म्यारा डांडा-कांठा की कविता

सर्वाधिकार सुरक्षित © धर्मेन्द्र नेगी

चुराणी, रिखणीखाळ, पौड़ी गढ़वाळ


ऐऽ जादी

ज्यूऽ ब्यळ्माण कु ही सै, तु घड़ेकौ त ऐऽ जादी

बिसैकि बोझ हिया को तु जरसि थौ त खैऽ जादी


डबखुणूं छौं चकोर सी मि त्वेतैं जून समझि की

रयेन्दु नी कतैऽ त्वे बिन तु ऐकि झट भिंटैऽ जादी


तिसळि च्योळि सि मन मेरू तु छै बून्द बरखा सि

पराण छुटदी मेरा त्वे बिन बचै सकदी बचैऽ जादी


डंडक्यूं द्यब्ता सि छ हुयूं आज यू ज्यू-पराण मेरो

लगैकि प्रीत का जागर तु नचै सकदी नचैऽ जादी


खुल्यां छन द्वार-मोर यीं जिकुड़ि का तेरा खातिर

तु यीं क्वठड़िम सदानि कु रै सकदी त रैऽ जादी


जण चारेक लिख्यांन गीत'धरम'न तेरि तारिफ मा

अपणि तैं मिठ्ठि भौंण मा तू गै सकदी त गैऽ जादी