उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -4

वेदों में वर्णित कृषि, कृषि औजार, अनाज

उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ---4

आलेख : भीष्म कुकरेती

वैदिक योद्धाओं और पर्वतीय योद्धाओं में यद्ध हुए। वेदों की रचना ना ही हिमाचल में हुयी ना ही उत्तराखंड में और ना ही किसी हिमालयी खंड में। हाँ वेद मानुसों का युद्ध हिमालयी लोक मांस से हुयी। अत: माना जा सकता है उत्तर वैदिक काल में , पंचनदी वाली वैदिक संस्कृति का प्रभाव हिमालयी क्षेत्र पर लगातार होता रहा था

वेदों में वर्णित कृषि और अनाज इस परकार हैं

ऋग्वेद तक भारतवासी कृषि को अपना चुके थे।

भूमि कृषि और अरण्य (जंगल ) में से बनती थी।

क्षेत्र (खेतों ) में कृशीवल (किसान ) खेती करते थे।

खाद का उपयोग शुरू हो चुका था और कूल का उपयोग हो चुका था ।

मैदानों में कई जोड़ी बैलों से हल खींचने (लांगुल , सीर ) का वर्णन है।

शतपथ ब्राह्मण में जोतने , बोने काटने और पशुओं से दाईं करने का वर्णन हाई।

फसल को दाथी (दात्र ) से काटकर पुलों (पर्ष ) में बांधा जाता था और खलियानों (खल ) में पटका जाता था। मांडने के बाद चलनी (तितौ )या शूप (शूर्प ) से त्रिण व भूसे (तुष ) को अनाज से अलग किया जाता था। (ऋग्वेद ).

अनाज

पहले पहल अनाज में केवल जौ (यव ) की खेती होती थी।

बाद में धान , मूंग , उड़द , तिल , अणु , खल्व , मसूर नीवार आदि की खेती प्रारम्भ हुयी

साल भर में दो खेती होने लगी थी

सत्तू का प्रयोग भी शुरू हो चुका था।

फल

फलों में कर्कन्धु (एक प्रकार का खजूर ) , कुवल , बेर का नाम आता है

पशु धन

गएँ आदि दूध, दही घी के लिए पाली जाने लगी थी और खाद के लिए भी

दुग्ध पदार्थ और मांस का बाहुल्य खाने में था

गोठ या गौशाला तरह की शैली शुरू हो चुकी थी

भेड़ का मांस रुचिकर माना जाता था।

औजार

वैदिक संस्कृति ताम्र युग की संस्कृति थी संस्कृति की। बाण , गदा , फरसा , बसूला आदि औजार निर्माण होते थे।

अन्न , मांश को भून कर खाया जाता था। भोजन पीसकर निर्मित करने की विधि आ चुकी थी I

बर्तनों की कमी थी तो पत्तों पर खाना बनाया जाता था। उत्तराखंड में वैदिक संस्कृति या परवर्ती वैदिक संस्कृति के चिन्ह जैसे ढुंगळ संस्कृति , उमी संस्कृति, पत्तों के अन्दर या बांस के अंदर मच्छी पकाना संस्कृति आज भी ज़िंदा है