गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

ढांगू, गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -13

सूचना व फोटो आभार : रुप चंद जखमोला व खुशीराम जखमोला

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 20

जसपुर (ढांगू ) गढ़वाल में सौकारुं की काष्ठ तिबारी में भवन काष्ठ कला अंकन

Traditional House wood Carving Art of Dhangu , Garhwal, Uttarakhand Himalaya 13

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Uttarakhand , Himalaya - 22

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

जसपुर ढांगू पट्टी , द्वारीखाल ब्लॉक का पुराने गाँवों में से एक गाँव है। कहा जाता है कि जसपुर 14 वीं सदी में कुकरेतीयों ने बसाया था या इस काल में कुकरेती बसे थे। गढ़वाल में सभी कुकरेती गाँवों में कुकरेती जसपुर से ही गए हैं। जसपुर के पूर्व में बड़ेथ , दक्षिण में ग्वील , पश्चिम उत्तर में सौड़ , छतिंड व पश्चिम में बाड्यों, रणेथ , ठंठोली आदि गाँव हैं। सदियों से जसपुर शिल्पकारों के लिए प्रसद्ध रहा है। आज भी 300 की जनसंख्या में 250 जनसंख्या शिल्पकारों की जनसंख्या है।

जसपुर में शिल्पकार कुकरेती , जखमोला व बहुगुणा जाति के परिवार रहते हैं।

भूतकाल में बहुगुणाओं , दयानन्द कुकरेती 'तहसीलदार' की तिबारी व घना नंद कुकरेती निंदारी व जखमोला में सौकार परिवार की तिबारी थीं। दो जखमोलाओं की ही डंड्यळ नुमा तीन पाषाण तिबारियां थीं अब एक भी तिबारी नहीं बचीं हैं.

सन 2012 तक सौकारों की तिबारी विद्यमान थीं। जब यह तिबारी बनी थी तो इस तिबारी के दो साझा मालिक थे स्व गोविन्द राम जखमोला के पिता व स्व रेवत राम व स्व मलुकराम जखमोला के पिता (दोनों भाई थे ) . इस परिवार के सौकार (धनी ) बनने के पीछे भी एक लोक कथा प्रचलित है। कहते हैं कि गोविंदराम , रेवत राम व मलुकराम जखमोला के दादा जी झंगोरा की दायीं ले रहे थे और बथौं लगा रहे थे। जैसे कि आज भी रिवाज है जो सूप से बथौं लगाए वह व्यक्ति जब तक बथौं कार्य समाप्त न हो जगह नहीं बदल सकता है। तो वे जखमोला झंगोरा की बथौं लगाते लगाते झंगोरा में डूब गए याने इतना झंगोरा हुआ था कि इन्हे सौकार की पदवी मिल गयी।

सौकारों की तिबारी भी आम तिबारियों की तरह दुभित्या मकान में है (एक कमरा आगे व एक कमरा अंदर ) .पहली मंजिल पर बाहर के दो कमरों के मध्य दिवार नहीं थी व बरामदा है जिसके द्वारों पर काष्ठ कला अंकित थी । ढांगू की अन्य आम तिबारियों जैसे ही चार स्तम्भों व तीन मोरियाँ , द्वारों या खिड़की थीं ।

किनारे के स्तम्भ दीवार से लकड़ी की कड़ी द्वारा जुड़ी थीं और इस कड़ी या शाफ़्ट पर प्राकृतिक या लहरनुमा कला अंकन था। सभी चार स्तम्भ उप छज्जे के ऊपर पत्थर आधार पर टिके थे। प्रत्येक स्तम्भ का आधार या कुम्भी /पथ्वड़ नुमा आकृति वास्तव में उलटा कमल दल की आकृति का था , जहां से कमल दल (petals ) शुरू होते थे वहां एक गुटका नुमा (wooden plate या इनघौंट ) थी । फिर इस गुटके से स्तम्भ कुछ कम गोलाई की आकृति लेते हुए ऊपर छत की काष्ठ पट्टी (भू समांतर ) से मिल जाते हैं। इस तिबारी में मंडल नुमा (arch ) या मेहराब नहीं थी। तिबारी के द्वार /मोरी चौकोर थीं। स्तम्भ पर बेल बूटे याने प्रकृति आधारित कला अंकित थी।

कहा जा सकता है कि जसपुर के सौकारों की तिबारी में प्रकृति , व ज्यामितीय कला अंकन था और मानवीय (figurative , पशु , पक्षी , मनुष्य ) आकृति अंकन नहीं था। अपने समय में तिबारी की शान थी।

मेहराब व ब्रैकेट न होने से साफ़ है कि इस तिबारी के निर्माण कलाकार स्थानीय ही रहे होंगे (शायद सौड़ के ) . तिबारी का निर्माण काल 1924 के बाद का ही होगा।

सूचना व फोटो आभार : रुप चंद जखमोला व खुशीराम जखमोला