गौं गौं की लोककला

चम्पावत के अति प्रसिद्ध भुतहा मकान मुक्ति कोठरी (एबोट चर्च ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : संजय शेफर्ड

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 178

चम्पावत के अति प्रसिद्ध भुतहा मकान मुक्ति कोठरी (एबोट चर्च ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी

कुमाऊँ ,गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 178

संकलन - भीष्म कुकरेती

चम्पावत (कुमाऊं ) का एबोट चर्च भारत में भुतहा स्थ्लों में से एक स्थल रूप में प्रसिद्ध है। 1900 सन में निर्मित एबोट चर्च में 1915 के लगभग एक चिकित्सालय भी था जो तब एबोट चिकित्सालय की गिनती भारत में मुख्य चिकित्सालयों में होती थी। चर्च के बगल में स्थापित एक कोठरी थी जहाँ 1920 के लगभग डाक्टर मॉरिश अपने विशेष मरीजों का इलाज करते थे व डा मोरिस के बारे में कई तरह के भ्रामक लोक कथाएं आज भी चम्पावत में ही नहीं भारत की ट्रैवेल पत्रिकाओं में भी तैरती हैं . चूँकि इस श्रृंखला का उद्देश्य भवन में काष्ठ कलाओं तक सीमित है तो एबोट चर्च , डा मोरिस आधारित लोक कथाएं किसी अन्य लेखक हेतु छोड़ दिए गएँ हैं।

मुक्ति कोठरी का निर्माण 1900 व 1915 के मध्य है और यह चर्च कुमाऊं में वास्तु शिल्प के इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण होगा कि कैसे ईसाई समज के भवनों ने कुमाऊं के पारम्परिक भवनों की वास्तु व काष्ठ कला को प्रभावित किया।

प्रस्तुत एबोट चर्च की जो भी जानकारी , सूचनाएँ व फोटो प्राप्त हैं उससे साफ़ पता चलता है कि चर्च भवन ब्रिटिश चर्च शैली में निर्मित हुआ है और कहीं भी मध्य कुमाऊं के बाखली शैली व कला व सीमा के गाँवों जैसे गर्ब्यांग , कुटी या दुग्तू गाँवों के भवन शैली व कला का प्रभाव नहीं मिलता है। ब्रिटिश लोगों को भारत की भवन शैली पसंद नहीं आयी व शायद उन्हें भारतीय या पराधीन समाज की हर संस्कृति निम्न स्तर की ही लगी। एबोट चर्च में लकड़ी का काम कमरों के स्तम्भों व शीर्ष में ही दीखता है या मुक्ति कुटी के बाहर छपरिका के नीचे छह खम्भे हैं व कड़ियाँ हैं जो ज्यामितीय कटान से बनी हैं , मुक्ति कुटीर के दोनों दरवाजों में वानस्पतिक काष्ठ कला दर्शनीय है व मुक्ति कुटीर की यह काष्ठ कला कुमाऊं काष्ठ कला पर ब्रिटिश प्रभाव समझने में काम आएगा।

प्रत्येक दरवाजे में तीन आयताकार चौखट हैं व प्रत्येक चौखट में हवा में तैरते जैसे चार गुब्बारों अंकन हुआ है व गुब्बारों के अंदर बेल बूटे आभासी अंकन हुआ है। बाकी सारे चर्च में लकड़ी के काम में ज्यामितीय कला ही प्रदर्शित हुयी है।

निष्कर्ष निकक्लता है कि सन 1900 में निर्मित चर्च व 1900 -1915 के मध्य मने चिकित्सालय व मुक्ति कुटीर में लकड़ी पर ज्यामितीय कटान काम हुआ है किन्तु मुक्ति कुटीर के दरवाजों पर ही प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है।

सूचना व फोटो आभार : संजय शेफर्ड

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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