गौं गौं की लोककला
बनाणी (ढाई ज्यूळी) में ममगाईं परिवार की निमदारी में काष्ठ कला
सूचना व फोटो आभार : आचार्य नवीन ममगाईं
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 182
बनाणी (ढाई ज्यूळी) में ममगाईं परिवार की निमदारी में काष्ठ कला
बनाणी (ढाई ज्यूळी ) में ममगाईं परिवार की प्राचीन निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी
गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 182
संकलन - भीष्म कुकरेती
मेरी इस श्रृंखला आने से भवन कलाओं में क्षेत्रीय भिन्नता पता लगने से मेरे मित्र व पाठक कई प्रश्न करते रहते हैं। पौड़ी गढ़वाल में मकानों में वह भव्यता व बिचित्रता /विशेषता नहीं दिखती जो अल्मोड़ा , चमोली , रुद्रप्रयाग व जौनसार , रवाई आदि क्षेत्रों में मिलती है। पौड़ी गढ़वाल मकान कला में उतना उन्नत नहीं जितना उत्तरी गढ़वाल या कुमाऊं . कारण दो तीन हैं। पौड़ी गढ़वाल विशेषतर रोहिला /गुज्जर छापामारी का शिकार होता रहा है व उदयपुर , चंडीघाट के डाकुओं की छापामारी का शिकार होता रहता था। लसामन्य लोग ही नहीं थोकदार- कमीण भी भव्य मकान नहीं निर्माण करते थे कि लुटेरों की नजर न पड़े। मंदिर भी ध्वस्त हटे रहते थे और यही कारण है दक्षिण गढ़वाल में मंदिर मूर्ति को गुज्जरों द्वारा कुल्हाड़ी से तोड़ने की लोक कथाएं अधिक प्रचलित हुयी है (पढ़ें , गोदेश्वर व डवोली मंदिर की लोक कथा ) I दुसरा मुख्य कारण दक्षिण गढ़वाल में देवदारु लकड़ी उस मात्रा में उपलब्ध भी नहीं होती तो देवदारु सरीखी मजबूत लकड़ी नहीं मिलने से पुराने घर भी नहीं बचें है जैसे चमोली या उत्तरकाशी जौनसार में या पिथौरागढ़ में।
बनाणी (ढाई ज्यूळी ) की निमदारी के बारे में आचार्य नवीन ममगाईं ने इस मकान को 200 साल पुराने की सूचना दी किन्तु पौड़ी गढ़वाल में मेरे सर्वेक्षण में पक्के घर 1890 से पहले के नहीं मिले हैं (अपवाद -बनगर स्यूं ) I खैर मकान का निर्माण समय जो भी हो मकान अपने समय का भव्य मकान है व उस समय यह मकान अवश्य ही साहूकार परिवार (सौकार ) ने ही निर्मित किया होगा। अपने समय में ऐसे भवन बारात व सरकारी अधिकारियों ठहरने हेतु व सामजिक बैठकों हेतु उपयोग होते थे।
ममगाईं परिवार के निमदारी मकान दुपुर व दुखंड मकान है। निमदारी पहले मंजिल में स्थापित है व 12 स्तम्भ /खम्भे हैं। स्तम्भ में ज्यामितीय कटान ही है व अन्य कोई कला अंकित नहीं है। स्तम्भों के आधार एक डेढ़ फिट ऊंचाई तक लकड़ी के पटिले से ढक दिए गए हैं। हाँ आज यह मकान साधारण लगता होगा किंतु कभी ऐसे मकानों की गिनती शनदार जानदार मकानों में होती थी।
निष्कसरश निकलता है अपने समय कि भव्य निमदारी में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई विशेष अलंकरण अंकन दृष्टिगोचर नहीं हुआ है
सूचना व फोटो आभार : आचार्य नवीन ममगाईं
यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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