झंगोरे की खीर उत्तराखंडी खानपान की है एक खास पहचान

झंगोराः पौष्टिकता का जवाब नहीं

उत्तराखण्ड में झंगोरा की खेती बहुतायत मात्रा में असिंचित भू भाग में की जाती है। यह पोएसी परिवार का पौधा है। उत्तराखण्ड में झंगोरा को अनाज तथा पशुचारे दोनों के लिये उपयोग किया जाता है। झंगोरा की महत्ता इसी बात से लगाई जा सकती है कि इसको बिलियन डालर

ग्रास का नाम भी दिया गया है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु चीन, नेपाल, जापान, पाकिस्तान तथा अफ्रीका में भी उगाया जाता है। जहां तक उत्तराखण्ड में झंगोरे की खेती की बात की जाए तो यह असिंचित भूमि, जहां पर सिंचाई का साधन न हो तथा बिना किसी भारी भरकम तकनीकी के कम लागत से आसानी से ऊगाई जाने वाली फसल है। कभी-कभी असिंचित धान/चैती धान के खेतों के चारों ओर भी बार्डर crop तथा Buffer zone के लिये भी उगाई जाती है। यह सभी Millets में सबसे तेज उगने वाली फसल है चूंकि झंगोरे में विपरीत वातावरण में भी में उत्पादन देने की क्षमता होती है, इसलिये हमारे पूर्वजों ने यहां की भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु, भूमि के प्रकार के हिसाब से इस महत्वपूर्ण फसल का चयन किया था। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इससे अनाज के साथ पशुचारा भी उपलब्ध हो जाता है, जिसे स्थानीय कास्तकार लंबे समय तक सुरक्षित रखकर, बर्फ के मौसम में या जब पशुचारे की कमी हो इसे उपयोग करते है। इसके पशुचारे को अगर कास्तकारों का Contingency fodder plan कहा जाए तो बेहतर हेगा।

झंगोरे की खीर उत्तराखंडी खानपान की एक खास पहचान है। अब तो झंगोरे की खीर देहरादून मसूरी हल्द्वानी नैनीताल जैसे शहरों में होटलों के मेन्यू का हिस्सा भी बन गई है।

झंगोरे की खीर उत्तराखंडी खानपान की एक खास पहचान है। व्रत-त्योहारों, खासकर वासंतिक व शारदीय नवरात्र के दौरान तो लोग झंगोरे की खीर अवश्य खाते हैं। अब तो झंगोरे की खीर देहरादून, मसूरी, हल्द्वानी, नैनीताल जैसे शहरों में होटलों के मेन्यू का हिस्सा भी बन गई है। इसके अलावा शादी समारोहों में भी झंगोरे की खीर काफी पसंद की जाने लगी है।

झंगोरे खीर को पारंपरिक ढंग से खुली पतीली या डेगची में पकाया जाए तो कहने ही क्या। इसके लिए एक बर्तन में पहले से दूध को उबाल कर रख दें और दूसरे बर्तन में झंगोरे को चूल्हे पर चढ़ा लें। साथ ही उसे लगातार करछी से हिलाते रहें। यह ध्यान रखें कि बर्तन छोटा न हो।

आंच भी कम नहीं होनी चाहिए और झंगोरे में पूरा उबाल आना चाहिए। बर्तन की तली पर झंगोरा न लगने दें। खीर के लिए दूध की मात्रा झंगोरे से चार गुणा अधिक होनी चाहिए, जबकि चीनी या गुड़ की मात्रा बराबर। एक पाव झंगोरे के लिए एक पाव गुड़ या चीनी और एक किलो दूध होना जरूरी है। झंगोरे के अधपका होने पर देखें कि उसमें पानी ज्यादा तो नहीं है। यदि पानी ज्यादा है तो उसे अलग निकाल लें। फिर उसमें दूध और चीनी मिला दें।

