" आखिर भगवान ही अपना "

दोपहर के ठीक बारह बजे मोहन को टैक्सी ने उसके गाँव के बाजार में उतार दिया था। उत्तराखण्ड में चालिस पचास गांवों का छोटा सा बाजार।ऋषिकेश से करीब साठ किलोमीटर की दूरी पर ऊंची सी पहाड़ी पर बसा सुंदर बाजार।मोहन गाजियाबाद से सात हजार रुपये किराये पर टैक्सी से पहुंचा था । कोरोना महामारी के कारण उसकी फैक्ट्री बंद हो गई थी। मालिक अच्छा था कि उसके खाते में दो लाख रुपये डालकर हाथ जोड़ते हुए मोहन से अब राम राम कर दी थी। मालिक ने अब काम बंद ही रखने की सोच ली थी। मोहन के खाते में भी अलग से बचत के दो एक लाख पड़े थे। मकान मालिक का किराया चुकाकर मई के अंतिम सप्ताह में उसने पास बनवाकर गाँव जाने की सोची। उसने अपनी बाकी जिंदगी अब गाँव में ही बिताने का अंतिम निर्णय कर लिया था।अब उसकी उम्र भी तो पैंतालिस पार कर गई थी।

टैक्सी से उतर कर मोहन कंधै में अपना थैला लादे सीढियों से बाजार की दुकानों की तरफ मुड़ा। मास्क उसने लगा ही रखा था। दुकानदार उसे ऐसी टेढी नज़र से घूर रहे थे जैसे कि यमराज का दूत आ गया हो। वैसे सभी जानपहचान के थे ।पर आज अनजाने लग रहे थे। उसने सोचा शायद मास्क लगा होने से पहचान न पा रहे हों। कोरोना बीमारी के फैले भय के कारण बात न करने में ही भलाई समझा। " लाला जी नमस्कार" उसने राशन के कंट्रोल दुकानदार देवसिंह को पुकारा। पता नहीं देव सिंह को भी क्या हुआ कि पीठ फैरते हुए वह बगैर उत्तर दिये ही दुकान के अंदर के कमरे की तरफ मुड़ गया।

मोहन सोचने लगा कि लाला को क्या हुआ। चार महीने पहले जनवरी में तो बड़े प्यार से गले मिला था। लेकिन कोरोना में दूर से तो राम राम ले ही सकता है वैसे भी मैने मास्क पहन ही रखा है। चलो , अच्छी बात! आजकल अपना बचाव भी जरूरी है।

" भाई सहाब, आपको पटवारी सहाब बुला रहे हैं स्कूल में" पीछे से एक आदमी चिल्ला कर बोला।

मोहन सामने ही इंटर कालेज में पटवारी के सामने पहुंच गया ।

" आप कहाँ से? क्या आपका स्क्रिनिंग हुआ? कौन से गाँव से?" पटवारी ने तीन चार सवालों की झड़ी एक साथ लगा दी।

" जी, कोटद्वार में हो गई थी। यह मेरे हाथ पर मोहर लगी है । यह मेरी मेडिकल रिपोर्ट । मोहन ने दूर से ही कागज फर्श पर फैंक दिये। मैं अपने घर पर ही क्वारेंटाइन रहूंगा। यही मेरा गाँव है। आप शपथ पत्र पर मेरे हस्ताक्षर ले लें।" मोहन‌ ने सारी बात पटवारी को साफ साफ बता दी।

सारी अौपचारिकताएं पूरी करने के बाद मोहन नीचे की पहाड़ी से अपने मकान की तरफ उतरने लगा। उसका छोटा भाई सोहन ही सपरिवार गाँव में रहता था। मोहन के माँ - पिताजी का स्वर्गवास काफी पहले हो गया था जब मोहन पंद्रह साल का अौर सोहन दस साल का था । बस मैट्रिक पास करने के बाद मोहन अपने दूर के किसी रिश्तेदार के साथ दिल्ली चला गया था। मोहन ने अपनी छोटी मोटी नौकरी के साथ ही छोटे भाई सोहन को पाला ।सोहन की उसकी शादी की। गाँव से दूर सड़क के पास बाजार के नजदीक मकान बनाये। दो कमरों का सोहन के लिये अौर दो कमरे अपने लिये , जबकि वह भी सोहन को ही दे रखे थे ताकि चार छह महीने गाँव आने व मेहमानो के आगमन पर सोहन के बच्चों को कोई परेशानी न हो। मोहन ने अपने भाई के परिवार के पालन पोषण के भार से अपनी शादी भी नहीं की। अपनी आधी कमाई वह सोहन व उसके परिवार पर ही खर्च करता था। छोटे भाई के अलावा उसका दुनियां में कोई अौर न था । प्यार भी तो बहुत करता था वह सोहन से, माँ- बाप दोनों का प्यार जो दिया था उसे मोहन नें।

मोहन ने पहाड़ी से उतरते हुए देखा कि सोहन की पत्नी मकान के आंगन में ही बच्चों के साथ खड़ी थी । बाजार से नीचे गाँव जाते हुए किसी ने उनको खबर दे दी थी कि जेठ जी घर आ रहे हैं।बस, सोहन की पत्नी ने फटाफट ताले जड़े अौर पानी की गागर उठाये दोनो बच्चों सहित पनघट की तरफ दौड़ पड़ी। दो चार लोग गाँव के रस्ते में मिले भी पर वो भी मोहन से दूरी बनाकर भाग जाते। न कोई नमस्ते न कोई जै राम जी की। मोहन को बड़ा अजीब लग रहा था यह बदला बदला माहौल देख कर। खैर , महामारी का डर होगा, लेकिन छह फीट दूरी से तो राम राम कर ही सकते हैं।

सोहन जंगल में बकरी चराने गया था पर मोहन के गाँव लौटने की आग जंगल तक पहुंच गई थी। वह भाग भाग कर आ रहा था अौर दूर से ही ऊंची ढलान पर चढकर चिल्लाया, " भैजी! कहाँ जा रहे हो? आप हमको भी मारोगे क्या? आप घर क्यों आये? अभी वापस चले जाअो!"

