म्यारा डांडा-कांठा की कविता
गिचू खोलण चैंद
गिचू खोलण चैंद
कुछ त ब्वाला क्या च हुणु,
भलु बुरू बिंगण चैंद,
सपन ह्वेक लाटु नि हुणु,
अपणु फर्ज निभाण चैंद।
ऊँल कंदुड़ रुवाकु बुजू मर्यूं,
सुविचारुकि धै लगांण चैंद,
कबि त काली रात खुललि,
निरास कबि नि हूण चैंद।
मनकि मऩ मा नि रखणी चैंद,
भैर बोलि दीण चैंद।
तुम चै मानो न मानो,
कुछ न कुछ सिखै दींद।
उ अलग बात च कि,
उंका मनमा टीस रैंद,
चुप रईक कुछ नि हूणु,
कैकू त गिचू खुल्यू चैंद।
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