गौं गौं की लोककला

संकलन

बिंतोली (बागेश्वर ) में कौस्तुभ चंदोला की खोळी /मोरी में काव्य अलंकार युक्त काष्ठ कला, अलंकरणअलंकरण

सूचना व फोटो आभार : कौस्तुभ चंदोला बिंतोली

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 76

बिंतोली (बागेश्वर ) में कौस्तुभ चंदोला की खोळी /मोरी में काव्य अलंकार युक्त काष्ठ कला, अलंकरण

बागेश्वर , कुमाऊं की भवन काष्ठ कला , अलंकरण , उत्कीर्णन श्रृंखला -1

कुमाऊं सन्दर्भ में उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) श्रृंखला - 1

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) श्रृंखला - 76

संकलन - भीष्म कुकरेती

बिंतोली दफौट क्षेत्र , बागेश्वर तहसील का एक महवत्पूर्ण गाँव है। कुमाऊं में भी भवन काष्ठ कला में क्षेत्रीय विविधता व विशेषता के दर्शन होते हैं।

आज इस श्रृंखला में सन्यासी योद्धा व चंद्र वंशी प प्रसिद्ध व चर्चित उपन्यासों के रचयिता कौस्तुभ चंदोला की खोळी /मोरी की काष्ठ कला पर चर्चा होगी।

प्रस्तुत खोली या मोरी शैली अनुसार इसी श्रृंखला में भाग 77 में वर्णित रामदा की खोली /तिबारी से मिलती जुलती है। दोनों खोलियों /तिबारियों में किनारे के दो स्तम्भ आपस में मिले हैं व मध्य स्तम्भ तीन स्तम्भों से मिलकर जटिल संरचना बनाते हैं। प्रस्तुत संरचना में दो मोरी दृष्टिगोचर होते हैं। प्रत्येक मोरी के किनारे के स्तम्भ व मध्य स्तम्भ समांतर पट्टिकाओं के ऊपर टिके हैं. आधार में डौळ है व ऊपर अधोगामी पद्म दल , फिर डीला , फिर ऊर्घ्वाकर पद्म दल फिर डीले , फिर ऊर्घ्वाकर पद्म दल हैं , ऊपरी पद्म दल से सम्भ कुछ गोल ज्यामिय उत्कीर्ण से स्रम्भ ऊपर चढ़ता है व फिर कलयुक्त डीला के ऊपर कमल दल है फिर कमल दाल से स्तम्भ पट्टिका में बदल जाता है शीर्ष में चौकोर मुरिन्ड बनाते हैं। चौकोर मुरिन्ड के ऊपर कलयुक्त पट्टिका है। मोरी के किनारे के स्तम्भ में जब उच्च स्तर पर कमल दल समाप्त होता ही है एक पट्टिका से अर्ध तोरण पट्टिका निकलती है जो दूसरे स्तम्भ से मिलकर पूर्ण तोरण बनती है , तोरण कटान तिपत्ति नुमा है. तोरण पट्टिका में कोई कलाकृति दृष्टिगोचर नहीं होती है।

मध्य स्तम्भ में प्रथम तल के उर्घ्वगामी पद्म दल के ऊपर कलाकृति ही इस मोरी /खोळी /खोली की मुख्य विशेषता है। यहां से एक पुष्प दल /पंखुड़ी पत्ती है जिसमे फर्न नुमा चित्रकारी है। यह पुष्प दल/पंखुड़ी एक घुंडी से निकलती है जहां से दूसरा पुष्प दल भी ऊपर की ओर निकलता है इस पुष्प दल में भी फर्न नुमा कला कृति उत्कीर्ण हुआ है। ऊपर वाली पुष्प दल पत्ती व निम्न वाली पुष्प दल पत्ती में कुछ अंतर् है।जहां पर दोनों पुष्प दल मिलते हैं वहां घुंडी बनी है व घुंडी के सामे व पश्च भाग में फूल के पराग नली /pollen stem की आकृति दृष्टिगोचर होती है किन्तु यहीं पर कला की परिकाष्ठा भी है कि पराग नली /pollen stem दो सांप की आकृति भी दीखते हैं / जी हाँ यही कला की परिकाष्ठा नहीं है अपितु ऊपरी व नीचे के पुष्प दल/पंखुड़ियां तितली के पंख जैसे दीखते हैं। काव्य अलंकार की कला कौस्तुभ चंदोला की काष्ठ मोरी में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। दोनों मोरी यखोह के नीचे आयातकार काश्त पट्टिकाओं में ज्यामितीय कला है।

निष्कर्ष है कि बिंटोली , बागेश्वर में कौस्तुभ चंदोला की मोरी /खोळी /खोली के स्तम्भों में नयनाभिरामी कला उत्कीर्ण हुयी है जिसमे प्रकृति व ज्यामितीय कला के दर्शन तो होते ही हैं मध्य स्तम्भ में भरम होता है कि तह पुष्प आकृति है या तितली आकृति व ऐसा ही पराग नीलका /pollen stem व सांप /नाग आकृति में भी प्रश्न चिह्नः है जिस ेजो समझना है वह समझे। काव्य अलंकार (भ्रान्ति अलंकार ) का अलंकरण का उत्तम दर्शन होते हैं कौस्तुभ चंदोला की मोरी /खोली में। याने प्राकृतिक , मानवीय (सांप व तितली ) व ज्यामितीय अलंकरण तीनों कलाओं का मिश्रण हुआ है कौस्तुभ चंदोला की मोरी में।

भवन के तल मंजिल में प्रवेश मार्ग में भी लकड़ी का काम है पट्टिकाएं हैं किन्तु उनमे कोई कला दर्शनीय नहीं होती है

सूचना व फोटो आभार : कौस्तुभ चंदोला बिंतोली

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