" अरे , भाई अपने घर आया हूँ अौर कहां? यहाँ नहीं तो कहाँ जाऊंगा मैं? तू मेरे हिस्से के मकान की चाबी दे दे। मैं वहीं रहूंगा बंद। मेरी नौकरी भी चली गई अब। फैक्ट्री बंद हो गई। मैं अब गाँव में ही रहूंगा। तुम लोगों का हाथ बंटा लूंगा जब तक जिंदा रहूंगा " मोहन ने उदास होकर कहा ।

" कतई नहीं भैजी। किसका भैजी , कहाँ का भैजी। हम भी मर जायेंगे आपके चक्कर में" ।आप कहीं भी जाअो पर हमारे घर के पास नहीं।खबरदार ! उस प्रधान के घर ही डैरा जमा लो जिसने पटवारी से तुम्हें घर पर रखने की सिफारिस की। मैने सब सुन लिया है "सोहन चिल्लाने लगा ।

मोहन सोचने लगा कि मैने इस सोहन को इतने प्यार से पाला। जो कमाया इसी के परिवार पर खपाया। पर आज मुझे ही मेरे घर में नहीं घुसने दे रहा है। धिक्कार है ऐसे प्यार अौर ऐसी जिंदगी को। वाह री किस्मत ! इसके खातिर मैने शादी नहीं करी । इसी की खुशी की सोचता रहा। अब एक‌ मिनट भी यहाँ नहीं रुकूंगा।

पर अब रात भी होने लगी है। गाजियाबाद भी अभी ऐसी हालात में वापस नहीं जा सकता। फैक्ट्री भी बंद। हे भगवान क्या करुं।

हाँ अब एक ही रास्ता है कि गाँव मंदिर में भगवान की शरण में चला जाऊं। दो चार लाख बैंक में हैं ही उनसे कुछ महीने तो काम चल ही जायेगा। भगवान मेरे मालिक की भी मदद करे जो आते वक्त उन्होंने मेरी मदद करी।मोहन मन ही मन सोच ही रहा था कि तभी सोहन की गुस्से भरी आवाज सुनाई दी," भैजी जा रहे आप या नहीं कि मैं वहीं आऊं" ।

मोहन ने एक‌ नज़र सोहन की तरफ दौड़ाई व उसकी नादानी‌ मुस्कराते हुये , लकड़ी के ढैर से एक लाठी खींची अौर गाँव के पुराने प्रसिद्ध मंदिर के लिये नीचे की पंगडंडियो पर तेज चलने लगा।

मंदिर बाजार से तीन किलोमीटर दूर पुराने गाँव में था। एक डेढ घण्टे में मोहन गाँव पहुंच गया था। थोड़ अंधेरा भी हो गया था। मंदिर के पुजारी का घर गाँव के शुरु में नीचे ही था लेकिन‌ मंदिर गाँव के ऊपर पहाडी की तलहटी‌ में एकांत जगह में था। धर्मशाला काफी बड़ी व पानी बाथरुम , गैस आदि सारी सुविधायें। आजकल मंदिर बंद ही था।

" पंडित जी, आो पंडित जी" मोहन ने रास्ते से ही आवाज लगाई।

पंडित जी टिमटिमाते हल्के बल्ब की रोशनी में बाहर आये," अरे कौन है? इस समय' ।

" चाचा राम राम, मैं मोहन , दिल्ली से आया हूँ। मंदिर के धर्मशाला की चाबी देना। " मोहन ने कहा।

" चिरंजीव बेटे, अरे तू बाजार के मकान में क्यों न रुका। अब जो धर्मशाला बल" पंडित जी बोले।

" अब मैं हमेशा भागवान‌ की सेवा में ही रहूंगा। बस तुम‌ गाँव के लाला को खबर भिजवा दो मेरे लिये धर्मशाला में सारा खाने पीने का राशन भिजवा दे अभी। हाँ, चाबी फैंको।" मोहन ने कहा।

" ले बेटा, जब तक मर्जी रहो। भगवान ही अपना है बाकी कोई नहीं। चिंता मत कर । मैं तेरे खान पान का सारा प्रबंध करवा देता हूं। हाँ, पैंसे दे देना बाद में। " कहते हुए पंडित जी ने चाबी मोहन की तरफ फैंक दी।

तेज कदमों से मोहन मंदिर की धर्मशाला में पहुंचा अौर सीधे ही ईश्वर की चरणों में लेट गया । आगे का जीवन भगवन सेवा में ही समर्पित करने की प्रतिज्ञा ली। जोर से बोला ," हे भगवन आखिर तुम ही अपने हो बाकी सब झूठा है।"

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