गौं गौं की लोककला

पिथोरागढ़ के जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला अंकन, अलंकरण, लकड़ी नक्काशी

सूचना व फोटो आभार: राजेंद्र रावल , जाजार

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 201

पिथोरागढ़ के जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला अंकन, अलंकरण, लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्काशी - 201

संकलन - भीष्म कुकरेती

गंगोलीहाट , पिथौरागढ़ से कई बाखलियों की सूचना मिली हैं। ऐसे ही ज़ाजार से भी कुछ बाखलियों की सूचना मिलीं हैं। आज नर सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला की विवेचना की जाएगी। वास्तव में फोटो बाखली के एक ही हिज्जे की मिल पायी है। बाखली तिपुर व दुखंड /दुघर है। मकान का तल घर याने गोठ शायद अब भी गौशाला रूप में उपयोग होता है। मकान की फोटो में खोली नजर नहीं आ रही जिसका अर्थ है खोली दुसरे हिस्से में स्थापित होगी।

काष्ठ कला विवेचना दृष्टि से जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में छोटी खिड़की (छोटी मोरी ) व बड़ी मोरियों या छाजों (झरोखों ) में काष्ठ कला पर ध्यान देना होगा।

जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की तिपुर बाखली में तल मंजिल में दो कमरे व दो खिड़कियां ही फोटो में दृष्टिगोचर हो रहे हैं व उनमें केवल ज्यामितीय कटान के लक्षण दिख रहे हैं।

जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में पहली मंजिल में दो कमरे व तीन छोटी मोरियों /खिड़कियों झरोखों में ज्यामितीय कटान है। पहली मजिल तीन बड़े झरोखों /छाजों (मोरियों ) व दूसरी मंजिल में पांच बड़े झरोखों /छज्जों में कुमाऊंनी पारंपरिक काष्ठ कला के दर्शन होते हैं जो पुरे कुमाऊं मे सब जगह प्रचलित थे व हैं। यह कला गर्ब्यांग (धारचूला ) में भी दिखती है तो धानाचूली क्षेत्र में भी दिखती है। सभी आठों छाजों /झरोखों में काष्ठ कटान , काष्ठ कला अंकन , नक्काशी सब में एक जैसी है।

जैसे कि कुमाऊं की आम छाजों में प्रचलित शैली है कि छाजों के सिंगाड़ (स्तम्भ ) जोड़े में या त्रियुग्म या चतुर्युग्म में होते हैं वैसे ही जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में सभी छाजों /झरोखों के सिंघाड (स्तम्भ ) भी दो दो स्तम्भों निर्मित। आधार में प्रत्येक उप स्तम्भ कुछ सीधा है पर कुछ ऊपर ही उल्टा कमल दल अंकित है जिसके ऊपर ड्यूल (ring type wood plate ) है जिसके ऊपर फूल है व यहां से उप स्तम्भ सीधा हो ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष या abacus की एक परत बन जाता है। आधे स्तम्भ / सिंगाड़ से अंडाकार ढुढयार (खोह ) का है। ढुढ्यार (खोह /छेद ) के नीचे का छेद लकड़ी के पटिले से बंद है। लकड़ी के तख्तों (जो छेद बंद करते हैं ) में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई कला नहीं दिखी।

जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली के पहली मंजिल के खिड़कियों या लघु छाजों /मोरियों में कोई विशेष कटान नहीं मिलता है। जबकि बाखली के दूसरी मंजिल की चौखट नुमा लघु खिड़कियों /छाजों /मोरियों में लकड़ी में तो ज्यामितीय कटान ही मिलता है किन्तु बाहर पत्थर /गारे के अर्द्ध मंडप /मेहराब बने हैं जो इस बात का द्योत्तक है कि इस भूभाग पर ब्रिटिश भवन शैली का पूरा प्रभाव पड़ा था।

निष्कर्ष निकलता है कि जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली के इस हिज्जे में ज्यामितीय काष्ठ कला व प्राकृतिक (कमल फूल ) कला अंकन ही मिलता है व मानवीय /प्रतीकात्मक हुलिया नदारद हैं।

अब धीरे धीरे संयुक्त परिवार की बाखलियों को तोड़कर सुविधायुक्त मकान बना रहे हैं या संयुक्त परिवार में बंटवारा संभव न हो तो नए मकान बनवाये जा रहे हैं और तिबारियां व बाखलियाँ जर्जर हो खत्म हो रही हैं। आधुनिक घर निर्माण व्यवहारिक भी हैं व समय की मांग भी है। ऐसे में बाखलियों , तिबारियों व निमदरियों का दस्तावेजीकरण आवश्यक हो जाता है।

*तिपुर = तल मंजिल व 2 और मजिल

**दुखंड /दुख्र या तिभित्या = मकान में एक कमरा आगे व एक पीछे याने तीन भीत (दीवाल )

*** मोरी = खिकड़ी , छाज , झरोखा जिसमे अंडाकार ढुढयार (खोह ) होता है। यह खोह ढका भी हो सकता है व कभी नीचे ढका हो व् झरोखा बिन ढक्क्न के भी हो सकता है।

सूचना व फोटो आभार: राजेंद्र रावल , जाजार

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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