियों के मामले में पौड़ी गढ़वाल की तुलना में उत्तर काशी, टिहरी गढ़वाल व चमोली गढ़वाल अधिक सम्पन क्षेत्र रहे हैं . और इस बात का प्रमाण प्रस्तुत भव्य भवन पर तिबारी में काष्ठ कला। प्रस्तुत भवन अब एक रिजॉर्ट डुए नार्थ सौड़ कॉटेजेज का हिस्सा है।

प्रस्तुत दुपुर याने पहली मंजिल वाले, दुखंड /तिभित्या भवन में काष्ठ कला समझने हेतु इसे तीन भागों में अध्ययन करना होगा

तल मंजिल के द्वारा दरवाजों में कष्ट कला

तल मंजिल व पहली मंजिल में खिड़कियों के दरवाजों व म्वार (मोर ) सिंगाड़ में काष्ठ कला

व तिबारी के स्तम्भों व मुरिन्ड में काष्ठ कला

भवन के तल मंजिल व पहली मंजिल के बड़े कमरों के दरवाजों में विशेष कोई कला उल्लेखनीय नहीं है.

पहली मंजिल की एक खड़की के दरवाजों पर ज्यामितीय कला दर्शन होते हैं व दोनों सिंगाड़ में प्राकृतिक बेल बूटे नीमा आकृति व मुरिन्ड (खिड़की का शीर्ष ) में प्राकृतिक व कुछ पर्तीकात्मक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है।

सौड़ (ढुङ्गाळी , टिहरी ) तिबारी के सिंगाड़ में कला अलंकरण

सौड़ का यह भवन भव्य है तभी इसे रिजॉर्ट में तब्दील किया गया है। तिबारी में 9 सिंगाड़।/स्तम्भ हैं व 8 मोरी /द्वार /खोळी हैं। सिंगाड़ों /स्तम्भों के आगरा भाग में ही अलंकरण है व पीछे काष्ठ पररिका या कड़ी स्पॉट चौकोर हैं। सभी सिंगाड़ों में एक जैसे ही कला उत्कीर्ण हुयी है।

प्रत्येक सिंगाड़ पत्थर के डौळ ने टिके हैं। स्तम्भ का आधार कुम्भी गढ़वाल के अन्य कुम्भियों से ऊंचाई में कुछ अधिक लम्बी है। कुंभी निर्माण हेतु कमल दल के दर्शन नहीं होते हैं। कुम्भी के बाद डीला (ring type wooden plate ) है व बाद में उर्घ्वगामी पद्म दल है जब उर्घ्वगामी कलम दल समाप्त होता है तो स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है जो कि ऊपरी डीले तक है वाहन से फिर उर्घ्वगामी कमल दल शुतु होता है जो ऊपर की और जाते है और फिर वहां से स्तम्भ चौकरो हो जाता है , स्तम्भ सीधा ऊपर चौकोर मुरिन्ड (शीर्ष ) की पररिका से मिल जाता है। मुरिन्ड पट्टिका चौकोर है व उस पर ज्यामितीय चित्रकारी उत्कीर्ण हुयी जो वानस्पतिक चिन्हों की छवि देते हैं।

भवन बहुत बड़ा व भव्य है किन्तु सम्भव पर कोई विशेष कला उत्कीर्ण नहीं हुयी है। बस भव्यता अधिक स्तम्भों व मकान के बड़े होने से आयी है। रिजॉर्ट वाले ने सूचना दी है कि इन भवनों की ऑरिजिनलिटी रिस्टोर की गयी है।

निष्कर्ष निकलता है कि भव्य भवन में 9 स्तम्भों ने भव्यता वृद्धि की है व काष्ठ कार्य में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण ही हुआ है

सूचना व फोटो आभार : डुएनॉर्थ सौड़ कॉटेजेज का कैटलॉग

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020