उबाल आने पर आंच थोड़ी कम की जा सकती है, लेकिन उबाल नहीं रुकना चाहिए। हां! करछी बराबर चलाते रहें। ध्यान रहे कि झंगोरे की गुठलियां न बनें।

स्वाद और जायका लाने के लिए खीर में कद्दूकस किया गया गोला (नारियल), किशमिश व इलायची पाउडर डालिए। पहाड़ में चीड़ के जंगल से घिरे गांवों में रहने वाले लोग सिर्फ छेंती (छ्यूंती) बीज के मावे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका आनंद ही कुछ और है। जब खीर लसपसी हो जाए या नीचे से जलने लगे तो बर्तन नीचे उतार दें। खीर ज्यादा गाढ़ी नहीं होनी चाहिए, अन्यथा ठंडी होने पर सख्त हो जाएगी। खास बात यह कि झंगोरे की खीर न ज्यादा गर्म खानी चाहिए न ज्यादा ठंडी ही। फिर देखिए, इसका जायका आप जीवनभर नहीं भुला पाएंगे।

ग्रास का नाम भी दिया गया है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु चीन, नेपाल, जापान, पाकिस्तान तथा अफ्रीका में भी उगाया जाता है। जहां तक उत्तराखण्ड में झंगोरे की खेती की बात की जाए तो यह असिंचित भूमि, जहां पर सिंचाई का साधन न हो तथा बिना किसी भारी भरकम तकनीकी के कम लागत से आसानी से ऊगाई जाने वाली फसल है। कभी-कभी असिंचित धान/चैती धान के खेतों के चारों ओर भी बार्डर crop तथा Buffer zone के लिये भी उगाई जाती है। यह सभी Millets में सबसे तेज उगने वाली फसल है चूंकि झंगोरे में विपरीत वातावरण में भी में उत्पादन देने की क्षमता होती है, इसलिये हमारे पूर्वजों ने यहां की भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु, भूमि के प्रकार के हिसाब से इस महत्वपूर्ण फसल का चयन किया था। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इससे अनाज के साथ पशुचारा भी उपलब्ध हो जाता है, जिसे स्थानीय कास्तकार लंबे समय तक सुरक्षित रखकर, बर्फ के मौसम में या जब पशुचारे की कमी हो इसे उपयोग करते है। इसके पशुचारे को अगर कास्तकारों का Contingency fodder plan कहा जाए तो बेहतर हेगा।

विश्वभर में झंगोरा की 32 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें अधिकतम प्रजाति जंगली है केवल E. utilis तथा E. frumentacea ही मुख्यता उगाई जाती है। E. utitis जापान, कोरीया तथा चीन में जबकि E. frumentacea भारत तथा सेंट्रल अफ्रीका में उगाई जाती है। वैसे तो झंगोरे की उत्पति को सही-सही बता पाना बेहद मुश्किल है लेकिन कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर झंगोरे की उत्पत्ति भारत तथा अफ्रीकी देशों में क्रमवत विकास के साथ-साथ पाई गई है। Dogget 1989 के अध्ययन के अनुसार झंगोरा की उत्पत्ति इसकी जंगली प्रजाति E. crus-galli से लगभग 400 साल पूर्व मानी जाती है। कुछ Archeological वैज्ञानिकों के अनुसार जापान में Yayoi काल में झंगोरे का उत्पादन (Domestication) का वर्णन मिलता है।

झंगोरे में कार्बोहाइड्रेट 65.5g/100 gm की मात्रा चावल की अपेक्षा कम होने के कारण तथा धीमी गति पाचन होने के कारण इसे मधुमेह रोगियों के लिये सबसे उपयुक्त माना जाता है। झंगोरे में High dietary fiber तथा Low carbohydrate digestibility होने की वजह से शरीर में Glucose level को Maintain रखता है । यह Gluten free food का बेहतर विकल्प भी है, मुख्यत उन लोगों के लिये जो Celiac बीमारी से ग्रषित है।

