गढ़वाली भाषा में वैदिक शब्दावली
गढ़वाल की भूमि प्रकृति की क्रीड़ास्थली रही है। अपार नैसर्गिक सौंदर्य एवं सांस्कृतिक विरासत की धनी इस गढ़भूमि के लोक जीवन में गढ़े गए तथा व्यवहृत हुए शब्द अन्य भाषाओं की अपेक्षा लोकमाटी से अधिक जुड़े हैं। आर्यों का मध्य हिमालय से कितना सम्बन्ध रहा है, यह खण्डन-मण्डन का विषय हो सकता है लेकिन संस्कृत से आगत शब्दावली तथा बोलचाल में लयात्मक स्वराघात यह प्रमाणित करता है कि गढ़वाली भाषा पर आर्य भाषा का प्रभाव रहा है। इसका उदाहरण निम्न अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि वैदिक शब्दों का गढ़वाली में प्रचुर प्रयोग होता है। इस सम्बन्ध में हरिराम धस्माना जी एवं भजन सिंह 'सिंह' जी ने दर्जनों शब्दों को चिह्नित किया है। छोटे से अनुच्छेद में ही 41 वैदिक शब्द 'सिंगल इन्वर्टेड कोमा' में दिए गए हैं-
'द्यौ' खरैगि छो। मैत अईं 'स्या' 'दिसा-धियाण' 'वबरि' बिटि भैर आयि। 'उब्ब' धार बिटि 'उंद' रौल्यूं बगदि 'गाड' जनै नजर दौड़ाई। कुयेड़ि छंट्यैगि छै। वींकि 'बौ' 'द्विपुरा' गै। एक 'खार' नाजा कोठार बिटि एक 'द्वौण' 'साट्टि' निकाळि अर 'पाथो' भरि-भरि 'सुप्पा' उंद खण्यै तैं 'भ्वीं' ल्यैगे। बिसगौण ढोळि फिर 'गोठ' जाण छो। वख लैंदि 'गौड़ि' छै भूकन रमाणी। 'गौड़ि' ब्याण पर वीन पैलि कुटुम मा खूब 'प्यूंसा' बांटि। ब्याळि 'पर्या' भरी छांस छोळी, 'चोखू' गळै घ्यू बणै।
'भोळ' वींका पुंगड़ा 'कोदा' गोडार्त छै। 'भुर्त्या' छा बुलायां। 'लौण'-'मांडण' बि सीई करदा छा। वीन 'रीति' कण्डी अर 'दाथी' उठै बण चलिगे। बाटा मा देखदा-देखदि एक बण 'कुखड़ो' सरबट्ट 'बुज्ज' पिछनै भाजिगे। अगनै बढ़ि त 'चौंंरि' मा मत्थिखोळि को 'लाटो' अपणु 'पुराणो' छतरो सल्यांद दिखेणि। 'कुक्कुर' बि दगड़ा छो वेको अर एक 'तिसाळो' 'बळ्द' 'कूल' उंद पाणि छो पेणू। बाकि गोरु चरणा छा। 'लाटा' खुणि विधातन 'वाक्' को बरदान किलै नि दीनि होलो, सोची वींका मन मा 'उमाळ' ऐ ग्याई। वेकि ब्वे तैं बि अब कुछ नि दिखेंद छो। समझा 'काणि' ह्वे ग्याई छै। कुजाणि कब तलक छो वींको 'अंजल' बच्यूं।
- द्यौ (आसमान)
- स्या (वह)
- दिसा-धियाण (विवाहिता पुत्री)
- वबरि (भूतल)
- उब्ब ( ऊपर)
- धार (पहाड़ी का सबसे ऊंचा भाग)
- उंद (नीचे)
- गाड (नदी)
- बौ (भाभी)
- द्विपुरा (ऊपरी मंजिल)
- खार (20 द्वौण का मापक)
- द्वौण (दो डलोणी का मापक)
- साट्टि (धान)
- पाथो (लगभग दो किलो का मापक)
- सुप्पा (सूप)
- भ्वीं (जमीन में)
- गोठ (गोष्ठ)
- गौड़ी (गाय)
- प्यूंसा (पशु का प्रथम दूध)
- पर्या (दही मथने का बर्तन)
- चोखू (नवनीत)
- भोळ (आने वाला कल)
- कोदा (मंडुआ)
- भुर्त्या (श्रमिक)
- लौण (लवाई)
- मांडण (मंडाई)
- रीति (रिक्त)
- दाथी (दरांती)
- कुखड़ो (कुक्कुट)
- बुज्ज (झाड़ी)
- चौंरि (चबूतरा)
- लाटो (सीधा-साधा)
- पुराणो (पुराना)
- कुक्कुर (कुत्ता)
- तिसाळो (प्यासा)
- बळ्द (बैल)
- कूल (गूल)
- लाटा (गूंगा)
- वाक् (वाणी)
- उमाळ (उबाल)
- काणि (कानी)
- अंजल (अन्न-जल)
(साभार- हिंदी-गढ़वाली-अंग्रेजी शब्दकोश- रमाकान्त बेंजवाल एवं बीना बेंजवाल)