झंगोरे में कार्बोहाइड्रेट के अलावा प्रोटीन -6.2 ग्राम, वसा-2.2 ग्राम, फाइबर-9.8 ग्राम, कैल्शियम -20 ग्राम, फास्फोरस 280 मि०ग्राम, आयरन- 5.0 मि0ग्राम, मैग्नीशियम- 82 मि0ग्राम, जिंक 3 मि0ग्राम पाया जाता है। झंगोरे में प्रोटीन 12 प्रतिशत जो कि 81.13 प्रतिशत 58.56% है तथा कार्बोहाइड्रेट 58.56% जो 25.88% Slow digestible होता है।

1970 के दशक तक भारत विश्व में सर्वाधिक Millet उत्पादक देश था। वर्ष 2000 तक देश के विभिन्न प्रदेशो में Millet का उत्पादन 50 से 70 प्रतिशत तक बढ़ा तथा वर्ष 2005 तक बदलती खाद्य शैली के चलते के Millet का उपयोग केवल पशुचारे तथा शराब बनाने तक सीमित रह गया। विश्व में वर्ष 2010 तक 0.23 टन प्रति हे0 Millet उत्पादन रहा। विश्व में फ्रांस Millet उत्पादन में सबसे अग्रणी है, केवल फ्रांस में ही 3.3 टन प्रति हे0 Millet का उत्पादन होता है। FAO के वर्ष 2013 के अध्ययन के अनुसार भारत में 1,09,10,000.00 टन, नाईजेरिया में 50 लाख टन, चीन में 16,20,000 टन, सूडान में 10,90,000 टन तथा यूथोपिया में 8,07,56 लाख टन उत्पादन रहा जबकि मैखुरी, 2001 के अध्ययन के अनुसार उत्तराखण्ड मे झंगोरा के उत्पादन क्षेत्र में 72% की कमी आंकी गई है।

Agricultural Engineering colleges Research Institute, Post harvest Technology, Centre Tamil Nadu Agriculture University द्वारा झंगोरे की पोष्टिक महत्ता को देखते हुए झंगोरा से कई प्रकार के खाद्य उत्पाद पापड, इडली, यानों बढ़ाई, मुरूरकु, डोसा, पानीयारम, हाट कोलकटाई, रिवन पकोड, इडियापम, पुहो, उपमा, स्वीट कंसारी, अधीश्रम, खरी, खखरा, मिठाई, कोलकटाई आदि बनाई जाती है जिसकी स्थानीय बजार में खूब प्रचलन है। Millet का सर्वाधिक उपयोग विश्व में केवल Alcohol निर्माण के लिये Poultry feed में ही किया जाता है।

Amazon.in में झंगोरे से निर्मित प्राथमिक उत्पाद 90 से 150 किलोग्राम तक बेचे जा रहें हैं। भारत में ही कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय एजेंसीज के द्वारा झंगोरे का चावल विभिन्न देशो की निर्यात किया जाता है। वर्ष 2016 में ही भारत से संयुक्त अरब अमीरात तथा सिंगापुर की झंगारे का चावल निर्यात किया गया।

आज विश्व में ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशो में अनाज आधारित उत्पाद बहुतायात मात्रा में बनाया जाता है। Milletअन्य अनाज की अपेक्षा ज्यादा पोष्टिक, Gluten free तथा Slow digestible गुणों के कारण अन्य अनाजों के बजाय Millet का प्रयोग बहुतायत किया जा सकता है जो कि Millet उत्पादकों के लिये बाजार तथा उत्पादो के लिये Gluten free food का बाजार बन सकता है। उत्तराखण्ड में ही नहीं भारत में भी खेती योग्य भूमि का अधिकतम भू-भाग असिंचित होने के कारण पौष्टिकता से भरपूर Millet उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है जो कि आर्थिकी का एक बडा विकल्प होगा।